हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं. इस दिन श्रीगणेश जी की पूजा और व्रत का विधान है. अगर यह विनायक चतुर्थी मंगलवार को पड़ता है, तो इसे अंगारक योग मानते हैं. पौराणिक पुस्तकों में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह व्रत 26 मई (मंगलवार) को पड़ रहा है. मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश जी का विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से जातक की हर मन्नतें पूरी होती हैं.
विनायक चतुर्थी का महात्म्य!
शिवपुराण के अनुसार शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को गणेशजी का प्रकाट्य हुआ था. मां पार्वती और शिवजी ने उन्हें पुत्र रूप में स्वीकार्य किया था. कहते हैं कि श्रीगणेश जब प्रकट हुए थे, तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड में दिव्य प्रकाश की अनुभूति हुई थी. विनायक चतुर्थी के संदर्भ में ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि इस दिन श्रीगणेश जी की षोड़शोपचार विधि से पूजा-अनुष्ठान करने से जातक हर तरह के ऋणों एवं रोगों से मुक्ति पाता है. इस वर्ष कुल तीन अंगारकी चतुर्थी का योग बना है. पहली अंगारकी जनवरी, दूसरी आज यानी 26 मई और तीसरी अंगारकी चतुर्थी अश्विन मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी (20 अक्टूबर) को पड़ेगा.
अंगारकी चतुर्थी की पूजा विधि!
प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर श्रीगणेश जी का स्मरण कर व्रत का संकल्प लें. अपराह्न में किसी धातु निर्मित श्रीगणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें. अब संकल्प-मंत्र के साथ इनकी षोड़शोपचार विधि से पूजन करें. श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ भी करें तो बेहतर पुण्यदायी होगा. गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ायें. गणेश-मंत्र ‘ऊँ गं गणपतयै नम:’ का जाप करें और प्रत्येक जाप के साथ 21 दूर्वा दल चढ़ाएं. भोग में बूंदी के लड्डू चढ़ाएं.
व्रत की पौराणिक कथा:
एकबार शिवजी और मां भगवती ने समय बिताने के लिए चौपड़ खेलने का फैसला किया. हार-जीत के फैसले के लिए शिवजी ने एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर उससे कहा कि हमारे बीच हार-जीत का फैसला तुम्हें करना होगा. दोनों के बीच चौपड़ शुरू हुआ. तीन बार मां पार्वती जीतीं. लेकिन पुतले ने कहा, -शिवजी जीते. बालक के झूठ पर पार्वती जी क्रुद्ध हो उठीं. उन्होंने उसे कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माफी मांगते हुए कहा कि उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. पार्वती जी को बालक पर दया आई. उससे कहा कि एक साल बाद कुछ नागकन्याएं यहां आएंगी. उनके कथनानुसार गणेशचतुर्थी का व्रत-पूजन करने से तुम्हारे कष्ट दूर होंगे.
कालांतर में बालक द्वारा किए उपासना से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उससे वर मांगने को कहा. बालक ने कहा, -प्रभु मुझे इतनी ताकत दे कि मैं अपने माता-पिता को देखने कैलाश पर्वत जा सकूं. गणेशजी के आशीर्वाद से बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. उधर चौपड़ में गलत फैसले से रूठी पार्वतीजी को मनाने के लिए शिवजी ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया और अन्ततः पार्वतीजी मान गयीं. इसके बाद मां पार्वती ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने के लिए 21 दिनों तक विनायक चतुर्थी का व्रत किया, और उनकी भी मनोकामना पूरी हुई.