हरतालिका तीज 2018: अखंड सौभाग्य के लिए इस तरह रखें यह व्रत, जानिए पूजन विधि और महत्व
हरतालिका तीज (Photo Credits: Pixabay)

हरितालिका तीज का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है. पति की लम्बी उम्र के लिए रखा जाने वाला यह व्रत उत्सव इस साल 12 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन शिव-पार्वती की संयुक्त पूजा का विधान है. हरितालिका तीज पर विवाहित महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं और अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए भी इस व्रत को रखती हैं. हरतालिका तीज भाद्रपद महीने की शुक्‍ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है.

यह त्‍योहार खास तौर पर उत्तरी राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में मनाया जाता है. वहीं दक्षिणी राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को गौरी हब्‍बा के नाम से जाना जाता है.

शिव पार्वती से जुड़ा है यह उत्सव

हरतालिका दो शब्‍दों से मिलकर बना है- हरत और आलिका. हरत का मतलब है 'अपहरण' और आलिका यानी 'सहेली'. प्राचीन मान्‍यता के अनुसार मां पार्वती की सहेली उन्‍हें घने जंगल में ले जाकर छिपा देती हैं. जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को वर रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था.

हरतालिका तीज का महत्‍व

हिन्दू धर्म की सभी चार तीजों में हरतालिका तीज का विशेष महत्‍व है. सुहागिन महिलाओं की हरतालिका तीज में गहरी आस्‍था है. महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्‍य का वरदान देते हैं. वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्‍त‍ि होती है.

शुभ मुहूर्त

तृतीया तिथि प्रारंभ: 11 सितंबर 2018 को शाम 6 बजकर 4 मिनट.

तृतीया तिथि समाप्‍त: 12 सितंबर 2018 को शाम 4 बजकर 7 मिनट.

पूजा मुहूर्त: 12 सितंबर 2018 की सुबह 6 बजकर 15 मिनट से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक.

पूजन विधि

प्रात: उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर एक पूजन चौकी पर वस्त्र बिछाकर भगवन शिव और मां पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करें. साथ ही इस व्रत का पालन करने का संकल्प लें. आरंभ में श्री गणेश का विधिवत पूजन करना चाहिए. गणेश पूजन के पश्चात् शिव-पार्वती का आवाहन, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आचमनी, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, दक्षिणा तथा यथाशक्ति आभूषण आदि से पूजन करना चाहिए.

व्रत नियम

हरतालिका व्रत को निर्जल रहकर किया जाता है. एक बार व्रत रखने के बाद इसे हर साल पुरे विधि से रखना अनिवार्य है. इस व्रत में सोने की मनाही है. यहां तक कि रात को भी सोना वर्जित है. रात के वक्‍त भजन-कीर्तन किया जाता है. इसे रतजगा व्रत भी कहा जाता है.

इस मंत्र के जाप से पूरी होंगी मनोकामनाएं

" हे गौरीशंकर अर्धांगी यथा त्वां शंकर प्रिया।

तथा माम कुरु कल्याणी , कान्तकांता सुदुर्लभाम।।"

माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से मनचाहे और योग्य वर की प्राप्ति होती है. मंत्र का जाप संपूर्ण श्रृंगार करके ही करें और इस दिन मंत्र जाप के लिए रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें. इसके अलावा इस मंत्र का इस दिन शाम के समय मंत्र जाप करना सर्वोत्तम माना गया है.