Dussehra 2018: बंगाली महिलाएं सिंदूर खेलकर मनाती हैं विजयादशमी का पर्व, जानें इस प्रथा से जुड़ी दिलचस्प मान्यता 

विजयादशमी के दिन बंगाली समाज की शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे पर सिंदूर भरकर पंडाल पहुंचती हैं और मां दुर्गा की पूजा करके उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं. इसके बाद उन्हें पान और मिठाई का भोग लगाकर एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं.

सिंदूर खेला (photo Credits: Facebook)

बंगाल में नवरात्रि के दौरान दुर्गा पूजा की अलग ही रौनक देखने को मिलती है. यहां नवरात्र के दौरान भव्य दुर्गा पंडाल सजाए जाते हैं और दशहरे यानी विजयादशमी के दिन बंगाली समाज की सुहागन महिलाएं सिंंदूर खेलकर इस पर्व का जश्न मनाती हैं, जिसे सिंदूर खेला के नाम से जाना जाता है. दरअसल, सिंदूर की होली खेलने की इस परंपरा को लेकर ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं, इसलिए जगह-जगह पंडाल सजाए जाते हैं. इन नौ दिनों में मां दुर्गा की भक्ति भाव से आराधना की जाती है और दशमी पर सिंदूर की होली खेलकर उन्हें विदा किया जाता है.

विजयादशमी के दिन बंगाली समाज की शादीशुदा महिलाएं लाल रंग की साड़ी पहन कर माथे पर सिंदूर भरकर पंडाल पहुंचती हैं और मां दुर्गा की पूजा करके उन्हें सिंदूर चढ़ाती हैं.  इसके बाद उन्हें पान और मिठाई का भोग लगाकर एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं. हालांकि इसमें विधवा, तलाकशुदा, किन्नर और नगरवधुओं के शामिल होने पर पाबंदी होती है.

सिंदूर खेला की प्रथा से जुड़ी मान्यता

सिंदूर खेला की इस प्रथा को निभाते समय महिलाओं में उमंग और मस्ती दिखाई देती है, लेकिन इस रस्म के कुछ देर बाद ही मां दुर्गा को विसर्जित करने का समय आ जाता है और सभी नम आंखों से मां चोले छे ससुर बाड़ी यानी मां चली ससुराल गीत गाने लगते हैं. नम आंखों से उन्हें विदा करते हुए अगले बरस उनके जल्दी आने की कामना की जाती है. मान्यता है कि मां दुर्गा की मांग भरकर उन्हें मायके से ससुराल विदा किया जाता है, इसलिए सिंदूर खेला की यह प्रथा निभाई जाती है. यह भी पढ़ें: Dussehra 2018: जानें कब मनाया जाएगा विजयादशमी का पर्व, दुर्भाग्य को दूर करने के लिए इस दिन करें ये उपाय

सुहाग की सलामती से जुड़ी है ये प्रथा 

शादीशुदा औरतें लाल साड़ी पहनकर माथे पर सिंदूर लगाकर दुर्गा पंडालों में पहुंचती हैं और मां को उलू ध्वनि के साथ विदाई देती हैं. मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर खेला की यह प्रथा महिलाओं के सुहाग की लंंबी उम्र और बच्चों की सलामती के लिए भी सदियों से निभाई जा रही है. बता दें कि पश्चिम बंगाल में कुछ जगहों पर सिंदूर खेला की यह रस्म विजयादशमी से पहले ही अदा का जाती है, जबकि कई जगहों पर विजयादशमी के दिन इस परंपरा का पालन किया जाता है.

कुंवारी लड़कियां भी निभाती हैं ये रस्म

वैसे तो सिंदूर खेला की रस्म सिर्फ शादीशुदा महिलाओं के लिए ही होती है, लेकिन अच्छे और मनचाहे वर की कामना करते हुए अब कई कुंवारी लड़कियां भी इस रस्म को निभाने लगी हैं. अब कुंवारी लड़कियां भी सिंदूर खेला में सुहागन महिलाओं के साथ बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. यह भी पढ़ें: Navratri 2018: ब्राह्मण न मिले तो आप खुद कर सकते हैं दुर्गाष्टमी और महानवमी पर हवन, जानें इसकी आसान विधि

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