Diwali 2020 Lakshmi Puja Date & Shubh Muhurat: दिवाली पर पूजा के समय किस दिशा में रखें लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और आरती
पांच दिवसीय महापर्व दिवाली की शुरुआत आज से हो चुकी है. कल यानि की 14 नवंबर (शुक्रवार) को दिवाली मनाई जाएगी. आज हम अपने इस लेख में आपको बताएंगे कि दिवाली पूजन के दौरान लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की प्रतिमा किस दिशा में रखनी चाहिए. इसके साथ ही जानते हैं लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, आरती और महत्व.
Lakshmi Puja 2020 Date & Shubh Muhurat: पांच दिवसीय महापर्व दिवाली (Diwali) की शुरुआत आज से हो चुकी है. आज देशभर में धनतेरस (Dhanteras) का त्यौहार मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले सबसे प्रमुख और बड़े त्योहारों में से एक है. कल यानि की 14 नवंबर (शुक्रवार) को दिवाली मनाई जाएगी. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन (Lakshmi Puja) को महत्वपूर्ण माना जाता है. हर साल कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को दिवाली मनाई जाती है. दिवाली का पर्व खुशहाली, समृद्धि, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतिक माना जाता है. इस त्योहार को रोशनी का पर्व भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों के घर जाती हैं. देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए घरों को सजाया जाता है और घर के द्वार पर तरह-तरह की रंगोली बनाई जाती है. माना जाता है कि दिवाली की रात ही मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु (Lord Vishu) के साथ विवाह किया था.
ऐसा भी कहा जाता है कि, दीवाली के दिन को मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के जन्म दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन श्री गणेश (Ganesha), मां लक्ष्मी (Lakshmi) और देवी सरस्वती (Saraswati) की पूजा की जाती है. पुरे विधि-विधान से पूजा करने पर दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि और बुद्धि का आगमन होता है. हिन्दुओं के अलावा सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोग भी दीवाली धूमधाम से मनाते हैं. आज हम अपने इस लेख में आपको बताएंगे कि दिवाली पूजन के दौरान लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की प्रतिमा किस दिशा में रखनी चाहिए. इसके साथ ही जानते हैं लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, आरती और महत्व.
दीवाली कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार दिवाली 14 नवंबर को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाई जाएगी.
दिवाली की तिथि-शुभ मुहूर्त:
इस साल 14 नवंबर को 01.16 बजे तक चतुर्दशी रहेगा. इसके बाद अमावस्या लग जायेगा. इसलिए 14 नवंबर को मुख्य दिवाली यानि की लक्ष्मी-पूजन होगा. लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए शाम 05.40 से रात 08.15 बजे का मुहूर्त सर्वोत्तम माना गया है.
दिवाली/लक्ष्मी पूजन की तिथि: 14 नवंबर 2020
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 14 नवंबर 2020 को दोपहर 02.17 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 15 नवंबर 2020 को सुबह 10.36 मिनट तक
लक्ष्मी पूजा मुहुर्त: लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए शाम 05.40 से रात 08.15 बजे का मुहूर्त सर्वोत्तम माना गया है.
कुल अवधि: 01 घंटे 56 मिनट
पूजा सामग्री और विधि:
देवी लक्ष्मी और श्रीगणेश जी की सोने, चांदी, पीतल अथवा मिट्टी की मूर्ति, नारियल, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, रोली, कुमुकम, अक्षत, पान, सुपारी, मिट्टी, दीपक, रूई, कलावा, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, मौसमी फल, लाल कमल, गुलाब और गेंदे का फूल, जौ, गेहूं, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, पंचामृत, दूध, मेवे, बताशा, जनेऊ, श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टा की माला, शंख, थाली, आसन, हवन कुंड, हवन सामग्री, आम के पत्ते व खोए की मिठाई इत्यादि. शाम को शुभ मुहूर्त मां लक्ष्मी एवं श्रीगणेश जी की प्रतिमा की षोडषोपचार विधि से पूजा करते हैं. लक्ष्मी जी को कमल का फूल बहुत प्रिय है इसलिए एक कमल का फूल उन्हें पूजा के दरम्यान अवश्य अर्पित करना चाहिए.
लक्ष्मी पूजन की विधि
धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती की नई मूर्ति खरीदकर दिवाली की रात उनका पूजन किया जाता है. इस तरह करें महालक्ष्मी की पूजा:
मूर्ति स्थापना: सबसे पहले एक चौकरी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती की प्रतिमा रखें. अब जलपात्र या लोटे से चौकी के ऊपर पानी छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें.
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा । य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि: ।।
धरती माता को प्रणाम: इसके बाद अपने ऊपर और अपने पूजा के आसन पर जल छिड़कते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें.
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ: ग ऋषि: सुतलं छन्द: कूर्मोदेवता आसने विनियोग: ।।
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् नम: ।।
पृथ्वियै नम: आधारशक्तये नम: ।।
आचमन: अब इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए गंगाजल से आचमन करें.
ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ॐ माधवाय नम:
ध्यान: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी का ध्यान करें.
या सा पद्मासनस्था विपुल-कटि-तटी पद्म-पत्रायताक्षी,
गम्भीरार्तव-नाभि: स्तन-भर-नमिता शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया ।
या लक्ष्मीर्दिव्य-रूपैर्मणि-गण-खचितैः स्वापिता हेम-कुम्भैः,
सा नित्यं पद्म-हस्ता मम वसतु गृहे सर्व-मांगल्य-युक्ता ।।
आवाह्न: दिए गए इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी का आवाह्न करें.
आगच्छ देव-देवेशि! तेजोमयि महा-लक्ष्मी !
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते !
।। श्रीलक्ष्मी देवीं आवाह्यामि ।।
पुष्पांजलि आसन: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए हाथ में पांच पुष्प अंजलि में लेकर अर्पित करें.
नाना रत्न समायुक्तं, कार्त स्वर विभूषितम् ।
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्यर्थं प्रति-गह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्मी-देव्यै आसनार्थे पंच-पुष्पाणि समर्पयामि ।।
स्वागत: अब स्वागतम् मंत्र का उच्चारण करते हुए माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती का स्वागत करें.
पाद्य: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी के चरण धोने के लिए जल अर्पित करें.
पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो: !
भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्मी ! नमोsस्तुते ।।
।। श्रीलक्ष्मी-देव्यै पाद्यं नम: ।।
अर्घ्य: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी को अर्घ्य दें.
नमस्ते देव-देवेशि ! नमस्ते कमल-धारिणि !
नमस्ते श्री महालक्ष्मी, धनदा देवी ! अर्घ्यं गृहाण ।
गंध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं, फल-द्रव्य-समन्वितम् ।
गृहाण तोयमर्घ्यर्थं, परमेश्वरि वत्सले !
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै अर्घ्यं स्वाहा ।।
स्नान: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं. फिर दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण यानी कि पंचामृत से स्नान कराएं. आखिर में शुद्ध जल से स्नान कराएं.
गंगासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलै: ।
स्नापितासी मय देवी तथा शांतिं कुरुष्व मे ।।
आदित्यवर्णे तपसोsधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोsथ बिल्व: ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायश्र्च ब्रह्मा अलक्ष्मी: ।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै जलस्नानं समर्पयामि ।।
वस्त्र: अब मां लक्ष्मी को मोली के रूप में वस्त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें.
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेsस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे ।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै वस्त्रं समर्पयामि ।।
आभूषण: अब इस मंत्र का उच्चारण करते हुए मां लक्ष्मी को आभूषण चढ़ाएं.
रत्नकंकड़ वैदूर्यमुक्ताहारयुतानि च ।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व मे ।।
क्षुप्तिपपासामालां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वात्रिर्णद मे ग्रहात् ।।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै आभूषणानि समर्पयामि ।।
सिंदूर: अब मां लक्ष्मी को सिंदूर चढ़ाएं.
ॐ सिन्दुरम् रक्तवर्णश्च सिन्दूरतिलकाप्रिये ।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दुरम् प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै सिन्दूरम् सर्पयामि ।।
कुमकुम: अब कुमकुम समर्पित करें.
ॐ कुमकुम कामदं दिव्यं कुमकुम कामरूपिणम् ।
अखंडकामसौभाग्यं कुमकुम प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै कुमकुम सर्पयामि ।।
अक्षत: अब अक्षत चढ़ाएं.
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुंकमाक्ता: सुशोभिता: ।
मया निवेदिता भक्तया पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै अक्षतान् सर्पयामि ।।
गंध: अब मां लक्ष्मी को चंदन समर्पित करें.
श्री खंड चंदन दिव्यं, गंधाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं महालक्ष्मी चंदनं प्रति गृह्यताम् ।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै चंदनं सर्पयामि ।।
पुष्प: अब पुष्प समर्पिम करें.
यथाप्राप्तऋतुपुष्पै:, विल्वतुलसीदलैश्च ।
पूजयामि महालक्ष्मी प्रसीद मे सुरेश्वरि ।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै पुष्पं सर्पयामि ।।
अंग पूजन: अब हर एक मंत्र का उच्चारण करते हुए बाएं हाथ में फूल, चावल और चंदन लेकर दाहिने हाथ से मां लक्ष्मी की प्रतिमा के आगे रखें.
ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि ।
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि ।
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि ।
ॐ कात्यायन्यै नम: नाभि पूजयामि ।
ॐ जगन्मात्रै नम: जठरं पूजयामि ।
ॐ विश्व-वल्लभायै नम: वक्ष-स्थलं पूजयामि ।
ॐ कमल-वासिन्यै नम: हस्तौ पूजयामि ।
ॐ कमल-पत्राक्ष्यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि ।
ॐ श्रियै नम: शिर पूजयामि ।
यह सब कार्य पूर्ण करने के बाद अब मां श्री गणेश, माता लक्ष्मी और देवी सरस्वती को धूप, दीपक और नैवेद्य (मिष्ठान) समपर्ति करें. फिर उन्हें पानी देकर आचमन कराएं. इसके बाद ताम्बूल अर्पित करें और दक्षिणा दें. फिर अब माता लक्ष्मी की बाएं से दाएं प्रदक्षिणा करें. अब श्री गणेश, माता लक्ष्मी और देवी सरस्वती को साष्टांग प्रणाम कर उनसे पूजा के दौरान हुई भूल के लिए माफी मांगे. इसके बाद मां लक्ष्मी की आरती उतारें. नीचे दिए गए वीडियो में पूरी आरती कही गयी है.
माता लक्ष्मी की आरती
दिवाली के अगले दिन यानी रविवार की भोर (सूर्योदय) से पूर्व घरों से दरिद्रा भगाने की भी परंपरा है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसके तहत दीपावली की रात गृहणियां सोने से पहले घरों के आंगन या बालकोनी में पुराना सूप व एक छड़ी किसी ईंट से दबाकर रख देती हैं. भोर में उठते ही बासी मुंह सूप को छड़ी से पीटते हुए घर के भीतर की दरिद्रा को भगाते हुए कहती हैं, दरिद्रा भाग रे बाहर, माता लक्ष्मी आ जा भीतर, ऐसा कहते हुए घर के करीबी चौराहे तक जाकर वापस आती हैं.