Chhath Puja 2019: भगवान राम और द्रोपदी ने भी की थी छठ पूजा, रामायण-महाभारत काल से है इस व्रत का संबंध, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं
छठ पूजा का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम और सीता ने छठ पूजा की थी, जबकि द्वापर युग में द्रौपदी और दानवीर कर्ण ने भी यह व्रत किया था. इसके अलावा बताया जाता है कि राजा प्रियवद ने सबसे पहले छठी मईया की पूजा की थी.
Chhath Puja 2019: छठ पूजा (Chhath Puja) चार दिनों का महापर्व है जिसकी शुरुआत कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को इसका समापन होता है. नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर से छठ पूजा के पर्व की शुरुआत हो गई है और इसका समापन 3 नवंबर को उगते हुए सूर्य (Surya Bhagwan) को अर्घ्य देने के बाद होगा. छठ पूजा के लिए व्रती लगातार 36 घंटे तक निर्जल व्रत रखते हैं. यह व्रत जितना कठिन है, उतने ही कठोर इससे जुड़े नियम भी हैं, जिनका पालन छठ का व्रत रखने वालों को करना पड़ता है. छठ पूजा में छठी मईया (Chhathi Maiya) और सूर्य देव (Surya Dev) की उपासना की जाती है. हालांकि सूर्य देव और छठी मईया की पूजा की इस परंपरा का जिक्र हमारे धार्मिक ग्रंथों के पौराणिक कथाओं में भी मिलता है.
छठ पूजा का इतिहास रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम और सीता ने छठ पूजा की थी, जबकि द्वापर युग में द्रौपदी और दानवीर कर्ण ने भी यह व्रत किया था. इसके अलावा बताया जाता है कि राजा प्रियवद ने सबसे पहले छठी मईया की पूजा की थी. चलिए जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथाएं.
सिया-राम ने की थी सूर्य की उपासना
सूर्य की उपासना की यह परंपरा रामायण काल से चली आ रही है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में लंकापति रावण का वध करने के बाद जब श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तब उन्होंने रामराज्य की स्थापना के लिए सूर्य की उपासना की थी. भगवान राम और माता सीता ने कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत रखा था और सूर्य देव की पूजा-अर्चना की थी. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2019 Wishes & Messages: नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ छठ पूजा का महापर्व, भेजें ये हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, SMS, GIF Images, Wallpapers और दें प्रियजनों को बधाई
द्रौपदी ने रखा था छठ पूजा का व्रत
छठ पूजा का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में द्रौपदी ने यह व्रत किया था. माना जाता है कि द्रौपदी ने छठ का व्रत पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए किया था. द्रौपदी ने व्रत रखकर छठी मईया और सूर्य देव की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था.
दानवीर कर्ण ने की थी सूर्य देव की पूजा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य पुत्र दानवीर कर्ण प्रतिदिन सूर्य देव की उपासना करता था. महाभारत की कथा के मुताबिक कर्ण ने ही सबसे पहले सूर्य देव की पूजा शुरू की थी. वे सूर्य पुत्र होने के साथ-साथ उनके परम भक्त भी थे. वे रोजाना घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे, जिसके परिणामस्वरुप सूर्य देव की कृपा से वे एक महान योद्धा बने. यही वजह है कि आज भी छठ पूजा के दौरान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बरकरार है.
राजा प्रियवद ने की थी छठ पूजा
एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, राजा प्रियवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी, जिसे लेकर दोनों काफी दुखी थे. संतान प्राप्ति की इच्छा से राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्ट यज्ञ करवाया. इस यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती हुईं, लेकिन उन्होंने मृत बेटे को जन्म दिया. इस बात से राजा प्रियवद व रानी मालिनी काफी दुखी हुए और दोनों ने संतान प्राप्ति की उम्मीद छोड़ दी. यह भी पढ़ें: Chhath Puja 2019: नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर से शुरू हो रहा है सूर्य की उपासना का पर्व, जानें छठ पूजा की तिथि, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व
पुत्र वियोग में राजा ने आत्महत्या का मन बना लिया, जैसे ही वे खुद को मारने के लिए आगे बढ़े, ठीक उसी समय षष्ठी देवी प्रकट हुईं. उन्होंने राजा से कहा कि अगर तुम मेरी पूजा करोगे तो तुम्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. इसके बाद राजा ने कार्तिक महीने की शुक्ल षष्ठी को व्रत रखकर देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से छठी मईया प्रसन्न हुईं और राजा प्रियवद व रानी मालिनी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
गौरतलब है कि सूर्य की उपासना और छठी मईया की आराधना के पर्व छठ पूजा को विधि-विधान से पूर्ण करने पर सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य और संतान के लिए रखा जाता है. छठी मईया को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है, इसलिए कहा जाता है कि छठ पूजा के दौरान डूबते हुए और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.