हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है. हिंदी पंचांग के अनुसार साल में चार नवरात्रि आते हैं. पहली नवरात्रि चैत्र मास में, दूसरी आषाढ़ मास में, तीसरी आश्विन मास (शारदीय नवरात्रि) और चौथी माघ मास में पड़ती है. इसमें आषाढ़ और माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, जो तंत्र-मंत्र की सिद्धी के लिए अघोरी संत मनाते हैं, जबकि चैत्रीय एवं शारदीय नवरात्रि हर हिंदू घरों में पूरे विधि-विधान के साथ मनायी जाती है. Gudi Padwa 2022: कब है गुड़ी पड़वा? जानें इस पर्व का महात्म्य एवं मान्यताएं, इसका सेलिब्रेशन और कैसे और क्यों लगाते हैं गुड़ी?
इन चारों ग्रंथों का जिक्र देवी भागवत के साथ-साथ अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी किया गया है. यहां बात करेंगे चैत्रीय और शारदीय नवरात्रि की. आखिर साल में हम दो नवरात्रि क्यों मनाते हैं. दोनों में क्या फर्क है आइये जानते हैं.
चैत्रीय नवरात्रि एवं शारदीय नवरात्रि में कुछ बातों में समानता देखने को मिलती है, पहला यह कि दोनों ही नवरात्रि में माँ दुर्गा की नौ शक्तियों की पूजा की जाती है. दूसरी समानता यह कि दोनों ही ऋतु परिवर्तन का प्रतीक स्वरूप होती हैं.
यानी चैत्रीय नवरात्रि में शीत ऋतु समाप्त और ग्रीष्म ऋतु शुरु होती है, जबकि शारदीय नवरात्रि में ग्रीष्म ऋतु समाप्त और शीत ऋतु का आगमन होता है. अब जहां तक साल में दो नवरात्रि मनाने की बात है तो यह तीन वजहों प्राकृतिक, भौगोलिक और आध्यात्मिक के कारण मनाई जाती है. सबसे पहले बात प्राकृतिक कारणों की करेंगे.
मौसम परिवर्तन!
भारत में मुख्यत तीन ऋतुएं होती हैं, ग्रीष्म, बरसात एवं शीत ऋतु. नवरात्रि का पर्व हर्ष, आस्था एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह तभी संभव है, जब आप मौसम की विभीषिका से मुक्त रहें. और साल में ऐसा दो ही समय होता है, एक जब शीत ऋतु की विदाई और गर्मी के शुरुआत का समय और दूसरा बरसात की समाप्ति और शीत के आगमन का समय होता है. दोनों ही समय मौसम खुशगवार रहता है. लगता है कि प्रकृति माता की इस शक्ति के उत्सव में मौसम को अनुकूल बनाने की पृष्ठभूमि तैयार करती है. ये खुशनुमा माहौल पर्व की महत्ता और खुशियों को द्विगुणित करते हैं.
भौगोलिक परिवर्तन!
भौगोलिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करने पर इस बात की पुष्टि होती है कि साल में मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर का समय ऐसा होता है, जब दिन और रात दोनों की लंबाई समान होती है, और चूंकि नवरात्रि नौ दिनों तक सेलीब्रेट किये जाने वाला पर्व है और श्रद्धालु नौ दिनों तक उपवास रहकर शक्ति की पूजा करते हैं, तो दिन और रात समान होने के कारण व्रत रखने वाले का शारीरिक और मानसिक संतुलन भी बना रहता है, तो इस भौगोलिक समानता की वजह से भी एक साल में इन दोनों नवरात्रि को मनाया जाता है.
पौराणिक मान्यताएं!
साल दो नवरात्रि की एक वजह इसके पीछे की पौराणिक कथाएं भी हैं. सतयुग से पूर्व नवरात्रि का पर्व केवल ग्रीष्मकाल शुरु होने से पूर्व मनाया जाता था, लेकिन सतयुग में श्रीराम ने पृथ्वी पर आतंक का केंद्र बने लंका पर आक्रमण कर रावण का संहार करने के बाद वे शक्ति रूपिणी दुर्गा मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्रि तक प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने दुर्गापूजा का विशाल आयोजन करवाया था. कहते हैं कि इसके बाद से ही साल में दो बार नवरात्रि मनाने की परंपरा शुरु हुई.