Buddha Purnima 2021: बुद्ध पूर्णिमा का महात्म्य! जानें सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बनने की दिव्य कथा!

हमेशा की तरह इस वर्ष भी वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनायी जा रही है.. मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान बुद्ध ने सिद्धार्थ के रूप में जन्म लिया था, इसी तिथि पर बुद्धत्व को प्राप्त हुए, भगवान कहलाए और इसी तिथि को उन्होंने देह भी त्यागा.

Buddha Purnima 2021 (Photo Credits: File Image)

हमेशा की तरह इस वर्ष भी वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती (Buddha Jayanti 2021) मनायी जा रही है.. मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान बुद्ध ने सिद्धार्थ के रूप में जन्म लिया था, इसी तिथि पर बुद्धत्व को प्राप्त हुए, भगवान कहलाए और इसी तिथि को उन्होंने देह भी त्यागा. पूरी दुनिया में उनके लगभग 180 करोड़ अनुयायी इस दिन को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह पर्व 25 मई को यानी आज मनाया जा रहा है. यह भी पढ़ें: Buddha Purnima 2021 Messages: हैप्पी बुद्ध पूर्णिमा! अपनों संग शेयर करें ये शानदार हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Quotes और GIF Images

बुद्ध पूर्णिमा का महात्म्य!

अपने जीवन में महात्मा बुद्ध ने जब हिंसा, पाप और मृत्यु के बारे में जाना, तभी उन्होंने मोह-माया का त्याग कर घर-परिवार छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली और सत्य कीखोज में निकल पड़े थे. इसके बाद ही उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ. वैशाख पूर्णिमा की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है, इसलिए बौद्ध धर्म में प्रत्येक वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है. ऐसी भी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने नौवें अवतार में भगवान बुद्ध के रूप में अवतार लिया था.

सिद्धार्थ उर्फ बुद्ध की बाल्यावस्था

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी महारानी महामाया देवी जब अपने मायके देवदह जा रही थीं, तभी कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी के जंगल में महामाया ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सिद्धार्थ था. यह 563 ईसा पूर्व की बात है. उस समय कपिलवस्तु शाक्य महाजनपद की राजधानी थी. सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन के बाद ही मां की मृत्यु हो गयी. उनका लालन-पालन शुद्धोधन की दूसरी पत्नी प्रजापति गौतमी ने किया था. सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद, उपनिषद, एवं राजकाज और युद्ध विद्या की शिक्षा प्राप्त की. कहा जाता है कि कुश्ती, घुड़सवारी एवं तीर कमान में उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था. सिद्धार्थ बचपन से ही किसी की तकलीफ नहीं देख पाते थे. बताते हैं कि युद्ध के मैदान में वह घोड़ों के मुंह से झाग निकलते देखते तो उसे थका मानकर उसे आराम करने देते थे. इस तरह कभी-कभी वह जीती हुई बाजी हार जाते थे. यह भी पढ़ें: Buddha Purnima Greetings 2021: बुद्ध पूर्णिमा पर ये हिंदी ग्रीटिंग्स WhatsApp, Facebook Status के जरिए भेजकर दें शुभकामनाएं

दिव्य महलों का सुख भी उन्हें संन्यास लेने से नहीं रोक सका

16 साल की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह दंडपाणि शाक्य की बेटी यशोधरा से हो गया. सिद्धार्थ के विवाह के पश्चात शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के ऐशो-आराम का ध्यान रखते हुए उनके लिए तीन महल बनवाए थे, जहां एक ही समय में तीन ऋतुओं का आनंद लिया जा सकता था. लेकिन सिद्धार्थ एवं यशोधरा के पुत्र राहुल के जन्म के बाद सिद्धार्थ ने महसूस किया कि इस तरह तो वे सांसारिक बंधनों में बंधकर रह जायेंगे. एक रात उन्होंने बिना किसी को बताए घर त्याग कर वन की ओर निकल गये.

इस तरह सिद्धार्थ बनें भगवान बुद्ध!

महल छोड़ने के पश्चात सिद्धार्थ वन में एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर घोर तपस्या में लीन हो गए. निरंतर 6 वर्ष तक कठिन तपस्या करने के पश्चात वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें सच्चा बोध यानी ज्ञान की प्राप्ति हुई और तभी से वे बुद्ध कहलाए. ज्ञान प्राप्त होने के बाद पश्चात भगवान बुद्ध 4 सप्ताह तक उसी बोधि वृक्ष के नीचे साधना में लीन रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करते रहे. बुद्धत्व की प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी के पास सारनाथ में दिया था. इसके बाद धर्म का उपदेश देने वे देश विदेश के भ्रमण पर निकल गए. 483 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध पंचतत्व में विलीन हो गए. इस दिन को परिनिर्वाण दिवस भी कहा जाता है.

Share Now

\