Balram Jayanti 2019: भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम थे शेषनाग के अवतार, जानिए क्या है इस जयंती का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनाई जाती है. बलराम जयंती का पर्व इस साल 21 अगस्त 2019 को मनाया जाएगा. बलराम जयंती को हलषष्ठी और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है
Balram Jayanti 2019 Date: भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) की नटखट लीलाओं से तो हर कोई वाकिफ है और उनके बड़े भाई बलराम (Balrama) के बारे में भी लोग जानते हैं. बलराम दाऊ (Balram) को शेषनाग (Sheshnag) का अवतार माना जाता है और शेषनाग की शैया पर भगवान विष्णु शयन करते हैं. मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के हर अवतार के साथ शेषनाग का भी अवतार हुआ है और वे सदा विष्णु के हर अवतार के साथ रहे. द्वापर युग में भी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से पहले बलराम का जन्म हुआ था. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनाई जाती है. बलराम जयंती का पर्व इस साल 21 अगस्त 2019 को मनाया जाएगा.
देश के विभिन्न हिस्सों में बलराम जयंती का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. चलिए जानते हैं बलराम जयंती का महत्व (Significance of Balram Jayanti), शुभ तिथि (Shubh Tithi) और उनके जन्म से जुड़ी रोचक कथा.
बलराम जयंति तिथि-
षष्ठी तिथि आरंभ- 21 अगस्त 2019 को सुबह 5.30 बजे से,
षष्ठी तिथि समाप्त- 22 अगस्त 2019 को सुबह 7.06 बजे तक.
कैसे हुआ था बलराम का जन्म?
श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को शक्ति का प्रतीक माना जाता है. उन्हें एक आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और आदर्श पति भी माना जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, बलराम मां देवकी के सातवें गर्भ थे, लेकिन देवकी की हर संतान को कंस जन्म लेते ही मार देता था. ऐसे में बलराम का बचना बहुत मुश्किल था. कहा जाता है कि देवकी और वासुदेव के तप से देवकी का यह सत्व गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में प्रत्यापित हो गया था और देवकी के सातवें गर्भ के गिरने की खबर फैल गई. हालांकि वासुदेव की पहली पत्नी के सामने संकट यह था कि पति कैद में है तो वो गर्भवती कैसे हो सकती है, इसलिए लोक निंदा से बचने के लिए जन्म के तुरंत बाद ही बलराम को नंद बाबा के यहां पलने के लिए भेज दिया गया था.
राजा कुडुंबी की बेटी रेवती से हुआ था विवाह
गर्ग संहिता के अनुसार, बलराम का विवाह पाताल लोक स्थित कुशस्थली के राजा कुडुंबी की पुत्री रेवती से हुआ था. कहा जाता है कि रेवती अपने पूर्व जन्म में पृथ्वी के राजा मनु की पुत्री ज्योतिष्मती थीं और वो सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से विवाह करना चाहती थीं, जिसके बाद उन्होंने शेषनाग को पति के रूप में पाने के लिए ब्रह्मा जी का तप किया . ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि द्वापर युग में उनका विवाह शेषनाग अवतार बलराम से होगा. द्वापर युग में ज्योतिष्मती का जन्म कुडुंबी राजा के यहां हुआ और उनका नाम रेवती रखा गया. हालांकि दिक्कत यह थी कि पाताल लोक में जन्म लेने के कारण रेवती की कद-काठी बहुत लंबी-चौड़ी दिखती थी और वो सामान्य लोगों के सामने दानव नजर आती थीं. कहा जाता है कि हलदर ने रेवती के आकार को हल की मदद से सामान्य कर दिया, जिसके बाद उनका विवाह बलराम से हुआ. यह भी पढ़ें: Holi 2019: कृष्ण जन्मभूमि ब्रज में बलराम-राधा के बीच खेली गई होली से लोकप्रिय हुई देवर-भाभी की होली, कैसे जानिए
संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं रखती हैं यह व्रत
हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन शेषनाग श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के रुप में अवतरित हुए थे. बलराम जयंती को हलषष्ठी और हरछठ के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि बलराम का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, इसलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है. इस दिन बिना चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी खाने का महत्व है. इस दिन गाय के दूध व दही के सेवन को वर्जित माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन संतान की कामना करके जो महिलाएं व्रत रखती हैं और विधि-विधान से पूजा करती हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है.