कैसे पहचानें असली कश्मीरी पश्मीना शॉल, सरकार के इस कदम से अब होगा बेहद आसान

कश्मीर के पश्मीना शॉल का व्यवसाय करने वालों के चाहरे पर मुस्कान फिर से लौट आई है. जी हां, जीआई टैग की वजह से दोबारा से पश्मीना शॉल का काम करने वाले मेहनतकश लोगों को उनकी असल पहचान देने में मदद मिल रही है. पश्मीना शॉल में नक़ल बाज़ारी से असल कामगारों को उनका हक़ नहीं मिल पा रहा था.

पश्मीना शॉल (Photo Credits: Wikimedia Commons)

कश्मीर के पश्मीना शॉल (Pashmina Shawl) का व्यवसाय करने वालों के चाहरे पर मुस्कान फिर से लौट आई है. जी हां, जीआई टैग की वजह से दोबारा से पश्मीना शॉल का काम करने वाले मेहनतकश लोगों को उनकी असल पहचान देने में मदद मिल रही है. पश्मीना शॉल में नक़ल बाज़ारी से असल कामगारों को उनका हक़ नहीं मिल पा रहा था.

पश्मीना कारोबारियों को निराशा के बीच मिली आशा की किरण श्रीनगर ओल्ड सिटी में पश्मीना कारोबारी शौक़त को निराशा के बीच आशा की एक किरण जगी जब जीआइ टैग के बारे में उन्हें पता चला. दरअसल, मशीन के काम और पश्मीना डुप्लिकेसी ने उनके इस परम्परागत व्यवसाय को चौपट कर दिया था. मशीन वर्क और नकली पश्मीना के चलते इनकी हाथ के काम और सौ फीसद असली पश्मीना के उत्पादों की ख़रीद महंगा होने की वजह से कम हो गई थी क्योंकि पश्मीना के नाम पर कई वराइयटी सस्ते दामों पर बाज़ार में आ गई. लेकिन अब जी आइ टैग ने इनकी समस्या का समाधान कर दिया है.

पश्मीना अब 'मेक इन इंडिया' का हिस्सा

इस संबंध में पश्मीना कारोबारी शौकत बताते हैं कि अब यह 'मेक इन इंडिया' का हिस्सा है. अब यहां के कारीगर जो भी पश्मीना बनाते हैं वह मेक इन इंडिया के तहत ही आता है. इसमें कोई बाहर की चीज नहीं आ रही है. वे कहते हैं कि अब केवल जीआई टैग के बारे में लोगों को और अधिक जागरूक करने की जरूरत है.

बिलो ग्रेडेड पश्मीना से असली पश्मीना व्यपारियों की छवी खराब होने से बचेगी

इन्हीं के जैसे दूसरे व्यवसायी भी सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं. वे कहते हैं कि नकली या बिलो ग्रेडेड पश्मीना से असली पश्मीना व्यपारियों की छवी भी खराब हो रही थी. ग्राहक कई गुना सस्ता माल बाजार से उठा तो रहे थे लेकिन क्वालिटी न मिलने से नाराज भी थे. इससे कश्मीर का नाम बेहद खराब हो रहा था सो अलग. ऐसे में सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम कश्मीर के पश्मीना कारोबारियों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है. इससे पश्मीना कारोबारी भी बेहद खुश हैं.

सरकार को जीआई टैग के प्रचार में लानी होगी और तेजी

कारोबारियों का कहना है कि सरकार को जीआई टैग के प्रचार में और तेजी लानी चाहिए, जिससे ग्राहकों की जानकारी उन तक पहुंचे और सही पश्मीना भी. पश्मीना व्यवसाली फैज़ अहमद खान कहते हैं कि जब से जीआई टैग आया है तब से पश्मीना के कारोबार में एक नई जान आ गई है.

क्या होता है जीआई टैग और ये कैसे असली और नकली की करवाता है पहचान 
विश्वसनियता के प्रतीक जीआई टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग किसी भी उत्पाद पर साइंटिफिक तरीके से कई स्तरीय जांच के बाद लगाया जाता है. इसी टैग को देखकर ही आप अब असली पश्मीना शॉल की पहचान कर सकते हैं. पश्मीना की जांच करते समय मैटेरियल माइक्रोन, स्पाइनिंग, विविंग को देखा जाता है. पश्मीना टेस्टिंग सेंटर के एक्सपर्ट यूनुस बताते हैं कि इसमें पशमीना शॉल से फाइबर को निकालकर जीआई टेस्ट करते हैं और जांचते हैं कि यह गुणवत्ता के लिहाज से 100 प्रतिशत पश्मीना है या नहीं और इसमें मौजूद माइक्रोन की मोटाई 16 माइक्रोन से नीचे है या नहीं.
पश्मीना शॉल उत्तरी भारत और नेपाल और हिमालय के उच्च स्थानों पर पाई जाने वाली पश्मीना बकरियों के बालों से बनाई जाती है. पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी पश्मीना शॉल की इसी गर्माहट के कारण काफी मांग है. और ये शॉल दूसरी शॉल के बनिसबत महंगी बिकती हैं.
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