Devika Rani’s Birth Anniversary 2022: अशोक कुमार, दिलीप कुमार और मधुबाला को स्टारडम देनेवाली देविका रानी की खुद की जिंदगी ज्वारा-भाटा सी क्यों रही? जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलू!
देविका रानी ने जब हिंदी सिनेमा में कदम रखा, तब तक सभ्य परिवार की लड़कियों के लिए फिल्मों में काम करना अकल्पनीय माना जाता था. जबकि देविका एक शिक्षित एवं धनाढ्य परिवार से थीं. देविका रानी ने ना केवल अपनी पहली फिल्म कर्मा से इतिहास रचा, बल्कि उन्होंने इस फिल्म में चार मिनट का लंबा स्मूच सीन देकर हिंदी सिने जगत में सनसनी फैला दी थी.
देविका रानी ने जब हिंदी सिनेमा में कदम रखा, तब तक सभ्य परिवार की लड़कियों के लिए फिल्मों में काम करना अकल्पनीय माना जाता था. जबकि देविका एक शिक्षित एवं धनाढ्य परिवार से थीं. देविका रानी ने ना केवल अपनी पहली फिल्म कर्मा से इतिहास रचा, बल्कि उन्होंने इस फिल्म में चार मिनट का लंबा स्मूच सीन देकर हिंदी सिने जगत में सनसनी फैला दी थी. यद्यपि उन्हें ‘किसिंग क्वीन’ एवं हिंदी सिनेमा की पहली महिला होने का खिताब भी इसी फिल्म से मिला. अशोक कुमार, दिलीप कुमार एवं मधुबाला को स्टार बनाकर उन्होंने अपनी दूरदर्शिता का भी लोहा मनवाया. यद्यपि उनकी खुद की निजी जिंदगी किसी ज्वार-भाटा जैसी ही रही. देविका रानी की 114वीं वर्षगांठ पर आइये जानें उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलू.
जन्म एवं शिक्षा
देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 में वॉल्टेयर (विशाखापट्टनम) में एक धनाढ्य बंगाली परिवार में हुआ था. पिता कर्नल एमएन चौधरी मद्रास प्रेसीडेंसी देश के पहले सर्जन जनरल, और चाचा कलकत्ता के सुविख्यात एडवोकेट थे. वे विश्वविख्यात महाकवि एवं नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर की वंशज भी थीं. स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1920 में िलंदन के रायल एकेडमी ऑफ आर्ट (RADA) से आर्किटेक्चर, टेक्सटाइल और डेकोर डिजाइन की डिग्री लेने के बाद वह एलिजाबेथ आर्डन में काम करने लगीं. उन्होंने वास्तुकला में डिप्लोमा भी हासिल किया. लंदन में बुस्र बुल्फ नामक फिल्म निर्माता उनकी वास्तुकला से प्रभावित होकर उन्हें अपनी कंपनी में बतौर डिजाइनर नियुक्त कर लिया. लेकिन देविका हिंदी फिल्मों में अभिनय करना चाहती थीं, इसलिए वह लंदन से भारत वापस आ गईं.
कास्टिंग डायरेक्टर से फिल्म निर्माण तक
साल 1928 में देविका रानी की हिमांशु राय से मुलाकात उन्हीं की एक एक्सपरिमेंटल मूक फिल्म ‘ए थ्रो ऑफ़ डाइस’ के सेट पर हुई. हिमांशु ने देविका को कॉस्टयूम डिज़ाइनर के रूप में नियुक्त कर लिया. लेकिन पहली ही नजर में वह देविका की खूबसूरती औऱ बिंदासपन के फैन हो चुके थे. साल 1929 में दोनों ने शादी कर ली. विवाह के बाद हिमांशु राय को जर्मनी के सुविख्यात यू॰एफ॰ए॰ स्टुडिओ में 'ए थ्रो ऑफ डाइस' नामक फिल्म निर्माण का काम मिल गया, दोनों जर्मनी आ गये. एक दिन उन्होंने खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरु करने का फैसला किया और हिंदुस्तान लौट आये.
किस्सा ‘किसिंग क्वीन’ का!
साल 1932 में दोनों भारत आये, और फिल्म कर्मा शुरु की हिमांशु राय और देविका रानी फिल्म में मुख्य भूमिका में थे. 1933 में कर्मा का प्रीमियर लंदन में विंडसर प्लेस में शाही परिवार के समक्ष किया गया. इस तरह युरोप में रिलीज होनेवाली कर्मा पहली भारतीय फिल्म, और देविका पहली महिला स्टार बनीं. फिल्म में देविका और हिमांशु का 4 मिनट का लंबा किसिंग सीन था, जो आज भी भारतीय फिल्म जगत का सबसे लंबा किसिंग सीन माना जाता है. स्क्रिप्ट के अनुसार बेहोश नायक (हिमांशु राय) को होश में लाने के लिए नायिका (देविका) को चार मिनट का स्मूच करना पड़ा था. यह स्मूचिंग मीडिया में लंबे समय तक सुर्खियों में रहा. इसी वजह से फिल्म को बैन भी किया गया. लेकिन तब तक देविका ‘किसिंग क्वीन’ के रूप में सुर्खियां बटोर चुकी थीं. यह भी पढ़ें : Gudi Padwa 2022: कब है गुड़ी पड़वा? जानें इस पर्व का महात्म्य एवं मान्यताएं, इसका सेलिब्रेशन और कैसे और क्यों लगाते हैं गुड़ी?
अशोक कुमार, दिलीप कुमार और मधुबाला को स्टार बनाना!
देविका रानी और हिमांशु राय ने बड़े पैमाने पर बांबे टॉकीज़ स्टुडियो शुरु किया. यह देविका रानी की ही दूरदर्शिता थी, कि उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट कार्य कर रहे अशोक कुमार को बॉम्बे टाकीज की ‘अछूत कन्या’(1937) में नायक बनाने का रिस्क लिया, और उन्हें स्टार बना दिया. इसके बाद फल विक्रेता युसूफ खान को बाम्बे टाकीज की ज्वार भाटा में लांच करके उन्हें भी स्टारडम दिलवाया. युसूफ खान से दिलीप कुमार नाम देविका रानी ने ही दिया था. देविका ने ही मुमताज के नाम से छोटी-मोटी फिल्में कर रही मधुबाला को महल में अशोक कुमार के अपोजिट उतारा और रातों-रात उन्हें स्टार बना दिया. मुमताज को भी मधुबाला नाम देविका रानी ने ही दिया था.
ज्वारा-भाटा सी खुद की जिंदगी!
देविका रानी का फिल्मी जीवन भले ही बहुत खूबसूरत रहा, मगर उनका गृहस्थ जीवनज्वार भाटा की तरह अस्थिर ही रहा. हिमांशु राय की शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना से त्रस्त होकर वह बाम्बे टाकीज की फिल्म जीवन नैया के हीरो नजमुल हसन साथ घर से भाग कर कलकत्ता चली गईं. 1945 में देविका ने रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोएरिच से दूसरी शादी की और मनाली शिफ्ट हो गयीं. कुछ साल बाद बैंगलोर में उन्होंने एक्सपोर्ट कंपनी का व्यवसाय शुरु किया. लेकिन हिमांशु राय की मृत्यु के बाद बॉम्बे टाकीज के पार्टनर्स ने उन्हें बंबई बुलवाकर स्टूडियो संभालने की अपील की. 9 मार्च 1994 को हिंदी सिनेमा की यह पहली स्टार दुनिया को अलविदा कह गई.