Chaturmas 2019: चातुर्मास और इसका क्या है महात्म्य? किन देवी-देवता की होती है उपासना?

श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक, ये चार माह सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण माह माने जाते हैं. ये चारों मास ‘चातुर्मास’ के नाम से जाने जाते हैं. हिंदू आध्यात्म में इन महीनों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि चातुर्मास में भगवान विष्णु, भगवान शिव और माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना, व्रत, जप, हवन, यज्ञ होते हैं. ‘चातुर्मास’ का पर्व देवशयनी एकादशी से कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है.

भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक, ये चार माह सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण माह माने जाते हैं. ये चारों मास ‘चातुर्मास’ के नाम से जाने जाते हैं. हिंदू आध्यात्म में इन महीनों का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि चातुर्मास में भगवान विष्णु, भगवान शिव और माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना, व्रत, जप, हवन, यज्ञ होते हैं. ‘चातुर्मास’ का पर्व देवशयनी एकादशी से कार्तिक मास की प्रबोधिनी एकादशी तक चलता है. आध्यात्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि पूरे चातुर्मास तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं. इसलिए पूरे चातुर्मास तक हिंदू घरों में किसी भी तरह का शुभ अथवा मांगलिक कार्य सम्पन्न नहीं होते हैं. आखिर क्या है चातुर्मास और इसका महात्म्य. आइए जानें...

चातुर्मास में व्रत का महात्म्य 

हिंदू धर्म में व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीनों को हिन्दू धर्म में 'चातुर्मास' माना गया है. नियमित रूप से ध्यान, योग अथवा साधना करने वालों के लिए चातुर्मास का महत्व बढ़ जाता है. क्योंकि इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति के साथ ही सर्वत्र वातावरण भी खुशगवार रहता है. आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी तक के चार माह की अवधि को चातुर्मास कहते हैं. इन चार माह को व्रतों का माह इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इस दरम्यान हमारी पाचन शक्ति जहां कमजोर पड़ती है, वहीं बारीश का मौसम होने के कारण भोजन और जल में बैक्टीरिया की संख्या भी बढ़ जाती है. इसलिए संपूर्ण चातुर्मास तक व्यक्ति को व्रत का नियमित रूप से पालन करना चाहिए. व्रत भी शास्त्रों में लिखे नियमों के अनुसार होना चाहिए. इस माह फलाहारी वस्तुओं का ही सेवन करना चाहिए.

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चातुर्मास में किन देवी-देवता की पूजा होती है

आषाढ़ मास के शेष दिनों में वामन रूपी विष्णु और गुरू की पूजा का विशेष महत्व होता है. इससे जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है. इसके पश्चात श्रावण मास प्रारंभ होता है. श्रावण मास भगवान शिव का महीना होता है. भगवान शिव की विधिवत आराधना अथवा किसी एक ज्योतिर्लिंग का दर्शन एवं पूजन करना भी श्रेयस्कर माना जाता है. शिव जी की पूजा करने से उनका आशीर्वाद सहजता से मिलती है. शिवजी की पूजा करने से विवाह के लिए आ रही सारी रुकावटें दूर हो जाती हैं. जीवन में सुख और दीर्घायु प्राप्त होती है. श्रावण माह की समाप्ति के पश्चात भाद्रपद का महीना शुरू होता है. भाद्रपद में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए इस माह में श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने से संतान और विजय का वरदान प्राप्त होता है.

भाद्रपद के पश्चात आश्विन माह में श्रीराम की उपासना की जाती है. इससे विजय, शक्ति और आकर्षण का वरदान मिलता है. इसके अलावा आश्विन माह में देवी और शक्ति की पूजा भी होती है. अश्विन माह के शुक्लपक्ष की पड़वा यानी पहली तिथि से नौवीं तिथि तक प्रत्येक दिन एक शक्ति यानी नौ दिनों तक नौ शक्तियों की पूजा आराधना होती है. नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई शक्ति पाई थी. इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया जाता है आश्विन मास के पश्चात कार्तिक माह में पुनः भगवान विष्णु का जागरण होता है, और सृष्टि में मंगल कार्य पुनः प्रारंभ हो जाते हैं. इस माह में श्रीहरि और तुलसी की उपासना होती है. इससे राजसुख, मुक्ति तथा मोक्ष का वरदान मिलता है. इसके साथ ही गायत्री मंत्र, पीपल की पूजा और एक समय के आहार से भक्ति के साथ साथ दीर्घायु की भी प्राप्ति होती है.

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चातुर्मास में संयमित और नियमित जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए. इन चार माहों तक फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है. उठने के बाद स्नान-ध्यान करने के पश्चात ज्यादा से ज्यादा समय मौन रहने की कोशिश करनी चाहिए. जिस तरह से साधु-संन्यासी के नियम होते हैं. दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए.

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