Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी की महिमा है अनंत, श्री विष्णु जी की पूजा-व्रत-कथा से दूर होते हैं सारे कष्ट!
भाद्रपद मास में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को ‘अनंत चतुर्दशी’ अथवा ‘अनंत चौदस’ कहते हैं. सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन श्री हरि (विष्णु जी) की पूजा होती है, जिन्हें शास्त्रों में अनंत भगवान के नाम से उल्लेख किया गया है. विधिवत पूजा के पश्चात बांह पर चौदह गांठों से युक्त अनंत सूत्र बांधने का विधान है.
Anant Chaturdashi 2019: भाद्रपद मास में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को ‘अनंत चतुर्दशी’ अथवा ‘अनंत चौदस’ कहते हैं. सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन श्री हरि (विष्णु जी) की पूजा होती है, जिन्हें शास्त्रों में अनंत भगवान के नाम से उल्लेख किया गया है. विधिवत पूजा के पश्चात बांह पर चौदह गांठों से युक्त अनंत सूत्र बांधने का विधान है. इसी तिथि पर श्री गणेश जी का 11वें दिन का (अंतिम) विसर्जन भी होता है. इन वजहों से इस पर्व का महात्म्य और भी बढ़ जाता है. देश के पूर्व एवं उत्तर से लेकर दक्षिण तक के कई राज्यों में अनंत चतुर्दशी के साथ-साथ गणेश जी के विसर्जन का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. दो मुहूर्तों में होती है पूजा-अर्चना सनातन धर्म के अनुसार अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन रखा जाता है. लेकिन इस व्रत को रखने से पूर्व हिंदू पंचांग को ध्यान से पढ़ लेना चाहिए.
क्योंकि अनंत चतुर्दशी की तिथि सूर्योदय के पश्चात दो मुहूर्तों में होनी चाहिए. अगर किन्हीं वजहों से दो मुहूर्तों से पहले ही अनंत चतुर्दशी की तिथि समाप्त हो रही है, तब एक दिन पूर्व ही अनंत चतुर्दशी का व्रत एवं पूजा कर लेनी चाहिए. इस पूजा की एक खास बात यह भी है कि अनंत चतुर्दशी की पूजा अपराह्न से पूर्व करना शुभ एवं मनोरथकारी होता है, किन्हीं वजहों से अगर प्रथमार्थ में पूजा नहीं हो पाती तो दोपहर के प्रथम हिस्से में पूजा जरूर कर लेनी चाहिए. क्योंकि यह समय सप्तम से नवम् मुहूर्त तक ही होता है. इसके पश्चात पूजा करने से दोष उत्पन्न होता है, जो फलदायी भी नहीं होता.
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पूजा विधि:
अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी के व्रत का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. इस दिन श्रीहरि के अनंत रूप की पूजा की जाती है. पूजा की शुरुआत प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद व्रत के संकल्प से होती है. पूजा स्थल की अच्छी तरह सफाई करके वहां एक रंगोली सजाएं. इस पर कलश स्थापित करें. कलश के सामने भगवान श्री हरि की प्रतिमा अथवा तस्वीर रखें.
अब एक सूत के धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर ‘अनंत सूत्र’ बनाएं. इसमें चौदह गांठें अवश्य लगाएं. वैसे पूजा की दुकानों पर तैयार ‘अनंत सूत्र’ उपलब्ध हो जाते हैं. इस ‘अनंत सूत्र’ को श्रीहरि की प्रतिमा के सामने रखें. इसके पश्चात श्री हरि और ‘अनंत सूत्र’ की षोडशोपचार विधि से पूजा प्रारंभ करें. पूजा-का विधान पूरा होने पर निम्नलिखित श्लोक को पढ़ते हुए ‘अनंत सूत्र’ को पुरुष दाएं हाथ में एवं महिलाएं बाएं हाथ में बांधें.
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं अथवा दक्षिणा के साथ सीधा (कच्चा भोजन की सामग्री) दें और पूजा स्थल पर उपस्थित सभी लोगों में प्रसाद का वितरण करें.
अनंत चतुर्दशी का महात्म्य
हिंदू पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजन की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. अनंत भगवान अर्थात श्री विष्णुजी ने सृष्टि की आरंभ में चौदह लोकों (तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य और मह) की रचना की थी. इन सभी लोकों की सुरक्षा एवं परवरिश के लिए स्वयं श्रीहरि चौदह रूपों में प्रकट हुए थे. इस वजह से वे अनंत सदृश्य दिखने लगे. इसीलिए अनंत चतुर्दशी के दिन श्रीहरि का एवं पूजन करने से अनंत फलों की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखते हुए व्रती श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो विष्णु जी उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. मान्यता है कि इस व्रत में रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु का भजन एवं कथाएं सुनने अथवा सुनाने से विष्णु जी बहुत प्रसन्न हैं.
पौराणिक कथा
महाभारत काल में कौरवों ने पाण्डव के साथ छल कर उन्हें जुए में हराया और उसके पश्चात उन्हें वनवास गमन के लिए विवश किया था. वनवासकाल में एक बार जब श्री कृष्ण पाण्डवों से मिले, तो श्रीकृष्ण से वनवास में हो रहे कष्टों का उल्लेख करते हुए पूछा कि इस विपत्ति की घड़ी से उबरने और राजपाट वापस पाने के लिए क्या करना चाहिए? श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि अगर भाद्रपद की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को सभी लोग मिलकर व्रत रखें और श्रीहरि की पूजा करें तो सारे कष्ट दूर हो सकते हैं. बताया जाता है कि महाराज युधिष्ठिर ने अपने चारों भाई और द्रौपदी के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत रखते हुए श्री हरि की पूजा की. परिणाम स्वरूप कुछ ही दिनों के अंतराल पर पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया. कहते हैं कि इसके पश्चात से ही अनंत चतुर्दशी के व्रत एवं पूजा का सिलसिला शुरू हुआ.