हर साल कार्तिक माह कृष्ण पक्ष पूर्णिमा को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. यह व्रत माँ अपनी संतान की अच्छी सेहत, तरक्की और लंबी उम्र के लिए रखा जाता है, लेकिन इस बार अहोई अष्टमी पर कुछ दुर्लभ योगों का संयोगों का निर्माण होने से इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा, क्योंकि इन शुभ योगों में पूजा एवं व्रत करने वाली महिलाओं की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, और तारों को अर्घ्य देने एवं पूजा के पश्चात व्रत का पारण करती हैं. इस वर्ष अहोई व्रत 4 नवंबर 2023 को रखा जाएगा. आइये जानते हैं अहोई व्रत के महात्म्य, मंत्र, एवं पूजा विधि के बारे में...
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का व्रत मांएं अपने बच्चों की अच्छी सेहत और लंबी उम्र हेतु निर्जला व्रत रखती हैं, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अहोई अष्टमी का व्रत रखने से निसंतान दंपति को तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है तथा संतान पर आने वाले किसी भी तरह के संकट कट जाते हैं. पूजा के पश्चात मांएं तारे देखकर व्रत का पारण करती हैं. अहोई अष्टमी का व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में मनाया जाता है. इस दिन मांएं माँ पार्वती स्वरूपा माता अहोई की पूजा-अनुष्ठान करती हैं. यह भी पढ़ें : Bhai Dooj 2023 Date: कब मनाया जाएगा भाई दूज? कैसे और कब शुरू हुई यह परंपरा एवं क्या है इसकी पौराणिक कथा?
अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण पक्ष प्रारंभः 12.59 AM (4 नवंबर 2023, शनिवार)
कार्तिक कृष्ण पक्ष समाप्तः 03.18 AM (05 नवंबर 2023, रविवार)
उदया तिथि के अनुसार 05 नवंबर 2023 को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जायेगा.
अहोई अष्टमी के दिन दो शुभ योग बन रहे हैं. सर्वप्रथम रवि पुष्य योग और दूसरा सर्वार्थ सिद्धि योग. यह दोनों ही योग बेहद शुभ माने जाते हैं, इन योगों में व्रत एवं पूजा करने से मिलने वाले लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं.
अहोई अष्टमी पूजन का शुभ मुहूर्तः 05.33 PM 06.52 PM
तारों के दर्शन एवं पूजा का समय 05.58 PM
अहोई अष्टमी पूजा विधि
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर माता पार्वती का ध्यान कर निर्जला व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए. इसके पश्चात देवी अहोई जिन्हें देवी पार्वती का ही एक स्वरूप माना जाता है, की पूजा करें. अब माता अहोई का चित्र अथवा प्रतिमा पूजा स्थल पर स्थापित करें. इनके साथ ही स्वामी कार्तिकेय जी एवं गणेश जी की प्रतिमा भी स्थापित करें. माता अहोई की पूजा संध्याकाल में करने का विधान है. मुहूर्त के अनुसार माता अहोई की पूजा शुरू करें. देवी के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित करें. निम्न मंत्र का 108 जाप करें.
ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः'
अब पान, सुपारी, मौली, इत्र, बताशे अर्पित करें. भोग में पूरी और हलुआ के साथ मिष्ठान चढ़ाएं. निम्न मंत्र का पाठ करें. अंत में देवी पार्वती की आरती उतारें. इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर पूजा करें और व्रत का पारण करें.