सियासी मैदान में उतरे योगेश्वर दत्त ने खोला राज, इस वजह से राजनीति में आया हूं

हरियाणा विधानसभा चुनाव ( Haryana assembly elections) में ओलम्पिक पदक (Olympic medallist) विजेता पूर्व कुश्ती खिलाड़ी योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामने के बाद कहा कि उनका प्रमुख लक्ष्य है कि जमीनी स्तर पर काम कर सकें. लोगों से जुड़ी समस्याओं को हल कर सकें. इसके साथ युवाओं को खेलों के प्रति आकर्षित कर सकें. वहीं इस बार माना जा रहा है कि हरियाणा में कांटे की टक्कर है. योगेश्वर को सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट से मैदान में उतर रहे हैं

सियासी मैदान में उतरे योगेश्वर दत्त ने खोला राज, इस वजह से राजनीति में आया हूं
योगेश्वर दत्त ( फोटो क्रेडिट- ANI )

हरियाणा विधानसभा चुनाव ( Haryana assembly elections) में ओलम्पिक पदक (Olympic medallist) विजेता पूर्व कुश्ती खिलाड़ी योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामने के बाद कहा कि उनका प्रमुख लक्ष्य है कि जमीनी स्तर पर काम कर सकें. लोगों से जुड़ी समस्याओं को हल कर सकें. इसके साथ युवाओं को खेलों के प्रति आकर्षित कर सकें. वहीं इस बार माना जा रहा है कि हरियाणा में कांटे की टक्कर है. योगेश्वर को सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट से मैदान में उतर रहे हैं. लेकिन पिछले दो चुनावों में लगातार कांग्रेस यहां कांग्रेस का परचम फहराया है. ऐसे में योगेश्वर दत्त के लिए जीत का राह आसान नहीं होगा.

योगेश्वर दत्त ने 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था और उन्हें 2013 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह को पिहोवा से टिकट दिया गया है, जबकि हाल ही में बीजेपी में शामिल होने वाली पहलवान बबीता फोगाट दादरी से चुनाव लड़ेंगी. हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों पर 21 अक्टूबर को चुनाव होगा, जिसका परिणाम 24 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा.

यह भी पढ़ें:- हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने की अपने 22 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा.

बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी खेमे के बिखरे रहने के कारण बीजेपी एक बार फिर राज्य में बड़ी जीत के साथ सत्ता में लौटने को लेकर आश्वस्त है. मोदी लहर के सहारे पार्टी ने 2014 में पहली बार 47 सीटें जीती थी. पहले भगवा पार्टी, गैर कांग्रेसी सरकारों में जूनियर सहयोगी की भूमिका में रहती थी और अग्रणी ताकत के तौर पर कभी उसे नहीं देखा जाता था. वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा को गैर जाट वोटों के एकजुट होने का भी फायदा मिला था । हालांकि, पार्टी इस बार जाट समुदाय का भी भरोसा जीतने की उम्मीद कर रही है.


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