सबरीमाला मंदिर मामला: इस अभिनेता ने बोले कड़वे बोल, कहा- मंदिर आने वाली महिलाओं के कर दिए जाने चाहिए दो टुकड़े
सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है. शीर्ष अदालत ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया है कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कई लोग इसका खुलकर विरोध भी कर रहें हैं.
नई दिल्ली: सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है. शीर्ष अदालत ने महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया है कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं तो वहीं कई लोग इसका खुलकर विरोध भी कर रहें हैं. न्यायालय ने अपने आदेश में सभी उम्र की महिलाओं के लिए मंदिर के दरवाजे खोलने का फैसला सुनाया था और इसके बाद मंगलवार को अदालत ने अपने पूर्व के फैसले के खिलाफ दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था.
वहीं अब इस फैसले का विरोध करते हुए मलयालम सिनेमा के अभिनेता कोल्लम थुलासी भी सामने आ गए हैं. थुलासी का कहना है कि "मंदिर में आने वाली महिलाओं के टुकड़े कर दिए जाने चाहिए. एक टुकड़ा दिल्ली भेज दिया जाना चाहिए तो दूसरा हिस्सा तिरुवनंतपुरम में स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय में फेंक दिया जाना चाहिए."
गौरतलब है कि राज्य की वामपंथी सरकार ने अदालत के फैसले को लागू करने का फैसला लिया है जिसके खिलाफ बुधवार को हिंदू संगठनों ने एक रैली का आयोजन किया और सड़कें जाम कर दीं. इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या महिलाओं की थी, जो उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने के सरकार के फैसले का विरोध कर रही हैं.
सबरीमाला मंदिर विवाद पर शीर्ष अदालत ने एतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है. यह सार्वजनिक संपत्ति है. इसमें यदि पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी जाने की अनुमति है.
मामले पर फैसला सुनाते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 28 सितंबर को दिए फैसले में कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाना लैंगिक भेदभाव है और यह परंपरा हिंदू महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करती है. दीपक मिश्रा ने कहा था कि धर्म मूलत: जीवन शैली है जो जिंदगी को ईश्वर से मिलाती है.
सुनवाई में कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने का फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले मंदिर में 10 से 50 उम्र की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश करने पर प्रतिबंध था.