कैसे मनाते हैं पोंगल का त्योहार, जानिए इससे जुड़ी प्राचीन कहानियां

नए साल की शुरुआत में ही 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार आता है. उसी दिन दक्षिण भारत में पोंगल मनाया जाता है. पोंगल का मतलब होता है उबालना. इसका अर्थ नया साल भी होता है...

पोंगल, (Photo Credit: फाइल फोटो )

नए साल की शुरुआत में ही मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का त्योहार आता है. उसी दिन दक्षिण भारत में पोंगल (Pongal) मनाया जाता है. पोंगल का मतलब होता है उबालना. इसका अर्थ नया साल भी होता है. किसानों के लिए यह त्योहार बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है. इस दिन किसान प्रकृति की पूजा करते हैं. इस त्योहार को फसलों की कटाई के दौरान प्राचीन काल से मनाया जाता है. पोंगल का त्योहार चार दिन तक मनाया जाता है. इसमें चार पोंगल होते हैं. आइये आपको बताते हैं चारों पोंगल के बारे में.

भोगी पोंगल : पहले दिन भोगी पोंगल मनाया जाता है. इसमें इंद्र देव की पूजा की जाती है. बारिश और अच्छी फसल के लिए लोग इस दिन इंद्र देव की पूजा करते हैं.

सूर्य पोंगल: पोंगल की दूसरी पूजा में सूर्य पूजा की जाती है. इसमें नए बर्तनों में नए चावल, मूंग की दाल और गुड़ डालकर केले के पत्ते पर गन्ना, अदरक के साथ पूजा करते हैं. सूर्य को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य प्रकाश में ही बनाया जाता है.

मट्टू पोंगल: पोंगल के तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है. इस दिन शिव के बैल नंदी की पूजा की जाती है. कहा जाता है एक बार नंदी से बहुत बड़ी गलती हो गई थी. जिससे नाराज होकर शिव ने नंदी को बैल बनकर धरती पर मनुष्यों की सहायता करने को कहा. उस दिन से पोंगल के दिन नंदी को भी पूजा जाता है.

यह भी पढ़ें: Makar Sankranti 2019: इस साल 14 नहीं 15 जनवरी को मनाया जाएगा मकर संक्रांति का पर्व, जानिए इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

कन्या पोंगल: इस दिन को काली माता मंदिर में बहुत धूम- धाम से मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार किलूटूंगा राजा पोंगल के दिन जमीन और मंदिर गरीबों को दान करते थे. इस दिन सांड और नव युवकों के बीच युद्ध होता था और जो युवक इस युद्ध में जीत जाता था कन्याएं उसे माला पहनाकर अपना पति चुनती थीं.

दक्षिण भारत में पोंगल से नए साल की शुरुआत हो जाती है. चार दिन हर्षोल्लास से मनाए जाने वाले इस त्योहार में महिलाएं भगवान से अपने परिवार की सुख शांति और समृद्धि की प्रार्थना करती हैं.

Share Now

\