आखिर दूसरे राज्यों में बिहार के छात्र-कामगार क्यों रहते हैं निशाने पर

भाषा और स्थानीयता के नाम पर बिहार से नौकरी के लिए परीक्षा देने या मजदूरी करने दूसरे राज्यों में गए छात्र या कामगार अक्सर उन राज्यों के लोगों के दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भाषा और स्थानीयता के नाम पर बिहार से नौकरी के लिए परीक्षा देने या मजदूरी करने दूसरे राज्यों में गए छात्र या कामगार अक्सर उन राज्यों के लोगों के दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं.ताजा मामला पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी का है, जहां बिहार के छात्रों के साथ मारपीट तथा उनके डॉक्यूमेंट को फाड़ने की कोशिश की गई. इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद मामला तूल पकड़ने पर पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है. दरअसल, एसएससी-जीडी (स्टॉफ सेलेक्शन कमीशन- जनरल ड्यूटी) की परीक्षा देने पटना निवासी अंकित यादव समेत कई अभ्यर्थी मंगलवार को सिलीगुड़ी पहुंचे थे. बुधवार को बांग्ला पक्खो (बंगाल पक्ष) नामक संगठन के लोग खुफिया विभाग के अधिकारी बनकर उनके कमरे में घुस गए जहां वे सो रहे थे. उनलोगों ने सवाल किया कि वे लोग परीक्षा देने बिहार से बंगाल क्यों आए हैं? उसके बाद वे डॉक्यूमेंट मांगने लगे. मना करने पर वे मारपीट करने लगे तथा जेल भेजने की धमकी देने लगे. कहने लगे, बंगाल के डोमिसाइल नहीं हो तो क्यों अप्लाई किया. इस बीच वे सभी खुद को आईबी व पुलिस का अधिकारी बताते रहे. कान पकड़ कर उन्हें उठक-बैठक भी कराया गया तथा उनके डॉक्यूमेंट फाड़ने की कोशिश की गई. उनसे माफी मांगने को कहा गया. माफी मांगने के बाद उन्हें छोड़ा गया.

बिहार पुलिस में पहली बार दरोगा पद पर ट्रांसजेंडर की नियुक्ति

भाषा तथा प्रांत के नाम पर बिहार के युवकों से दुर्व्यवहार और उन्हें धमकाने का मामला प्रकाश में आते ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के निर्देश पर राज्य के चीफ सेक्रेटरी (मुख्य सचिव) अमृत लाल मीणा और डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) आलोक राज ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल के समकक्ष अफसरों से बात की. बिहार पुलिस ने वायरल हो रहे वीडियो पर संज्ञान लेते हुए उसे एक्स हैंडल पर पोस्ट भी किया. इसके बाद सिलीगुड़ी पुलिस हरकत में आई और वीडियो में चेहरा पहचानकर रजत भट्टाचार्य नामक एक कट्टरपंथी को गिरफ्तार किया. उसके साथ गिरिधारी रॉय नामक व्यक्ति को भी पकड़ा गया है. दोनों ही सिलीगुड़ी के रहने वाले हैं. समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार सिलीगुड़ी के पुलिस कमिश्नर सी. सुधाकर ने बताया कि पूछताछ में रजत ने कहा कि बिहार-उत्तर प्रदेश के लोग फर्जी डिग्री लेकर आते हैं और बंगाल के युवकों की नौकरियां छीन लेते हैं. वह उन छात्रों के फर्जी प्रमाणपत्र की जांच करने गया था. किंतु, जब उससे जब यह पूछा गया कि फर्जीवाड़े की सूचना मिली तो पुलिस को क्यों नहीं बताया तो उसने इसका कोई जवाब नहीं दिया.

इस घटना के बाद से एक बार फिर बिहार से पलायन का मुद्दा भी सुर्खियों में आ गया है. केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार ई-श्रम पोर्टल पर निबंधन कराने वाले दो करोड़ नब्बे लाख से अधिक लोग बिहार से नौकरी के लिए दूसरे राज्यों में जा चुके हैं. आंकड़ों के अनुसार दूसरे राज्यों में नौकरी की तलाश में जाने वालों की संख्या में करीब आधे बिहार व उत्तर प्रदेश से हैं. पलायन में आधी हिस्सेदारी इन्हीं दो राज्यों की है. इन दोनों राज्यों से सबसे अधिक युवा पंजाब, गुजरात, बेंगलुरू, दिल्ली, तेलंगाना खासकर हैदराबाद तथा महाराष्ट्र, विशेष तौर पर मुंबई जाते हैं. जहां मुख्य रूप से विभिन्न क्षेत्रों में मजदूर का काम करते हैं.

तेज हुई सियासत, निशाने पर आई ममता

बांग्ला पक्खो नामक यह संगठन बंगाल में पिछले दिनों हिंदी और अंग्रेजी में लिखे साइन बोर्ड पर कालिख पोतने तथा विवादित बयानों के बाद चर्चा में आया था. पिछले वर्ष भी संगठन के सदस्यों ने गैर बंगालियों, खासतौर पर हिंदी भाषियों के खिलाफ पोस्टरबाजी की थी तथा 'बंगाल बंगालियों का है', जैसे नारे लगाए थे. उधर, सिलीगुड़ी के सामाजिक संगठन बिहारी सेवा समिति ने स्थानीयता, प्रांतवाद एवं भाषा के नाम पर भेदभाव को गलत बताते हुए इस घटना की भर्त्सना की है. समिति ने सड़क पर उतरकर बांग्ला पक्खो के खिलाफ आंदोलन करने की घोषणा भी की है. बिहार से जुड़े अन्य स्थानीय संगठनों ने भी बांग्ला पक्खो द्वारा प्रांत के नाम पर इस तरह के कृत्य की कड़ी निंदा की है.

बिहार : महंगाई-बेरोजगारी के साथ सांसदों का गायब रहना भी बन रहा मुद्दा

बिहार के युवाओं से दुर्व्यवहार और मारपीट की घटना का घटना का वीडियो शेयर करते हुए बेगूसराय के बीजेपी सांसद व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने पूछा कि क्या ममता सरकार के राज में बच्चों का बंगाल में परीक्षा देने जाना भी गुनाह है? वहीं एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख तथा केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता व लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव से पूछा कि वह किस हक से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का समर्थन करेंगे.

वहीं, बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के बंगाल प्रभारी व बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना था, "यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है. क्या अब राहुल गांधी या इंडी गठबंधन के नेता ममता बनर्जी से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करेंगे? यह सरासर गुंडागर्दी है." हालांकि, इन आरोपों पर टीएमसी नेता कुणाल घोष कहते हैं, ऐसा कुछ भी नहीं है. स्थानीय समस्या हो सकती है. हमारी सरकार सबका स्वागत करती है. हमारा राज्य लोकतांत्रिक है. वहीं, आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव के अनुसार, "आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने इस मामले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बात की. ममता दीदी ने उन्हें घटना का हवाला देकर बताया कि इस मामले में आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है."

हर बार किसी न किसी बहाने निशाने पर बिहारी

स्थानीयता के नाम पर कभी महाराष्ट्र तो कभी तमिलनाडु में बिहार के लोगों से दुर्व्यवहार की घटनाएं हुईं. हाल में ही पंजाब के कई गांवों में बिहार के कामगारों को रातों-रात इलाका छोड़ कर जाने को कहा गया. जबकि, किसी भी हिंदी भाषी राज्य में गैर हिंदी भाषियों के खिलाफ या फिर किसी अन्य राज्य में हिंदी भाषियों को छोड़ कर किसी दूसरे प्रदेशों के लोगों के साथ ऐसी घटना शायद ही कभी होती हैं. राजनीतिक समीक्षक अरुण कुमार चौधरी कहते हैं, दरअसल इन घटनाओं का विरोध भी राजनीतिक लाभ-हानि देखकर किया जाता है. सिलीगुड़ी की घटना को देखिए. पीड़ित छात्र यादव जाति से भी है, किंतु क्या समाजवादी पार्टी (एसपी) के नेता अखिलेश यादव या बिहार के आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने इस घटना के विरोध में आवाज बुलंद की. जवाब है, नहीं. अगर टीएमसी की जगह बंगाल में बीजेपी की सरकार होती तो यह कहने में गुरेज नहीं कि पूरी यादव जाति ही इन्हें खतरे में नजर आती."

साफ है जब तक हिंदी भाषी प्रदेशों के नेता एकजुट होकर इसका कड़ा प्रतिकार नहीं करेंगे, तब तक ऐसे ही चलता रहेगा. दरअसल, बिहार के लोगों के प्रति नफरत की बुनियाद महाराष्ट्र में पड़ी और धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई. पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, "दरअसल, बिहार सरकार भले ही बहुत कुछ करने का दावा करती हो, लेकिन राज्य में नौकरियों का संकट बना हुआ है. इसकी भयावहता कोरोना काल में पूरी दुनिया को दिख गई थी, जब लाखों की संख्या में बिहार के लोग अपने घर लौटने के लिए बदहवास होकर सड़कों पर उतर गए थे. आज भी अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोग दूसरे राज्यों में निर्माण व पशुपालन क्षेत्र या खेतों में मजदूरी करने, रिक्शा, ऑटो या टैक्सी चलाने जैसे छोटे-मोटे काम करने को मजबूर हैं. भरोसा न हो रहा हो तो बिहार से बाहर जाने वाली ट्रेनों का नजारा देख लीजिए."

कभी रोजगार हड़पने तो कभी अपराध बढ़ाने तो कभी गंदगी फैलाने का आरोप लगाकर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी बिहारी को अपमानित किया जाता है. ये हाल तब है जब पंजाब के किसानों के अनाज की कोठी बिहार-उत्तर प्रदेश के मजदूर न मिले तो शायद खाली ही रह जाए या फिर राजस्थान के कोटा शहर की आर्थिकी बिहार के छात्र न मिले तो चरमरा जाए.

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