Ram Navami 2024- जब शिवजी ने ‘श्रीराम’ जप का महात्म्य पार्वती जी को समझाया! रामनवमी पर जानें श्रीराम के जीवन के 9 रोचक तथ्य!

विष्णु पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान विष्णु ने अयोध्या में श्रीराम के रूप में अवतार लिया था. इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष चैत्र मास नवरात्रि की नवमी को रामनवमी मनाई जाती है.

राम नवमी 2024 (Photo Credits: File Image)

विष्णु पुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान विष्णु ने अयोध्या में श्रीराम के रूप में अवतार लिया था. इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष चैत्र मास नवरात्रि की नवमी को रामनवमी मनाई जाती है. प्रभु श्रीराम विष्णु जी के सबसे प्रसिद्ध सातवें अवतार हैं. उन्होंने पिता के आदेश मात्र से राजपाट छोड़कर 14 वर्ष वनवास में बिताकर पुत्र धर्म का पालन किया और मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए. श्री रामनवमी का दिन हिंदू धर्म में कई मायनों में महत्वपूर्ण माना जाता है. सैकड़ों साल बाद इस वर्ष मूल जन्म स्थान पर राम जन्मोत्सव मनाये जाने के कारण इस वर्ष की रामनवमी का विशेष महत्व कहा जा सकता है. 17 अप्रैल 2024 को रामनवमी के अवसर पर आइये जानें श्रीराम के जीवन संबंधित महत्वपूर्ण फैक्ट के बारे में... यह भी पढ़े :Ram Navami 2024: अयोध्या में रामनवमी को लेकर दर्शन के लिए खास इंतजाम, श्रद्धालुओं के लिए गाइडलाइन जारी

भगवान राम के बारे में 10 रोचक तथ्य

* पौराणिक कथाओं के अनुसार विष्णु जी ने पृथ्वी पर 10 अवतार लिये, लेकिन श्री राम विष्णु जी के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध अवतारों में एक हैं.

* श्री राम सूर्यवंशी थे, क्योंकि वह भगवान सूर्य के वंशज हैं और वे इक्ष्वाकु वंश से हैं.

* रावण के मृत्यु शैय्या पर जाने पर श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि जाकर वे रावण का आशीर्वाद ले लें, लक्ष्मण के क्यों के सवाल पर श्रीराम का जवाब था, वह एक ब्राह्मण होने के साथ-साथ महान विद्वान भी है.

* भगवान शिव को हमेशा ‘श्रीराम’ के नाम का जाप करते देख देवी पार्वती ने जब उनसे पूछा कि शिव ही आदि हैं और अंत भी, फिर ‘श्रीराम’ का जाप क्यों करते हैं. तब शिवजी ने कहा था कि दिन में तीन बार ‘श्रीराम’ का नाम जपना हजारों देवताओं का जप करने के समान है.

* भगवान श्रीराम को रघुवंशी नाम महर्षि वशिष्ठ ने दिया था.

* ‘राम’ के नाम का अर्थ दो बीज अक्षरों अग्नि बीज (राम) और अमृत बीज (माँ) से बना है.

* गौतम ऋषि द्वारा श्रापित माता अहिल्या जब पत्थर की बन गई तो महर्षि विश्वामित्र के साथ सीता स्वयंवर में जाते समय श्रीराम और लक्ष्मण अहियारी (बिहार) होते हुए जा रहे थे, तब श्री राम के चरणों की धूल के स्पर्श से देवी अहिल्या का उद्धार हुआ था.

* जब श्रीराम राजा जनक के दरबार में थे, तब सीता-स्वयंवर में उन्होंने सहजता से धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई, अनजाने में प्रत्यंचा टूट गई. धनुष के टूटने से पृथ्वी गड़गड़ाहट के साथ ऐसे हिली कि सभा में उपस्थित लोग कांप गये. ध्यान रहे कि यह वही धनुष था, जिसे लोग हिला भी नहीं सके थे.

* वनवास काल में जब श्रीराम अपनी पत्नी देवी सीता की खोज कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात शबरी से हुई जो कई वर्षों से श्री राम की प्रतीक्षा कर रही थी. शबरी ने उन्हें अपने झोपड़े में आमंत्रित किया तो श्रीराम सहज तैयार हो गये, जबकि लक्ष्मण ने उनकी सुरक्षा के तहत ऐसा करने से रोका था.

 

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