उत्तराखंड के चम्पावत जिले के राहत शिविरों में लॉकडाउन ने इन मजदूरों को सिखा दिया पढ़ना लिखना
कहते हैं, सीखने की कोई उम्र नहीं होती. जब जागो, तभी सवेरा. लॉडाउन में फंसे उत्तराखंड के चम्पावत जिले के राहत शिविरों में रह रहे मजदूर इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं.इन शिविरों में ये न केवल शिक्षित हो रहे हैं, बल्कि इस कोरोना संकटकाल में प्राणायाम, कपाल भारती योग आदि शारीरिक क्रियाओं को कर खुद को सेहतमंद भी बना रहे हैं.
कहते हैं, सीखने की कोई उम्र नहीं होती. जब जागो, तभी सवेरा. लॉडाउन में फंसे उत्तराखंड के चम्पावत जिले के राहत शिविरों में रह रहे मजदूर इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. इन शिविरों में ये न केवल शिक्षित हो रहे हैं, बल्कि इस कोरोना संकटकाल में प्राणायाम, कपाल भारती योग आदि शारीरिक क्रियाओं को कर खुद को सेहतमंद भी बना रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान फंसे विभिन्न प्रदेशों के मजदूरों को उत्तराखंड के चम्पावत जिले के राहत शिविरों में रखा गया है। शिविर में यह मजदूर न केवल अक्षर ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि सुबह-शाम योग प्राणायाम भी कर रहे हैं. जिला प्रशासन ने वनवासा, टनकपुर, चम्पावत और लोहाघाट में बने राहत शिविरों में निरक्षर मजदूरों को अक्षर ज्ञान कराने के लिए विशेषज्ञों को जिम्मेदारी सौंपी है.
इसी का नतीजा है कि महज महीने भर में तमाम निरक्षर मजदूर भी इन शिविरों में रहते हुए अपने नाम समेत कई शब्दों को बखूबी लिखने लगे हैं। इन लोगों में घर से दूर शिविर में रहने के दौरान अवसाद न आए, इसके लिए प्रोजेक्टर के माध्यम से लघुकथा, वृत्तचित्र, लोकगीतों आदि के माध्यम से इनका मनोरंजन भी किया जा रहा है. यह भी पढ़े: लॉकडाउन के दौरान आश्रय देने वाले स्कूल की इमारत का प्रवासी मजदूरों ने किया रंग रोगन
9 राहत शिविरों में 107 निरक्षर
चम्पावत जिले के खण्ड शिक्षा अधिकारी अंशुल बिष्ट ने बताया कि हमारे 9 राहत शिविर चल रहे हैं.जिसमें कुल 465 लोग रह रहे हैं. इसमें हम 107 ऐसे लोगों को चिन्हित किया था, जो निरक्षर थे.विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकों के माध्यम से इनके बीच में साक्षरता का कार्यक्रम चलाया गया.जिसमें आशानुरूप सफलता भी मिली है.
शिक्षकों ने दी दिशा तो हो गए साक्षर
शिविर में पढ़ा रहे शिक्षक-शिक्षिकाएं भी निरक्षरों को साक्षर बनाने के इस अभियान से काफी संतुष्ट हैं। शिक्षिका रेखा पंत का कहना है कि एक पाठ्यचर्या के बारे में हम लोगों ने आपस में निर्णय लिया था कि किस तरीके से इनकी शुरुआत की जाए. धीरे-धीरे शुरू में इन लोगों का मन कम लगता था। समय के साथ हम लोगों को अनुभव हुआ कि इनमें से कई काफी टैलेन्टेड हैं और उनकी बहुत रुचि थी। हम लोगों ने केवल एक दिशा दी है. इनमें से हर कोई जो हैं, चाहे वह अर्धसाक्षर रहा हो या जिन्हें बिलकुल भी अक्षर का ज्ञान नहीं था. हम लोगों ने कुछ शब्दों को पहचानना और मात्राओ का ज्ञान कराया तो बहुत बखूबी उसको कर पा रहे हैं। वे बहुत अच्छी तरह से अपना नाम, पिता का नाम और अन्य चीजें कर पा रहे हैं.
शिविर में मजदूर भी खुश
शिविर में रह रहे मजदूर भी खुश हैं. उनका कहना है कि पढ़ाई के साथ ही उन्हें अन्य गतिविधियों में शामिल होने का भी अवसर मिल रहा है. एक शिविरार्थी मजदूर ने बताया कि यहां पर हर चीज अच्छी है. हर सुविधा मिल रही है। खाना भी अच्छा मिल रहा है। योगा भी करवाया जा रहा है और पढ़ाई भी चालू है. बहुत से लोगों को तो आता ही नहीं था। हम लोग 30 लोग आये थे, जिनमें से मात्र 3 ही लोग पढ़े-लिखे थे. उन सबको अंकराक्षर करना आौर माता-पिता का नाम लिखना भी आ गया है