'एक देश, एक चुनाव' योजना के अनसुलझे सवाल

खबरों के मुताबिक, सरकार शीतकालीन सत्र में 'एक देश, एक चुनाव' पर दो विधेयक लाने की तैयारी कर रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

खबरों के मुताबिक, सरकार शीतकालीन सत्र में 'एक देश, एक चुनाव' पर दो विधेयक लाने की तैयारी कर रही है. कहा जा रहा है कि सरकार रामनाथ कोविंद समिति के सुझावों के मुताबिक ही आगे बढ़ रही है, लेकिन कुछ सवाल अभी भी अनसुलझे हैं.मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि केंद्रीय कैबिनेट ने "एक देश, एक चुनाव" योजना से संबंधित दो विधेयकों को मंजूरी दे दी है. इन विधेयकों को संसद के इसी सत्र के दौरान लोकसभा में लाया जा सकता है. हालांकि, अभी तक इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.

करीब तीन महीने पहले कैबिनेट ने इस विषय पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित की गई उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूर कर लिया था. बताया जा रहा है कि दोनों विधेयकों में इस समिति द्वारा दिए गए फॉर्मूले के मुताबिक प्रावधान डाले गए हैं.

दो चरणों में हो सकती है योजना लागू

'एक देश, एक चुनाव' बीजेपी की काफी महत्वाकांक्षी योजना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले इसका प्रस्ताव रखा था और तब से उन्होंने अलग-अलग मौकों पर कई बार इसका जिक्र किया है. इसके तहत देश में लोकसभा चुनावों, सभी विधानसभाओं के चुनावों और सभी पंचायत/नगर निगम चुनावों को एक साथ करवाने की योजना है.

कोविंद समिति ने प्रस्ताव दिया था कि इसे चरणबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए जाने चाहिए और दूसरे चरण में पंचायत व नगर निगमों के चुनावों को भी इन्हीं के साथ करवाना चाहिए.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, कैबिनेट ने दो विधेयकों को मंजूरी दी है - पहला, लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ करवाने के लिए और दूसरा, दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के चुनावों को भी इन्हीं चुनावों के साथ करवाने के लिए.

एनडीटीवी के मुताबिक, इन विधेयकों के जरिए संविधान के कम-से-कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इन संशोधनों को सभी विधानसभाओं से पारित करवाने की जरूरत नहीं होगी. पंचायतों और नगरपालिकाओं को अभी छोड़ दिया गया है, क्योंकि उन्हें इस योजना के दायरे में लाने के लिए विधानसभाओं की मंजूरी की भी जरूरत होगी.

नहीं मिले हैं इन सवालों के जवाब

हालांकि, कोविंद समिति द्वारा पेश की गई विस्तृत योजना के बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. जैसे, एक बार सारे चुनाव एक साथ हो जाने के बाद अगर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया, तो ऐसे में क्या होगा? या अगर कहीं चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा आई और कोई भी पार्टी सरकार ना बना पाई, तो क्या होगा?

जानकार इस योजना में और भी समस्याएं देख रहे हैं. लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या तो यह है कि प्रस्तावित योजना संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ है. अचारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस योजना के तहत विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के कार्यकाल पर पूरी तरह से निर्भर बनाया जा रहा है, जो संविधान में है ही नहीं."

अचारी ने आगे कहा कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सभी चुनाव हो जाने के बाद किसी राज्य में राजनीतिक अस्थिरता नहीं आएगी और विधानसभा को समय से पहले भंग नहीं करना पड़ेगा. ऐसी परिस्थितियों में क्या होगा? अचारी कहते हैं कि अगर ऐसा कुछ लोकसभा में होगा, तब तो लोकसभा भंग करने के साथ-साथ सभी विधानसभाओं को भी भंग करना पड़ेगा.

इस योजना पर और भी कई सवाल उठे हैं. वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनिस का मानना है कि यह योजना एक फिसलन भरी राह है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "इसके तहत संविधान के ढांचे में, चुनाव संबंधी कानून में और चुनाव आयोग की स्थिति में भी मूलभूत बदलाव किए जाने हैं."

अदिति ने यह भी कहा कि इस योजना के लागू होने के बाद अगर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, तो हो सकता है केंद्र को चुनावों के अगले पूरे दौर तक राष्ट्रपति शासन लगाए रखने की शक्ति मिल जाए, जो कोई लोकतांत्रिक विचार नहीं है.

Share Now

\