परिवार का छूटे साथ तब याद आते हैं ये समाजसेवी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पूरे भारत में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्हें अपने बुढ़ापे में या तो वृद्धाश्रम या समाजसेवियों का सहारा लेना पड़ता है. जो गिने चुने समाजसेवी ऐसी सेवा में लगे हैं, खुद उनके हिस्से भी कई परेशानियां आती हैं.वाराणसी के श्रीनाथ खंडेलवाल उन साहित्यकारों में से एक हैं जिन्होंने अपने जीवन काल में मत्स्यपुराण, पद्मपुराण समेत 400 से ज्यादा पुस्तकें लिखीं. उन्हें यश और वैभव दोनों ही मिले. 2024 तक करोड़ों की संपत्ति के मालिक श्रीनाथ खंडेलवाल को अपने जीवन का आखिरी चरण एक वृद्धाश्रम में बिताना पड़ा. मार्च 2024 में परिवार ने उनसे किनारा कर लिया और तब काम आए समाज सेवी अमन कबीर. 28 दिसंबर को खंडेलवाल की मृत्यु के बाद भी जब उनके घरवाले नहीं पहुंच सके, तब उनकी अंत्येष्टि प्रक्रिया भी अमन ने ही पूरी की. लेकिन उसके बाद खंडेलवाल के परिवार ने अमन पर मानहानि का मामला दर्ज करवा दिया और यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है.

श्रीनाथ खंडेलवाल की तरह लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाले एक पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी की बेटियों की भी हालत रही. माता-पिता की मृत्यु के बाद उनकी दो अविवाहित बेटियों राधा और मुन्नी को परिवारजनों ने मरने के लिए छोड़ दिया. वर्षों तक उनकी किसी ने सुधि नहीं ली. फिर किसी ने समाजसेवी वर्षा वर्मा को उनके बारे में बताया. वर्षा ने जब उनकी मदद की तो कुछ लोगों ने राधा और मुन्नी का अपहरण करने की कोशिश की. वर्षा तब भी उनके साथ रहीं, लेकिन मुन्नी अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाईं. इसके बाद राधा का अपहरण करने में भी लोगों को सफलता मिल गई और उनका आजतक पता नहीं चल पाया. देश के अलग-अलग कोनों में अमन कबीर और वर्षा वर्मा जैसे कई ऐसे समाजसेवी हैं जो खंडेलवाल, राधा और मुन्नी जैसे कई लोगों को सहारा देते हैं.

श्रद्धा और सहयोग साथ-साथ

मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले 30 साल के अमन पिछले 15 वर्षों से वाराणसी में समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं. इसकी शुरुआत उन्होंने सरकारी अस्पतालों के बाहर लावारिस पड़े रहने वाले मरीजों की सेवा से की. एक फाइलेरिया के मरीज की पट्टी करते वक्त एक परिचित ने अमन की फोटो खींचकर फेसबुक पर डाल दी और उसके बाद से अमन को ऐसे लोगों से जुड़े कई फोन आने लगे.

वाराणसी हमेशा से श्रद्धालुओं से भरा शहर रहा है. अमन न केवल वाराणसी के रहने वाले लोगों की मदद करते हैं बल्कि अब तक वह हजारों खोए हुए लोगों को वाराणसी से सकुशल घर पहुंचा चुके हैं. डीडब्ल्यू से अमन ने बताया, "कई बार श्रद्धालु यहां तक आते हैं और कभी बीमारी या फिर किसी कारण से खो जाते हैं, अस्पताल में भर्ती होते हैं, उनकी देखरेख करने को कोई नहीं होता.” अमन अब तक 19 राज्यों के लोगों को सकुशल उनके घर तक पहुंचा चुके हैं. अमन बताते हैं, "एक बार एक लड़का शिवलिंग पर अपनी बलि देने आ गया. चाकू लगते ही गर्दन से खून निकलने लगा. मंदिर के प्रशासनिक अधिकारियों ने अस्पताल में भर्ती तो कराया लेकिन उसके बाद उसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं था. उसकी देखरेख के लिए मैं आगे आया. वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया तो तमिलनाडु से उसके घर वाले यहां लेने के लिए पहुंचे."

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अमन की तरह लखनऊ में वर्षा 14 साल की आयु से समाज सेवा कर रही हैं और बीते सात वर्षों से लखनऊ की अलग-अलग जगहों पर मिलने वाले लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करती हैं. इसके लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है. डीडब्ल्यू हिन्दी से बात करते हुए वर्षा कहती हैं, "लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना आसान नहीं होता. शव मिलने पर पोस्टमार्टम होता है. उसके बाद 72 घंटे तक उसे शिनाख्त के लिए रखा जाता है, पहचान की नोटिस चस्पां की जाती है. इसके बाद भी यदि बॉडी क्लेम के लिए कोई नहीं आता तो वह शव हमें दिया जाता है. कई बार शव इतनी बुरी हालत में होते हैं कि उनका अंतिम संस्कार कर पाना मुश्किल होता है." इन सात वर्षों में वर्षा 6,000 से भी अधिक अंत्येष्टि संस्कार कर चुकी हैं.

बुजुर्गों के साथ मरीजों की भी मिलती है दुआ

अमन ने कई वर्षों पहले वाराणसी में पहली बार ‘बाइक एंबुलेंस' शुरू की. इसका कारण बताते हुए अमन कहते हैं, "कई ऐसे भी इलाके हैं जहां चार पहिए की गाड़ी नहीं पहुंच पाती, लेकिन बीमार तो लोग वहां भी होते हैं. इसके अलावा कई बार ट्रैफिक जाम में फंसकर लोगों को इलाज मिलने में देरी हो जाती है. ऐसे में बाइक ऐसा साधन बनता है जो दोनों ही परिस्थितियों में सुलभ है.”

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वर्षा भी लखनऊ के अस्पतालों से गरीब मरीजों को एंबुलेंस से उनके घर तक निशुल्क भेजती हैं. इसके अलावा जिन लावारिस शवों की पहचान हो जाती है, उनके परिवार को शव घर तक ले जाने के लिए शव वाहन का इंतजाम करवाती हैं. वर्षा कहती हैं, "मुझे भी सीखने में समय लगा. पुरुष प्रधान समाज में खुद को खड़ा कर पाना भी मेरे लिए मुश्किल था. एक लड़की होने के नाते इस तरह के काम करने पर रिश्तेदारों और समाज के कई मापदंडों पर मेरे लिए प्रश्न चिन्ह थे. उन सभी को पार कर अपने परिवार के समर्थन से आज भी अपना काम निस्वार्थ भाव से कर रही हूं.”

परेशानियों से होते हैं दो चार

वर्षा बताती हैं कि एक परिवार में पांच लड़कियों के पिता की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी उनके पास आई. बच्चियों की मां की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी. पिता के अंतिम संस्कार के समय आसपास के लोगों ने अंतिम संस्कार के दौरान कई तरह के सवाल जवाब किए. परेशानी यही खत्म नहीं हुई. अंतिम संस्कार के बाद पांचों लड़कियां घर से गायब हो गईं और तब वर्षा सवालों के घेरे में आ गई. पुलिस के सवाल जवाब के साथ मीडिया और आसपास के लोगों ने भी विरोध करना शुरू किया. एक स्थानीय चैनल ने वर्षा पर अंग तस्करी का आरोप लगाया. वर्षा ने खबर का विरोध किया तो न्यूज चैनल ने कहा कि इस खबर से उनकी टीआरपी बढ़ गई है इसलिए सच न हो तो भी वह खबर वापस नहीं लेंगे. आखिरकार कुछ दिनों बाद यह पता चला कि बच्चियों को उनके कुछ रिश्तेदार बिना बताए गांव लेकर चले गए थे. वर्षा कहती हैं, "सुरक्षा के साथ-साथ कई बार हमें उन परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है जिसमें हमारी अच्छाइयों और सेवा पर ही सवाल खड़े होने लगते हैं."

वहीं अमन बताते हैं कि कई बार अस्पताल में भर्ती गंभीर मरीज के लिए परिवार ही खड़ा नहीं होता. हम जी जान से सेवा करते हैं. दुर्भाग्य से अगर मरीज की मृत्यु हो जाए तो लोग हम पर ही सवाल खड़े करने लगते हैं. लोग किसी व्यक्ति को भर्ती करवाने या वृद्धाश्रम पहुंचाने या फिर अपने मतलब के लिए हमें फोन करते हैं. इसके अलावा आज भी आसपास कई ऐसे लोग हैं जो किसी ने किसी बहाने व्यंग्य करते हैं या कमी निकालने की कोशिश करते हैं." कोरोना काल में नवजात बच्चों को दूध पहुंचाने से लेकर घर के द्वारा त्यागे गए कई कोरोना संक्रमित लोगों के शवों का अंतिम संस्कार अमन ने किया.

संभ्रांत ही करते हैं बहिष्कार

वर्षा कहती हैं कि आपने कभी नहीं सुना होगा कि किसी गरीब परिवार के मां-बाप वृद्ध आश्रम में रह रहे हैं. पढ़े-लिखे बच्चों और परिवारों में रह रहे बुजुर्ग ही वृद्धाश्रम भेजे जाते हैं. उन परिवारों में या तो बच्चे विदेश में बस गए हैं या फिर अपनी जिंदगी में बुजुर्गों को शामिल करने की सोच उनमें नहीं है. शिक्षा के मूल्य पर आज भी काम करने की बहुत आवश्यकता है." अमन का कहना है, "हम लोगों के लिए अपना समय निकालते हैं, उनकी सेवा करते हैं. लेकिन हमारे सेवा भाव का लोगों को अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए."