आज के दिन ही हुआ था प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक ''मंगल पाण्डेय'' का जन्म
1827 में आज ही के दिन यानी 19 जुलाई को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म एक सामान्य सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था, उन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वोे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे,
1827 में आज ही के दिन यानी 19 जुलाई को देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडे का जन्म एक सामान्य सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था, उन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वोे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे, अंगरेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है.
सन् 1984 में भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया.
1857 में विद्रोह सुरु हुआ विद्रोह की वजह एक बंदूक थी. दरअसल सिपाहियों को पैटर्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी. नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी. नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था. कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी. सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है.
29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला करके उसे घायल कर दिया. सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया. मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से खुद का प्राण लेने का प्रयास किया. परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुए. 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल 1857 को फ़ांसी दे दी गयी.