यूपी के बहराइच में सांप्रदायिक हिंसा के बाद बढ़ा तनाव
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

उत्तर प्रदेश के बहराइच में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद तनाव बढ़ गया है. हिंसा में एक युवक की गोली लगने से मौत के बाद हालात तनावपूर्ण हो गए हैं.उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में 14 अक्टूबर की सुबह बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. हालात पर नियंत्रण पाने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी लखनऊ में मृत युवक के परिवार से मुलाकात की. उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, "दुख की इस घड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार पूरी संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता से पीड़ित परिवार के साथ खड़ी है."

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इससे पहले 13 अक्टूबर को राजधानी लखनऊ से करीब 135 किलोमीटर दूर बहराइच के महसी कस्बे में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी. हालात पर नियंत्रण और अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए प्रशासन ने इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी हैं.

बावजूद इसके बहराइच की तहसील महसी के करीब महराजगंज में हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं. स्थानीय पत्रकार अजीम मिर्जा ने डीडब्ल्यू को बताया कि "उन्मादी भीड़ ने एक मोटरसाइकिल शो रूम में आग लगा दी और कई अन्य वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया गया. हालात पर काबू पाने के लिए उत्तर प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) अमिताभ यश समेत कई शीर्ष पुलिस अधिकारी मौके पर मौजूद हैं.”

तनाव बढ़ने का घटनाक्रम

13 अक्टूबर की देर शाम महसी तहसील के करीब महराजगंज बाजार में दुर्गा मूर्ति के विसर्जन का कार्यक्रम था. प्रतिमा विसर्जन के लिए जुलूस निकाला जा रहा था और इसमें डीजे बज रहा था. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, जब जुलूस मुस्लिम बसाहट वाले इलाके से निकल रहा था, तो समुदाय के लोगों ने डीजे की तेज आवाज पर आपत्ति जताई और डीजे बंद करने को कहा.

इस दौरान दोनों पक्षों में विवाद होने लगा और कुछ लोग कथित तौर पर छत से ईंट-पत्थर चलाने लगे. आरोप है कि रामगोपाल मिश्र नाम का युवक एक घर की छत पर चढ़ गया और वहां लगे हरे झंडे को उखाड़ दिया. खबरों के मुताबिक, कुछ लोग राम गोपाल मिश्र को पीछे घसीटकर ले गए, उसकी पिटाई की और इसी दौरान कथित तौर पर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

स्थानीय लोगों के मुताबिक, रामगोपाल के साथ हुई मार-पीट और गोली मारने के बाद उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए वहां मौजूद लोगों ने प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने नहीं सुनी. एक प्रत्यक्षदर्शी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुछ अफसर तो घटना के बाद वहां से भाग निकले. वहां मौजूद लोगों ने ही किसी तरह बाइक पर बैठाकर रामगोपाल को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.

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मृतक के भाई वैभव मिश्र ने मीडिया को बताया, "हम लोग मूर्ति लेकर जा रहे थे. इसी दौरान अब्दुल हमीद के घर से अचानक पथराव शुरू हो गया. वहां पर पुलिस थी, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की. मेरे भाई ने आगे बढ़कर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन लोगों को धक्का देकर अंदर कर दिया. इस दौरान कई राउंड गोलियां भी चलीं. बाद में पुलिस ने हम लोगों पर लाठियां भी चलाईं."

घटना के बाद जुलूस में शामिल भीड़ हिंसक हो गई. वारदात के बाद रात करीब 10 बजे स्थानीय बीजेपी विधायक सुरेश्वर सिंह भी वहां पहुंचे, लेकिन उन्हें लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा. आरोप है कि रात में ही उग्र भीड़ ने कई घरों में आगजनी की और कई गाड़ियों को भी जला दिया. रातभर आगजनी और पथराव होता रहा, लेकिन पुलिस और प्रशासन स्थिति को संभालने में नाकाम रहा.

दो दर्जन से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया

14 अक्टूबर की सुबह स्थिति तब और बिगड़ गई, जब रामगोपाल मिश्र के परिजन उनके शव को महसी तहसील परिसर में रखकर विरोध प्रदर्शन करने लगे. बड़ी संख्या में लोग यहां जुटे थे और देखते-ही-देखते भीड़ बेकाबू हो गई. कई जगहों पर दुकानों और मकानों में आग लगा दी गई. इस दौरान कई वाहनों को भी आग के हवाले कर दिया गया. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े. बहराइच पुलिस ने हिंसा के मामले में मुकदमा दर्ज कर दो दर्जन से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया है. देर शाम राम गोपाल मिश्र का अंतिम संस्कार हो सका.

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तनाव की वजह से दुकानदारों ने अपनी-अपनी दुकानें बंद कर दीं. पूरे इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, भीड़ ने मुस्लिम समुदाय के घरों और धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया. भीड़ इतनी आक्रोशित थी कि एडीजी कानून-व्यवस्था अमिताभ यश के सामने भी आक्रामक बनी रही और कई वाहनों को तोड़ दिया और आग लगा दी. एडीजी कानून-व्यवस्था का एक वीडियो काफी वायरल हुआ, जिसमें वह खुद अपनी पिस्टल लेकर भीड़ को खदेड़ते दिख रहे हैं. हालांकि, बाद में मौके पर पहुंची पीएसी ने मोर्चा संभाल लिया और भीड़ को पीछे खदेड़ दिया.

इस बीच, घटना में लापरवाही बरतने की वजह से 13 अक्टूबर की देर रात हरदी थाना प्रभारी और महसी चौकी प्रभारी को निलंबित कर दिया गया. बहराइच की पुलिस अधीक्षक वृंदा शुक्ला ने मीडिया को बताया, "हम पूरी स्थिति पर नियंत्रण पा रहे हैं. हमने अपनी पूरी ताकत लगा दी है. हम उन सभी उपद्रवियों को तितर-बितर करने की कोशिश कर रहे हैं, जो परेशानी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. स्थिति नियंत्रण में है."

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि इस हिंसा में शामिल लोगों से सख्ती से निबटा जाएगा. वहीं, विपक्ष ने प्रदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार पर सवाल उठाए हैं.

मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया है कि दंगा-फसाद और तनाव ही बीजेपी का शासन और सत्ता मॉडल है, जो अब यूपी की योगी सरकार कथित तौर पर यहां अपना रही है.

फैजाबाद से समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद ने डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में कहा, "यह दुखद और दर्दनाक घटना है. बहराइच के निवासियों और समाज के सभी वर्गों से मैं अपील करता हूं कि वे शांति बहाली में योगदान दें. तनाव की आशंका को देखते हुए पुलिस की तैयारी यदि ठीक रही होती, तो ऐसी घटना नहीं हो पाती. प्रदेश में कानून-व्यवस्था और लोगों के बीच भाईचारा बनाए रखना मुख्यमंत्री और प्रशासन की जिम्मेदारी है, जिसमें ये लोग नाकाम रहे हैं."

कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रशासन की निष्क्रियता को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए लोगों से कानून अपने हाथ में न लेने और शांति बनाए रखने की अपील की है.

बहराइच में पुलिस-प्रशासन पर सवाल

भारत में धार्मिक जुलूसों और शोभा यात्राओं के दौरान इससे पहले भी हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं. दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके की घटना हो, पिछले साल रामनवमी पर पश्चिम बंगाल में हुई घटना हो या फिर कुछ साल पहले यूपी के ही कासगंज में गणतंत्र दिवस पर तिरंगा यात्रा के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा हो, सवाल उठता है कि इन यात्राओं के दौरान ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं, जबकि प्रशासन को यह पता होता है कि दो समुदायों के आमने-सामने होने से तनाव बढ़ सकता है.

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आरोप लगते हैं कि प्रशासन और पुलिस की भाषा में अक्सर मुस्लिम बहुल इलाकों को 'संवेदनशील' इलाकों के तौर पर चिह्नित कर दिया जाता है और लोग भी ऐसा मानने लगते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह कहते हैं, "ये इलाके अक्सर हिंसा का केंद्र बन जाते हैं. इसका कारण यह है कि कई बार इन इलाकों में यात्रा, जुलूस इत्यादि के समय भड़काऊ माहौल बन जाता है. यह आपसी वाद-विवाद के कारण भी होता है और कई बार जानबूझकर या फिर किसी साजिश के तहत भी. पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि इन इलाकों में भीड़ को हिंसक होने से बचाए और जिन कारणों से भीड़ के हिंसक होने की आशंकाएं हों, उनपर भी नजर रखी जाए. ऐसा लगता है कि बहराइच में पुलिस और प्रशासन अपना ये दायित्व निभाने में नाकाम रहे."

यूपी के डीजीपी रहे रिटायर्ड पुलिस अधिकारी डॉक्टर वीएन राय कहते हैं कि ऐसी घटनाओं को पुलिस और प्रशासन की सतर्कता और तेजी से रोका जा सकता है, लेकिन यदि ढिलाई हुई या फिर नजरअंदाज करने की कोशिश हुई, तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाता है.

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डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में वह कहते हैं, "पहली बात तो ये कि इन यात्राओं का रास्ता तय होना चाहिए और फिर उन रास्तों पर सतर्कता बरतनी चाहिए. नियम का उल्लंघन करने वालों पर पहले से ही सख्ती रखने की कोशिश होनी चाहिए. और, सबसे बड़ी बात तो ये कि इन यात्राओं से पहले ही सभी समुदाय के लोगों के साथ मिल-जुलकर स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि उपद्रव हो भी तो सभी समुदायों के लोग उसे नियंत्रित करने में सहयोग दें. इन यात्राओं में डीजे पर जिस तरह के भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं, उनपर पाबंदी होनी चाहिए. पुलिस को नियंत्रित करना चाहिए क्योंकि ऐसी ही लापरवाहियां बड़ी घटनाओं की वजह बन जाती हैं."