Tamil Nadu: सर्पदंश के बाद समय पर इलाज न मिलने से हुई पति की मौत, महिला ने खटखटाया मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा, मांगा 10 लाख का मुआवजा
मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें एक महिला ने राज्य से 10 लाख रुपए के मुआवजे की मांग की थी, क्योंकि सर्पदंश के बाद समय पर इलाज न मिलने से उसके पति की मौत हो गई. महिला के पति को राज्य के 24x7 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में समय पर इलाज नहीं मिल सका था.
मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) ने तमिलनाडु सरकार (Tamil Nadu Government) से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें एक महिला ने राज्य से 10 लाख रुपए के मुआवजे की मांग की थी, क्योंकि सर्पदंश (Snake bite) के बाद समय पर इलाज न मिलने से उसके पति की मौत हो गई. महिला के पति को राज्य के 24x7 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र (Primary Health Centre) में समय पर इलाज नहीं मिल सका था. तमिलनाडु के तिरुवल्लूर जिले (Thiruvallur District) की 36 वर्षीय महिला याचिकाकर्ता के अरुणा (K Aruna) ने अदालत को बताया कि पिछले साल 6 नवंबर को दोपहर 3.45 बजे जब उनके पति खेत में काम कर रहे थे, तब सांप ने उन्हें काट लिया.
अरुणा ने अदालत को बताया कि उन्हें स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाया गया, जो चौबीस घंटे खुले रहने चाहिए, लेकिन उस दौरान वो बंद था. उसने ऐसे पीएचसी में चिपकाए गए एक नोटिस की तस्वीर भी पेश की, जिसमें कहा गया था कि केंद्र में सांप का जहर उपलब्ध है.
हालांकि उक्त पीएचसी बंद होने के कारण उसके पति को उसके कुछ दोस्त दूसरे पीएचसी में ले गए जो वहां से डेढ़ घंटे की दूरी पर था. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसके पति का दूसरी सुविधा में इलाज किया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उसकी वहीं मौत हो गई. यह भी पढ़ें: मद्रास हाईकोर्ट के जज के रूप में विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज
उसने कहा कि भले ही स्थानीय पीएचसी के पास एंटी-स्नेक वेनम का स्टॉक उपलब्ध था, लेकिन उसके पति का समय पर इलाज नहीं हो सका, क्योंकि घटना के समय सरकारी केंद्र बंद था. ऐसे में इस लापरवाही के लिए राज्य सरकार और संबंधित अधिकारी दोषी हैं और उन्हें महिला के पति की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
महिला ने कहा कि उसका पति घर में एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था और उसके दो नाबालिग बेटे हैं, जिनकी देखभाल करनी है. ऐसे में महिला ने अदालत से आग्रह किया कि वह राज्य को इस तरह की लापरवाही के लिए 10 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश देने की मांग की.
याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति अनीता सुमंत 10 फरवरी को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और अतिरिक्त सरकारी वकील बी विजय को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या घटना के समय पीएचसी वास्तव में बंद था, जैसा कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है.