नैनीताल: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने जोशीमठ संकट पर उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार जोशीमठ में भूमि के डूबने के वास्तविक कारणों का पता लगाने के प्रति गंभीर नहीं दिख रही है. कोर्ट ने कहा कि 'अधिकारी जोशीमठ क्षेत्र में भूवैज्ञानिक गतिविधि पर अध्ययन करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करने में विफल रहे हैं. यह कोर्ट द्वारा पारित पिछले आदेश का उल्लंघन है.' कोर्ट ने कहा, " राज्य सरकार भूमि धंसाव के वास्तविक कारणों का पता लगाने और उससे गंभीरता से निपटने के लिए गंभीर नहीं है." जोशीमठ के बाद अब श्रीनगर की वन विभाग की कॉलोनी में भू धंसाव.
अदालत ने स्थिति का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों को शामिल करने के अपने आदेश का स्पष्ट रूप से अनुपालन न करने के लिए राज्य सरकार के मुख्य सचिव को भी तलब किया है. कोर्ट ने कहा कि गहन अध्ययन से ही पता चलेगा कि भूमि धंसाव क्यों हुआ है, इससे कैसे निपटा जाए और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति को कैसे रोका जाए.
कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह जोशीमठ के मामले का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों से परामर्श करें और आकलन करें कि स्थिति को कैसे बचाया जा सकता है. कोर्ट को बताया गया कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी को अध्ययन करने के लिए कहा गया था.
कोर्ट के आदेश का नहीं हुआ पालन
अदालत ने सरकार को इस वर्ष जनवरी में जोशीमठ में हुए भूधंसाव की जांच के लिए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला, उत्तराखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक एम पी बिष्ट तथा स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्यों की एक समिति बनाने का निर्देश दिया था. जनहित याचिका में कहा गया है कि न तो ऐसी किसी समिति का गठन किया गया है और न ही इस संबंध में विशेषज्ञों की सलाह ली गयी है.
कोर्ट ने नए आदेश में कहा, 'यदि भूस्खलन विशेषज्ञों के अलावा जल विज्ञान, भूविज्ञान, ग्लेशियोलॉजी, आपदा प्रबंधन और भू-आकृति विज्ञान जैसे क्षेत्रों से विशेषज्ञों को शामिल किया जाना बाकी है, तो स्वतंत्र विशेषज्ञों को भी अध्ययन से जोड़ा जा सकता है.'
राज्य सरकार का रूखा व्यवहार
कोर्ट में दायर याचिका में जोशीमठ को तबाही के कागार पर बताते हुए कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा जोशीमठ की जनता की समस्याओं की अनदेखी की जा रही है और उनके पुनर्वास के लिए अब तक कोई योजना नहीं तैयार की गयी है. इसके अनुसार, प्रशासन ने जोशीमठ में 600 ऐसे भवनों को चिन्हित किया है जिनमें दरारें हैं.
पीयूष रौतेला और एमपी बिष्ट ने 25 नवंबर, 2010 को एक शोध पत्र छापा था कि एनटीपीसी हेलंग के निकट एक सुरंग बना रहा है जो बहुत संवेदनशील क्षेत्र है. सुरंग बनाते समय एनटीपीसी की टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) फंस गयी थी जिसके कारण पानी का रास्ता बंद हो गया और वह उपर की तरफ 700—800 लीटर प्रति सेकंड की दर से बहना शुरू हो गया.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पानी के सतह पर बहने के कारण निचले इलाकों की जमीन खाली हो जाएगी और भूधंसाव होगा इसलिए इस क्षेत्र में सर्वेंक्षण के बिना भारी निर्माण कार्य नहीं किए जाने चाहिए. मामले में सुनवाई की अगली तारीख 22 सितंबर तय की गयी है.