POCSO पीड़िता की उम्र का पता लगाने के लिए स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट पर भरोसा नहीं किया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी करने का आदेश दिया और कहा- POCSO मामलों में पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट और एडमिशन रजिस्टर पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में पॉक्सो से जुड़ा एक केस आया. कोर्ट ने आरोपी को बरी करने का आदेश दिया और कहा- POCSO मामलों में पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट और एडमिशन रजिस्टर पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.
बेंच ने कहा कि जब भी किसी पॉक्सो मामले में पीड़िता की उम्र को लेकर विवाद हो, तो ऐसे में कोर्ट को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की दारा 94 में बताए गए कदमों पर विचार करना चाहिए. दोषी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट पर भरोसा किया. जबकि डॉक्टक ने कहा था कि पीड़ित लड़की की उम्र 18 वर्ष से अधिक और 20 वर्ष से कम होगी. हाईकोर्ट ने भी अपील खारिज कर दी थी. SC On Journalist: पत्रकारों के पास कानून को अपने हाथ में लेने का लाइसेंस नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले से असहमति जताई. और कहा- पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए स्कूल ट्रांसफर सर्टिफिकेट और एडमिशन रजिस्टर पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. "ऑसिफिकेशन टेस्ट” से लड़की की उम्र का पता चल जाएगा.
कोर्आट ने कहा- इस मामले में अभियोजन पक्ष ये भी साबित नहीं कर पाया है कि आरोपी ने लड़की के साथ कोई जोर जबरदस्ती की या पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट हुआ. पीड़िता ने कहा कि वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे. लड़की, लड़के के साथ रहना चाहती थी.
कोर्ट ने कहा- लड़की के बयान से पता चलता है कि उसका यौन उत्पीड़न नहीं हुआ था. इसलिए इस मामले में पॉक्सो एक्ट नहीं लागू होगा. इसलिए, आरोपी की अपील स्वीकार कर ली गई और दोष सिद्धि को रद्द कर दिया गया.