
कोलकाता: प्रसिद्ध बंगाली लेखक और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रफुल्ल रॉय का गुरुवार दोपहर करीब 3 बजे कोलकाता के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. उन्होंने 91 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. वह लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे और मार्च से ही अस्पताल में भर्ती थे. उनके निधन से बंगाली साहित्य जगत में शोक की लहर है. प्रफुल्ल रॉय का जन्म 1934 में ब्रिटिश भारत के विक्रमपुर (अब बांग्लादेश के मुंशीगंज जिले) में हुआ था. विभाजन के बाद उन्होंने 1950 के दशक में कोलकाता को अपना ठिकाना बनाया.
प्रफुल्ल रॉय की रचनाओं में शरणार्थियों का दर्द, संघर्ष और विस्थापन की पीड़ा गहराई से झलकती है. यही वजह है कि उनकी लेखनी आम लोगों के दिलों को छू जाती थी.
उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में शामिल हैं: केया पातर नौको, सतो धाराय बॉए जाए, क्रांतिकाल. 2003 में 'क्रांतिकाल' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1985 में 'आकाशेर नीचे मानुष' के लिए बंकिम पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी कई रचनाएं फिल्मों में भी रूपांतरित की गईं, जिनमें शामिल हैं: एकाने पिंजर, मोनो मेये रूपाख्यान, चाराचार, बाघ बहादुर, आदमी और औरत आदि. इन फिल्मों ने भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की.
प्रफुल्ल रॉय का निधन
प्रफुल्ल रॉय का निधन
प्रसिद्ध साहित्यकार और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता प्रफुल्ल रॉय का आज कोलकाता के एक निजी नर्सिंग होम में निधन हो गया।
उनकी उल्लेखनीय कृतियों में इखाने पिंजर, आदमी और औरत, चराचर, क्रांतिकारी और अन्य शामिल हैं pic.twitter.com/pNXj4AiVnk
— आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) June 19, 2025
प्रफुल्ल रॉय की लेखनी का केंद्र मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय बंगालियों के जीवन से जुड़ा रहा. बिहार के वंचित और शोषित वर्गों के बीच उन्होंने वर्षों बिताए और उनके जीवन को भी अपनी कहानियों का हिस्सा बनाया. यही उनकी साहित्यिक पहचान थी – सामान्य जन की असामान्य कहानी.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जताया शोक
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने रॉय के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “प्रफुल्ल रॉय की रचनाओं में शरणार्थियों का दुःख, संघर्ष और मानवीय पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती थी. 'केया पातर नौको' उनकी कालजयी कृति है.” उन्होंने यह भी याद किया कि राज्य सरकार ने 2012 में एक समारोह में उन्हें सम्मानित किया था. साथ ही यह भी कहा कि रॉय कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं से जुड़े रहे और उन्हें अपनी लेखनी से समृद्ध किया.