आरजी कर केस: कब बनता है कोई मामला
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

आरजी कर मेडिकल कॉलेज की ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या में सियालदह सेशन कोर्ट के फैसले से पीड़ित परिवार और पश्चिम बंगाल सरकार नाखुश हैं. सभी फांसी की मांग कर रहे हैं. लेकिन बलात्कार के मामलों में फांसी की सजा हल है?आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पिछले साल अगस्त में एक ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. साथ ही उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

पीड़ित परिवार चाहता है कि दोषी को फांसी की सजा दी जाए. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह इंसाफ के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को यह भी आदेश दिया है कि वह परिवार को 17 लाख रुपये मुआवजे के रूप में दे. हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिता ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया है.

ना सिर्फ परिवार बल्कि पश्चिम बंगाल की सरकार भी दोषी के लिए मौत की सजा चाहती है. फैसले से नाखुश मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि अगर यह केस सीबीआई की जगह कोलकाता पुलिस के पास होता तो वह यह सुनिश्चित करतीं कि "दोषी को फांसी की सजा" मिले.

क्यों कोर्ट ने मामले को "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर” नहीं माना

केस की सुनवाई के दौरान सेशन अदालत ने इसे "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर है” नहीं माना. 172 पन्नों के आदेश में यह कहा गया कि यह अपराध बेहद क्रूर और नृशंस है. भारतीय न्याय व्यवस्था में फांसी की सजा उन मामलों में दी जाती है जो असाधारण रूप से नृशंस हो और समाज के सामूहिक विवेक को झकझोर कर रख दे.

कोर्ट ने इस बात का भी जिक्र किया कि "आंख के बदले आंख और जान के बदले जान” की सोच से ऊपर उठने की जरूरत है. फैसले से निराश, पीड़िता के परिवार ने कहा कि अदालत भले ही ना माने लेकिन यह केस "रेयरेस्ट ऑफ द रेयर है.”

जब अदालतें अपने फैसले में किसी केस को इस श्रेणी में रखती हैं तो अमूमन मौत की सजा ही दी जाती है. रेप के बाद हत्या, हत्या, आतंकवाद, अपहरण के बाद हत्या और राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के मामले इसके तहत आते हैं.

भारत: कम ही बलात्कार के मामलों में साबित होता है दोष

भारत में इस टर्म का इस्तेमाल पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने 1980 में किया था. "बच्चन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब” के केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मृत्यु दंड की वैधानिकता बरकरार रखते हुए, मृत्युदंड देने के लिए कुछ सिद्धांत तय किए थे.

कोर्ट ने कहा था कि दुर्लभ केसों में भी फांसी की सजा अपवाद के तौर पर ही दी जानी चाहिए. सजा तय करने में अपराध की क्रूरता को कोर्ट ने सबसे जरूरी पहलू के रूप में रेखांकित किया. कोर्ट ने यह भी कहा था कि फांसी की सजा देने से पहले उम्रकैद जैसे विकल्पों पर विचार किया जाना भी जरूरी है.

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बलात्कार के मामलों में सबसे ज्यादा मिली है मौत की सजा

भारत की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का "प्रोजेक्ट 39ए" देश में कितने लोगों को मौत की सजा हर साल दी गई, इस पर नजर रखता है. "प्रोजेक्ट 39ए” के मुताबिक 2023 के अंत तक 561 कैदी ऐसे थे जिन्हें अलग अलग अदालतों ने फांसी की सजा सुनाई थी. उनकी सालाना रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत में 2015 से 2023 के बीच मौत की सजा के मामलों में 45.1 फीसदी की बढ़त हुई है.

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2019 से बलात्कार के मामलों में ही सबसे अधिक फांसी की सजा दी गई है. 2023 में बलात्कार के बाद हत्या के 120 मामलों में दोषियों को मौत की सजा दी गई. रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामला किसे माना जाए इसकी कोई कानूनी परिभाषा नहीं है. अदालतें मामले की संवेदनशीलता, नृशंसता और कई दूसरे पहलुओं को देखते हुए ही इस बारे में फैसला करती हैं.

बलात्कार के मामले में फांसी की सजा देने पर प्रोजेक्ट 39ए की डायरेक्टर नीतिका ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि कानून के तहत आपको सिर्फ अपराध की परिस्थितियां ही नहीं बल्कि अपराधी की परिस्थितियों का भी ध्यान रखना होता है. उनका कहना है, "जब किसी आपराधिक घटना में ऐसी सजा की मांग की जाती है तो यह कानून के मूल सिद्धांत का खंडन है. कानून कहता है कि कुछ तरह के बलात्कार के मामलों में फांसी की सजा दी जा सकती है लेकिन इन मामलों में भी आपको अपराधी की परिस्थितियों को ध्यान में रखना है. इन मामलों में भी आप सिर्फ अपराध की परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए सजा का फैसला नहीं कर सकते हैं और ऐसा करना गैर-कानूनी है."

जब ऐसे अपराध होते हैं तो लोगों का गुस्सा चरम पर होता है उन्हें मौत ही इसके लिए उचित सजा दिखती है. मौत की सजा के कई फैसले जनभावना से प्रभावित होते हैं. इसलिए आरजी कर मामले में भी कोर्ट ने कहा कि लोगों की भावनाओं के दबाव में आकर फैसले नहीं सुनाए जा सकते.

जनभावना के आधार पर फैसले दिए जाने के संदर्भ में नीतिका कहती हैं, "अफसोस की बात है कि सुप्रीम कोर्ट में ऐसे फैसलों की एक कतार है, जिनमें जनता की राय को भी सजा सुनाते वक्त एक कारण की तरह इस्तेमाल किया गया. इसके जरिये जनता की राय सजा संबंधी अदालती फैसलों में दखल देने और उसे प्रभावित करने के लिए अपना रास्ता खोज लेती है."

दिसंबर 16, 2012 में दिल्ली में एक युवती के सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी नृशंसता से हत्या कर दी थी. इसके बाद देशभर में प्रदर्शन हुए थे. कोर्ट ने इस मामले को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर माना था. दोषियों को फांसी की सजा दी गई थी. इस फैसले को एक नजीर की तरह पेश किया जाता है.

कोलकाता की ट्रेनी डॉक्टर की मौत के तुरंत बाद ही पश्चिम बंगाल सरकार अपराजिता बिल लेकर आई. बिल के तहत बलात्कार के मामले में अगर पीड़ित की मौत हो गई तो दोषी को फांसी दी जाएगी.

बलात्कार के अपराध के खिलाफ जब भी विरोध प्रदर्शन होता है तो सजा के तौर पर फांसी की मांग ही की जाती है. हालांकि, मानवाधिकार संगठनों और लैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि मौत की सजा देना समस्या का हल बिलकुल नहीं है.

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नीतिका कहती हैं, "शुरुआत से ही आम जनता का अपराधी के लिए मौत की सजा का मांग करना इसलिए एक समस्या है. जब हम ऐसे मामलों के बारे में सुनते हैं तो हमें सिर्फ उनकी सिर्फ अपराध की परिस्थिति के बारे में जानकारी होती है लेकिन सजा पर फैसला लेने के लिए अपराध और अपराधी दोनों की परिस्थितियों के बारे में जानना जरूरी है. जो अक्सर नहीं होती."

2012 दिल्ली गैंगरेप के बाद गठित की गई जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी भी रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामलों में भी मृत्युदंड के पक्ष में नहीं थी. कमेटी का मानना था कि फांसी की सजा एक रूढ़िवादी कदम है.

बलात्कारियों को फांसी की सजा देने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इससे ऐसे अपराधों की संख्या घटेगी. आंकड़े, इस तर्क का समर्थन नहीं करते. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कठोर सजा के डर से बलात्कार जैसे अपराध कम हो जाएं.

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े आंकडे भी कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश करते हैं. 2012 के बाद बलात्कार के कानून बेहद सख्त हुए. इसके बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या तो बढ़ी ही लेकिन सजा की दर बेहद कम होती गई. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2022 के बीच बलात्कार के बलात्कार के केवल 27-28 फीसदी मामलों में ही को सजा मिली है.