Uttar Pradesh: इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने दुष्कर्म के मामले (Rape Case) में कहा है कि, अगर मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज रेप पीड़िता का बयान उसके पहले दर्ज बयान से अलग है तो ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी (Investigation Officer) उससे दोबारा पूछताछ नहीं कर सकता. इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि, दो अलग-अलग बयान होने कि स्थिति में जांच अधिकारी को विशिष्ट सवाल नहीं पूछ सकता. ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी रेप पीड़िता से न हीं दोबारा पूछताछ कर सकता है न हीं दोबारा उसके बयान दर्ज कर सकता है. वह जांच को आगे बढ़ा सकता है. यह भी पढ़ें: Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएम योगी के खिलाफ टिप्पणी करने वाले शख्स की गिरफ्तारी पर लगाई रोक
एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि, जांच अधिकारी ने ब्लात्कार के आरोपी के खिलाफ धारा 161 के तहत रेप पीड़िता के बयान दर्ज किए और आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं में आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया.
लेकिन इसके बाद धारा 164 के तहत पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना बदल दिया था. लेकिन इसके बाद जांच अधिकारी ने फिर 161 के तहत पीड़िता से कुछ विशिष्ट सवाल पूछे और दोबारा उसका बयान दर्ज किया. इसके बाद पीड़िता के पहले और बाद के बयान अलग-अलग पाए गए.
इस मामले में फैसला देते हुए मामले की सुनवाई करने वाले जस्टिस समित गोपाल कहा कि पीड़ित द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष संहिता की धारा 164 के तहत दिया गया बयान जांच अधिकारी द्वारा संहिता की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए उसके बयान न्याय प्रक्रिया की पवित्रता पर सवाल खड़े करता है.
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, एक ही मामले में जांच अधिकारी द्वारा पीड़िता के दो अलग-अलग बयान लिए गए हैं. जबकी पीड़िता ने अपना बयान मजिस्ट्रेट के सामने कुछ ओर दिया था. पीठ ने कहा कि, जांच के लिए कार्यवाही द्वारा जांच अधिकारी ने इस तरह से स्पष्ट रूप से अपने अधिकार क्षेत्र को पार किया है. ऐसा प्रतित होता है कि ऐसा मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए बयानों को विफल करने के एकमात्र उद्देश्य के किया गया है.
बता दें कि इससे पहले इस मामले में कोर्ट ने बीती एक अक्टूबर को अपने फैसले में इस विशिष्ट बिंदु को तय करते हुए उत्तर प्रदेश के डीजीपी को जांच के उक्त नए चलन को देखने और उपयुक्त दिशा-निर्देश जारी करने के निर्देश दिए थे ताकि न्यायिक कार्यवाही की पवित्रता और अधिकार बनाए रखे जा सकें और पीड़ित निराश न हों.