राजस्थान में जारी राजनीतिक संकट के बीच गहलोत सरकार ने मंगलवार को भाजपा की मेयर सौम्या गुर्जर को पद से बर्खास्त कर दिया. 23 सितंबर को इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया और राज्य सरकार को दो दिन बाद कार्रवाई करने को कहा गया. सोमवार को छुट्टी होने के कारण राज्य सरकार ने मंगलवार को मेयर को बर्खास्त करने का प्रस्ताव तैयार कर शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल को भेज दिया. यह भी पढ़ें: बिहार नगर निकाय चुनाव में पहले चरण में 3658 पदों के लिए 22212 प्रत्याशी
मंत्री की स्वीकृति मिलने पर स्वायत्तशासी शासन विभाग ने महापौर को पद से बर्खास्त करने और अगले छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का आदेश जारी किया.
गौरतलब है कि जून 2021 में जयपुर नगर निगम ग्रेटर मुख्यालय में मेयर सौम्या गुर्जर, तत्कालीन आयुक्त यज्ञमित्र सिंह देव और अन्य पार्षदों के बीच हुई बैठक में विवाद की सूचना मिली थी. पार्षद और मेयर के बीच कमिश्नर से बहस हो गई। कमिश्नर बैठक को बीच में ही छोड़ कर चले गए थे.
लेकिन पार्षदों ने उन्हें गेट पर ही रोक लिया, जिसके बाद विवाद और बढ़ गया। आयुक्त ने तीन पार्षदों पर मारपीट का आरोप लगाते हुए सरकार को लिखित शिकायत दी और ज्योति नगर थाने में मामला दर्ज कराया.
5 जून को सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए मेयर सौम्या गुर्जर व पार्षद पारस जैन, अजय सिंह, शंकर शर्मा के खिलाफ मिली शिकायत की जांच स्वायत्त शासन निदेशालय के क्षेत्रीय निदेशक को सौंप दी. सरकार ने छह जून को जांच रिपोर्ट में चारों को दोषी मानते हुए सभी (महापौर और तीन पार्षदों) को पद से निलंबित कर दिया था. उसी दिन, सरकार ने उन सभी के खिलाफ न्यायिक जांच शुरू की.
उसी महीने, राज्य सरकार ने एक आदेश जारी किया और पार्षद शील धाबाई को कार्यवाहक मेयर नियुक्त किया. मेयर गुर्जर ने निलंबन को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 28 जून को हाईकोर्ट ने निलंबन आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
जुलाई में सौम्या गुर्जर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर न्यायिक जांच पर रोक लगाने और निलंबन आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी. 1 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने निलंबन आदेश पर रोक लगा दी, जिसके बाद सौम्या गुर्जर ने 2 फरवरी को मेयर की कुर्सी फिर से संभाल ली.
सौम्या और तीन अन्य पार्षदों के खिलाफ न्यायिक जांच की रिपोर्ट 11 अगस्त को आई, जिसमें सभी को दोषी पाया गया था. 22 अगस्त को सरकार ने भाजपा के तीन पार्षदों की सदस्यता समाप्त कर दी। इस न्यायिक जांच के आधार पर उन्हें सरकार ने हटा भी दिया है.
इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर न्यायिक जांच की रिपोर्ट पेश की और मामले की जल्द सुनवाई की मांग की. शीर्ष अदालत ने 23 सितंबर को सरकार को आगे बढ़ने की अनुमति दी थी.