इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को व्यास तहखाने का रिसीवर नियुक्त करने के जिला जज के फैसले को चुनौती देने वाली मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज कर दी है.हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदू पूजा-पाठ की अनुमति देने के वाराणसी जिला अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी. हाई कोर्ट के जज रोहित रंजन अग्रवाल ने मस्जिद समिति की याचिका को खारिज करते हुए कहा, "व्यास तहखाना' में हिंदू प्रार्थनाएं जारी रहेंगी."
वाराणसी जिला अदालत ने जनवरी में फैसला दिया था कि एक पुजारी ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने - जिसे "व्यास तहखाना" कहा जाता है - में पूजा कर सकता है.
पूजा पर रोक चाहता था मुस्लिम पक्ष
इसके बाद मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास जी के तहखाने का वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त करने और तहखाने में पूजा की अनुमति देने के वाराणसी के जिला जज के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी.
जस्टिस अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा, "मामले के पूरे रिकॉर्ड को देखने और संबंधित पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद अदालत को जिला जज द्वारा 17.01.2024 को पारित फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला, जिसमें वाराणसी के डीएम को संपत्ति का रिसीवर नियुक्त किया गया था."
31 जनवरी को जिला अदालत ने तहखाने में पूजा की इजाजत दी थी.
तहखाने में जारी रहेगी पूजा
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हिंदू पक्ष के वकील प्रभाष ने मीडिया से कहा, "हाई कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जो मुस्लिम पक्ष ने जिला जज के आदेश के खिलाफ दायर की थीं. इसका मतलब है कि पूजा वैसे ही जारी रहेगी. जिला मजिस्ट्रेट तहखाना के रिसीवर के रूप में बने रहेंगे."
उन्होंने आगे कहा, "वे (मुस्लिम पक्ष) फैसले की समीक्षा के लिए दोबारा कोर्ट जा सकते हैं. पूजा जारी रहेगी."
तहखाने में पूजा का फैसला
दरअसल वाराणसी जिला अदालत ने पूजा का आदेश शैलेन्द्र कुमार पाठक की याचिका पर दिया था. पाठक ने अपनी याचिका में कहा था कि उनके नाना सोमनाथ व्यास ने दिसंबर 1993 तक पूजा की थी. पाठक ने अनुरोध किया था कि एक वंशानुगत पुजारी के रूप में उन्हें तहखाने में दाखिल करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए.
लेकिन मुसलमान पक्ष इस दावे को सिरे से नकारता है. उसका कहना है कि इस जगह पर न तो व्यास परिवार ने और न ही किसी हिंदू ने कभी भी पूजा नहीं की है. साल 1993 में यहां पूजा-पाठ बंद कराने की बात को भी मुसलमान पक्ष सही नहीं मानता और न ही वहां किसी मूर्ति के होने की बात को सही मानता है.
दरअसल, हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है, जहां करीब 2,000 साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हुआ था. हिंदू पक्ष का यह भी दावा है कि साल 1664 में औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वा दिया था और उसी जगह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण हुआ था.