पूजा खेड़कर मामला: क्या यूपीएससी की कार्यप्रणाली भी सवाल के घेरे में है?
महाराष्ट्र कैडर की प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेड़कर मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.
महाराष्ट्र कैडर की प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेड़कर मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या यूपीएससी की कार्यप्रणाली भी असंदिग्ध नहीं रह गई है?भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की प्रशिक्षु अधिकारी पूजा खेड़कर को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. उनके खिलाफ केंद्र सरकार जांच कर रही है, उनकी उम्मीदवारी की जांच के लिए एक सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है और उनके माता-पिता के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है.
पूजा खेड़कर पर फर्जीवाड़ा करके विकलांग कोटा और अन्य पिछड़ा वर्ग कोटा का दुरुपयोग करने का आरोप है. बताया जा रहा है कि यदि उन पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है.
फिलहाल महाराष्ट्र में पुणे की ग्रामीण पुलिस ने एक अन्य मामले में एक किसान की शिकायत के आधार पर पूजा खेड़कर के माता-पिता और पांच अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.
पूजा खेड़कर पर आरोप
पूजा खेड़कर ने साल 2022 में यूपीएससी की परीक्षा दी और 2023 में 841वीं रैंक पाकर आईएएस अधिकारी बन गईं. उन्हें महाराष्ट्र कैडर मिला और पुणे में उन्होंने अपना प्रोबेशनरी पीरियड यानी प्रशिक्षण अवधि पूरी की. फिर उनकी तैनाती वाशिम जिले में असिस्टेंट कलेक्टर के तौर पर हुई. लेकिन सिर्फ इतनी ही अवधि में उनके साथ न जाने कितने विवाद खड़े हो गए.
आरोप हैं कि पूजा खेड़कर ने पुणे में रहते हुए कई अधिकारियों को परेशान किया, प्राइवेट ऑडी कार पर लाल बत्ती का इस्तेमाल किया और निजी उपयोग के लिए ऐसी चीजों की आधिकारिक तौर पर मांग की जिनके लिए वो अधिकृत नहीं थीं.
विवाद सामने आने के बाद उनके बारे में और कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. यह भी पता चला कि पूजा खेड़कर ने संघ लोकसेवा आयोग यानी यूपीएससी की परीक्षा के दौरान तीन एफिडेविट जमा किए थे. इनमें से एक में उन्होंने खुद को मानसिक रूप से अक्षम बताया, दूसरे में बताया कि उन्हें देखने में भी समस्या है और तीसरा एफिडेविट था अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वर्ग में नॉन क्रीमी लेयर कैटेगरी का.
यूपीएससी की तरफ से कराए जाने वाले मेडिकल टेस्ट को भी उन्होंने नजरअंदाज किया. इसलिए मेडिकल संबंधी जो एफिडेविट उन्होंने यूपीएससी को दिए, अब उन पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
इस बीच एक पूर्व आईएएस अधिकारी को लेकर भी ऐसा ही विवाद खड़ा हो गया है. अभिषेक सिंह 2011 बैच के उत्तर प्रदेश कैडर के अधिकारी थे. 2020 में उन्होंने फिल्मों और ओटीटी कार्यक्रमों में एक्टिंग शुरू की और 2023 में अपने दूसरे करियर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आईएएस से इस्तीफा दे दिया.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि उन्होंने लोकोमोटर विकलांगता का दावा किया था और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की चयन प्रक्रिया में छूट का लाभ लिया था. लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया पर उनकी डांस करते हुए और जिम में कसरत करते हुए वीडियो उनके वायरल हो गए. इसके बाद उनके मामले को भी पूजा खेड़कर मामले से देखा जाने लगा और यूपीएससी की चयन प्रक्रिया पर लगे सवाल और गहरा गए.
चयन प्रक्रिया पर उठते सवाल
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्या इन सब बातों की जांच नहीं की जाती है या फिर ‘सक्षम' लोग इस परीक्षा में भी कुछ इस तरह पास हो जाते हैं जैसे कि कई अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में? हाल के दिनों में राज्यों की लोकसेवा आयोगों से लेकर कई भर्ती बोर्डों की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठे हैं.
दिल्ली में पिछले कई साल से सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों का मार्गदर्शन कर रहे शिक्षक कुमार सर्वेश कहते हैं कि ऐसी कुछ घटनाओं की वजह से यूपीएससी की कार्यप्रणाली पर संदेह करना ठीक नहीं है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि यूपीएससी संदेह से परे है, यह कहना भी ठीक नहीं.
उनके मुताबिक, "कुछ तकनीकी पहलू हैं जो यूपीएससी की परीक्षा प्रक्रिया से अलग हैं. जैसा कि पूजा खेड़कर के मामले में दिख रहा है. प्रारंभिक परीक्षा और लिखित परीक्षा में किसी तरह की धांधली या भेदभाव होता हो, ऐसा अब तक सामने नहीं आया है और न ही परीक्षा की प्रणाली को देखकर कभी आभास होता है. पर हां, इंटरव्यू के लेवेल पर ऊंचे स्तर की सिफारिश न चलती हो, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. और ये सिफारिशें कई बार व्यक्तिगत स्तर की होती हैं और कई बार विचारधारा के स्तर पर भी. बावजूद इसके यह परीक्षा अभी भी तमाम दूसरी परीक्षाओं की तुलना में लीक प्रूफ है.”
हालांकि यूपीएससी की परीक्षाओं और परिणाम में भी कई बार धांधली के आरोप लग चुके हैं लेकिन इस तरह की कथित धांधली तकनीकी स्तर पर ही लगी है, न कि जानबूझकर किए जाने को लेकर. मसलन, साल 2010 में प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम में धांधली की शिकायत पर छात्रों ने आंदोलन किया था. इसी तरह कट ऑफ नंबर को लेकर भी कई बार सवाल उठ चुके हैं.
कई राज्यों की लोकसेवा आयोगों में भी परीक्षाओं में धांधली के आरोप अक्सर लगते रहे हैं और परीक्षाओं के परिणाम को कोर्ट में चुनौती दी जाती रही है. कोर्ट से परीक्षाएं रद्द भी हुई हैं. हाल ही में यूपी लोक सेवा आयोग में सिविल जज की मुख्य परीक्षा में बड़ी संख्या में कॉपियों को बदल देने का मामला सामने आया. कोर्ट के निर्देश के बाद जब उनकी जांच की गई तो अस्सी कॉपियां बदली हुई पाई गईं.
हालांकि संघ लोकसेवा आयोग के सदस्य रहे एक शिक्षाविद नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि यूपीएससी जिस तरह से परीक्षाओं का आयोजन करता है और जिस तरह की गोपनीयता बरती जाती है, उसे देखते हुए किसी तरह की धांधली की आशंका बहुत कम होती है. लेकिन कुमार सर्वेश की तरह वो भी इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि साक्षात्कार (इंटरव्यू) के दौरान कुछ हद तक पक्षपात की संभावना बनी रहती है.
जहां तक साल 2023 बैच की आईएएस अधिकारी पूजा खेड़कर का सवाल है तो अभी वो प्रशिक्षण अवधि में हैं और अपनी विकलांगता और ओबीसी स्थिति के दावों की प्रामाणिकता को लेकर विवादों में हैं. इन्हीं के आधार पर उन्हें सिविल सेवा में नियुक्ति मिली थी. यानी रैंक कम होने के बावजूद उन्हें प्रॉपर आईएएस मिला था.
इन दोनों मामलों की जांच के लिए केंद्र द्वारा गठित एक सदस्यीय पैनल को यदि लगता है कि उन्होंने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया है या उन्हें छिपाया है तो उनकी सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं और उन्हें जालसाजी के आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ सकता है.
अक्सर सामने आते हैं ऐसे मामले
डीओपीटी के अतिरिक्त सचिव मनोज द्विवेदी का पैनल अगले दो हफ्तों में इस बात की जांच करेगा कि उन्होंने अपनी विकलांगता और ओबीसी स्थिति को साबित करने वाले दस्तावेज कैसे हासिल किए और क्या इन्हें जारी करने वाले प्राधिकारी ने दस्तावेजों की समुचित जांच की थी?
खेड़कर पर आरोप हैं कि अपनी विकलांगता की पुष्टि के लिए दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अनिवार्य मेडिकल परीक्षण के लिए कई बार बुलाए जाने के बावजूद वो उपस्थित नहीं हुईं. इस सर्टिफिकेट के जरिए वो यूपीएससी की ओर से आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में ‘बेंचमार्क विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूबीडी)' श्रेणी में चयनित हुई हैं.
पैनल एम्स के विशेषज्ञों के परामर्श से यह भी जांच करेगा कि क्या उनके द्वारा दावा की गई दृष्टि और मानसिक विकलांगता सरकारी रोजगार के मानदंडों को पूरा करती है.
इस मामले में जांच प्रक्रिया से जुड़े एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि ऐसे मामले लगभग हर साल सामने आते हैं जब विकलांगता के फर्जी दावों के आधार पर सिविल सेवा में चुने गए लोग एम्स दिल्ली में अनिवार्य मेडिकल परीक्षण से बचते हैं.
उनके मुताबिक, कई बार तो ऐसे मामलों में अभ्यर्थी केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण तक में गए हैं और मांग की है कि ये मेडिकल टेस्ट कहीं और कराए जाएं. लेकिन मेडिकल टेस्ट में फेल होने या जांच में विकलांगता दावे गलत निकलने के बाद चयन के बावजूद अभ्यर्थियों की नियुक्ति नहीं होती है.
पूजा खेड़कर के मामले में जांच पैनल अपने रिपोर्ट डीओपीटी को सौंपेगा, जो अपनी सिफारिशों के साथ महाराष्ट्र सरकार को रिपोर्ट भेजेगा क्योंकि पूजा खेड़कर को महाराष्ट्र कैडर आवंटित किया गया है. जानकारों के मुताबिक, पूजा खेड़कर के मामले में कई तरह की खामियां सामने आ रही हैं.
मसलन, वो आर्थिक रूप से कमजोर श्रेणी से होने का दावा करती हैं, लेकिन उनके पिता करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं, रिटायर्ड नौकरशाह हैं और खुद पूजा खेड़कर करोड़ों रुपये की चल-अचल संपत्ति की मालिक हैं.
आइएएस प्रशिक्षु अफसरों का प्रोबेशन पीरियड दो साल का होता है. प्रोबेशन के तहत अफसरों को मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशिक्षण केंद्र के अंतर्गत रहते हुए सभी दिशानिर्देश मानने होते हैं. यही वजह है कि पूजा खेड़कर मामले की रिपोर्ट प्रशिक्षण केंद्र ने भी मांगी है.