गुरुवार को केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रहलाद सिंह पटेल (Prahlad Singh Patel) संन्यासी विद्रोह का केन्द्र रहे ऐतिहासिक देवी चौधरानी मंदिर के दर्शन के लिए गए लेकिन मंदिर की हालत और भवानी पाठक और देवी चौधरानी की जली हुई प्रतिमाओं को देखकर काफी दुखी हुए. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) पर श्री प्रहलाद सिंह पटेल जमकर बरसे और उन पर मंदिर के विषय में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया. आपको बता दें कि चार साल पहले यह प्राचीन मंदिर जल गया था लेकिन अभी तक मंदिर के पुनर्निमाण का कार्य पूरा नहीं हो पाया है जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंदिर का काम पूरा होने की गलत जानकारी दी. यह भी पढ़ें- आजादी का अमृत महोत्सव: केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने सोमवार को 75 किलोमीटर की दांडी यात्रा नाडियाद में पूरी की.
श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने इसे ना सिर्फ धार्मिक रूप से लोगों की भावनाओं को आहत करना बताया बल्कि वंदे मातरम के रचियता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का भी अपमान बताया. उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र जी ने इसी पवित्र भूमि पर वंदे मातरम की रचना की थी और यहीं से अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार किया था. श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि हम बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जी के सम्मान में देशभर से वंदे मातरम गाने वाले कलाकारों को इस पवित्र भूमि पर इकट्ठा करेंगे और एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन करेंगे.
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल का ट्वीट-
आज़ादी के #AmritMahotsav पर देवी चौधरानी मंदिर के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।संन्यासी विद्रोह के अगुआ भवानी पाठक और देवी चौधरानी की जली हुई काष्ठ प्रतिमाओं को देखकर दुख मिश्रित गर्व है,वन्दे मातरम् का लेखन वंकिमचंद्र चट्टोपध्याय ने इसी पुण्य भूमि पर किया था @incredibleindia pic.twitter.com/qlYUCQZ9wv
— Prahlad Singh Patel (@prahladspatel) April 1, 2021
आपको जानकारी दे कि पश्चिम बंगाल धार्मिक और राजनैतिक दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है. यहां का संन्यासी विद्रोह इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र में क्रांतिकारी संन्यासियों के वेश में शरण लेते थे. धर्म प्रचार के आवरण में देश भक्ति का प्रचार किया जाता था. इन्हीं क्रांतिकारियों में अग्रणी थे भवानी पाठक जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के मूल निवासी थे. उन्होंने उत्तर बंगाल को अपना कर्म क्षेत्र चुना था और इस कर्म यज्ञ में उनकी सहयोगी बनीं थीं यहां की एक बागी पुत्र-वधू जो कालांतर में देवी चौधरानी के नाम से प्रसिद्ध हुई.