UP Elections 2022: यूपी चुनाव का केंद्र बना काशी, विपक्षी जोर के बीच कितना चलेगा PM मोदी का जादू? जानें क्या है बनारस की जनता के मुद्दे

इन दिनों बनारस की गलियों में सियासी चर्चाएं अपने चरम पर हैं. यहां 7 मार्च को वोटिंग होनी है. सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. माना जा रहा है कि सभी दल पूरे पर्वांचल का चुनावी समीकरण बनारस में ही तैयार कर रहे हैं. इन सब के बीच आइए जानते हैं कि आखिर बनारस में कौन से चुनावी मुद्दों हावी रहने वाले हैं.

(Photo Credit : Twitter/Facebook)

UP elections 2022, वाराणसी, 2 मार्च: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी (Kashi) यूपी चुनाव का केंद्र बन गई है. इन दिनों बनारस की गलियों में सियासी चर्चाएं अपने चरम पर हैं. यहां 7 मार्च को वोटिंग होनी है. यानि 5 मार्च की शाम को चुनाव प्रचार थम जाएगा, लेकिन इससे पहले चुनाव प्रचार के लिए बनारस (Banaras) में राजनीतिक दिग्गजों का जमावड़ा लग रहा है. सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. माना जा रहा है कि सभी दल पूरे पर्वांचल (Purvanchal) का चुनावी समीकरण बनारस  में ही तैयार कर रहे हैं. UP Assembly Election 2022: बलरामपुर में इस बार भाजपा को मिल रही कड़ी टक्कर

वाराणसी (Varanasi) की 8 विधानसभा सीटों में पिंडरा, अजगरा शिवपुर, रोहनियां, वाराणसी (उत्तरी), वाराणसी (दक्षिणी) वाराणसी (कैंट) और सेवापुरी शामिल हैं. पीएम मोदी के इस संसदीय क्षेत्र में  2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने 8 सीटों पर बाजी मारी थी, लेकिन इस बार कुछ सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर मिल सकती है.

बात करें अगर काशी के मुद्दों की तो गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि बाबा श्री काशी विश्वनाथ धाम (Shri Kashi Vishwanath Temple) के नव्य और भव्य स्वरूप को केंद्र में रखकर मुद्दों को तैयार किया जाएगा. यानि की भाजपा (BJP) सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मुद्दों को लेकर यहां की जनता को लुभाने की कोशिश करेगी. वहीं समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) बेरोजगारी, बेसहारा पशु और बेरोजगारी को लेकर चुनावी मैदान में उतरी है. यहां बीजेपी और सपा में सीधी टक्कर देखने को मिल रही हैं. कांग्रेस और बसपा की दावेदारी यहां कमजोर नजर आ रही है, हालांकि पिंडरा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय बीजेपी को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं.

क्या है मुद्दें

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आता जा रहा है वैसै-वैसे स्थानीय मुद्दे हावी होते जा रहे हैं. आवारा पशुओं का मुद्दा अब भाजपा की टेंशन की वजह बनता जा रहा है. आवारा पशुओं से यहां के किसानों परेशान हैं. अब सपा इस मुद्दे को पूरी तरह भुनाने की कोशिश कर रही हैं. बनारस घाटों और मंदिरों का शहर है. ऐसे में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण बीजेपी के लिए यहां संजीवनी का काम कर सकती है.

यहां सड़क भी अहम मुद्दा है. बनारस में हर रोज लोग जाम के झाम से जूझते हैं. सकरे रोड के चलते यहां यातायात काफी प्रभावित होता है. वहीं दूसरी तरफ रिंग रोड के निर्माण के कारण शहर के बाहर यातायात सुगम हो गया है. शहर के अंदर की बात करें तो, सीवेज के चलते अक्सर यहां की सड़कों की खुदाई का काम चलता रहता है. सड़क खोद तो दी जाती है, लेकिन कभी-कभी उसे भरने में 2 से 3 हफ्ते तक लग जाते हैं. इस दौरान हादसे का डर बना रहता है. बनारस में बड़े स्तर पर साड़ी के कारखाने हैं, जिसकी वजह से पावरलूम का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. ऐसे में सपा का 300 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा लोगों को लुभा सकता है.

विधायकों से नाराजगी

वाराणसी में जनता के बीच बीजेपी विधायकों के प्रति नाराजगी भी देखने को मिली है. लोगों का कहना है कि विधायकों ने कोई काम नहीं किया है. ये सिर्फ सीएम योगी और पीएम मोदी के नाम पर वोट लेना चाहते हैं. इतना ही नहीं बीजेपी ने वाराणसी के रोहनिया सीट से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह का टिकट काट दिया है. उनकी जगह अपना दल के नेता को प्रत्याशी के तौर पर उतारा गया है. बनारस में कोई बीजेपी को बेहतर बता रहा है तो कोई विकास के नाम पर ढकोसला करने का आरोप लगा रहा है.

एक नजर मतदाताओं पर

जातीय समीकरण

पिंडरा विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर ओबीसी (कुर्मी ) निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यह सीट पटेल बाहुल्य माना जाता है. यहां ब्राह्मण का वोट निर्णायक होता है. वहीं अजगरा विधानसभा में अनुसूचित जाति ज्यादा तादाद में हैं. शिवपुर विधानसभा यादव बाहुल्य माना जाता है.  दलित, पटेल, राजभर, बुनकर और मुस्लिम भी यहां अच्छी तादाद में हैं.

रोहनिया विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर पटेल समुदाय के वोटर हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं. वाराणसी उत्तर विधानसभा सीट  पर वैश्य वोटरों प्रभावशाली स्थिति में हैं. वाराणसी दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर की संख्या ( 25 हजार ) सबसे ज्यादा है. मुस्लिम मतदाता लगभग 15 हजार है. पटेल राजपूत, वैश्य, चौरसिया, गुजराती और बंगाली के वोटर अच्छी तादाद में हैं. वाराणसी कैंट विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर कायस्थ समाज निर्णायक स्थिति में हैं. सेवापुरी विधानसभा सीट के जातिगत समीकरण के आधार पर पटेल मतदाता अधिक हैं.

वाराणसी की आठ विधानसभा सीटें भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीटें हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि काशी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है और पूर्वांचल का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है. बीजेपी यदि बनारस से 8 में से एक भी सीट हारती है तो निश्चित तौर पर यह भारतीय जनता पार्टी के लिए झटका होगा, क्योंकि प्रधानमंत्री के गढ़ में बीजेपी की एक भी सीट का जाना बीजेपी के बड़े नेताओं और खुद पीएम मोदी के जादू पर सवालिया निशान लगा सकता है.

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