UP Election 2022: यूपी चुनाव को लेकर ब्राह्मणों को लुभाने में क्यों जुटे हैं सारे राजनीतिक दल? यहां पढ़े पूरी खबर
उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में एक बार फिर से सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने में जुट गए है. प्रदेश में दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस, कई बार सरकार बना चुकी सपा- बसपा के अलावा यूपी में राजनीतिक जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी भी ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रही है.
UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में एक बार फिर से सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने में जुट गए है. प्रदेश में दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस, कई बार सरकार बना चुकी सपा-बसपा के अलावा यूपी में राजनीतिक जमीन तलाश रही आम आदमी पार्टी भी ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने की हर संभव कोशिश कर रही है. हालांकि आईएएनएस से बातचीत करते हुए उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक ने विरोधी दलों द्वारा चलाए जा रहे अभियान को जातिवादी राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि ये दल ब्राह्मणों को लुभाने के लिए किए जा रहे कार्यक्रमों को जातिवादी रंग दे रहे हैं जबकि भाजपा सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ बौद्धिक लोगों की बात कर रही है. यह भी पढ़े: UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में BSP प्रमुख मायावती के बाद ब्राह्मणों को लुभाने में जुटी एसपी और कांग्रेस
दरअसल, प्रदेश के सभी बड़े राजनीतिक दल राज्य की भाजपा सरकार को ब्राह्मण विरोधी बताते हुए अपने आप को इनका सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश में जोर-शोर से लगे हैं. मायावती ब्राह्मण मतदाताओं के समर्थन से 2007 का करिश्मा दोहराना चाहती है जब बसपा को अकेले अपने दम पर राज्य में पूर्ण बहुमत मिला था तो वहीं समाजवादी पार्टी इनके सहारे 2012 की तरह जीत हासिल करने की योजना पर काम कर रही है. राज्य में 4 दशक से भी लंबे समय तक इनके वोट की ताकत के बल पर राज करने वाली कांग्रेस एक बार फिर से इन्हे अपने पाले में ला कर सुनहरे दिनों को वापस लाना चाहती है. इन सबकी कोशिशों के बीच भाजपा के सामने भी ब्राह्मणों को अपने पाले में बनाए रखने की बड़ी चुनौती है.
चुनौती की चर्चा करने से पहले आपको राज्य में ब्राह्मण वोटरों का महत्व बताते हैं कि आखिर क्यों ये सभी राजनीतिक दल इनका समर्थन पाने को लालायित है। उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) और दलित मतदाताओं के बाद सबसे ज्यादा आबादी सवर्णों ( ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, बनिया और भूमिहार आदि ) की है। इसमें से सिर्फ ब्राह्मणों की बात की जाए तो यह माना जाता है कि प्रदेश में ब्राह्मणों की कुल आबादी 11 प्रतिशत के लगभग है। हालांकि कई बड़े नेता आपसी बातचीत में इसे 13 प्रतिशत के लगभग बताते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश , बुंदेलखंड, पूर्वांचल , बृज क्षेत्र और अवध क्षेत्र समेत शायद ही प्रदेश का कोई इलाका ऐसा हो जहां ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका में न हो। बल्कि वाराणसी, मथुरा, उन्नाव, झांसी , गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, चंदौली, इलाहाबाद और कानपुर में ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद 15 प्रतिशत से भी ज्यादा मानी जाती है.
यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सिर्फ यही वजह नहीं है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक चुनावी राजनीति में कई जातियों की भूमिका वोट देने से ज्यादा वोट दिलवाने की क्षमता की वजह से महत्वपूर्ण हो जाती है. इस मामले में यादव और कुर्मियों को मार्शल कौम माना जाता है जो अपने साथ समाज के अन्य तबकों को भी खींचकर लाते हैं. ठीक यही काम ब्राह्मण भी करते हैं लेकिन अलग अंदाज में। दरअसल, बौद्धिक व्यक्ति के रूप में ब्राह्मणों की इज्जत और प्रभाव आज भी गांव-देहात के समाज में काफी अच्छी है। चौक-चौराहों से लेकर मोहल्लें की चाय और पान की दुकान पर होने वाली चचार्ओं में ब्राह्मण सक्रिय भूमिका निभाता है। कई राजनीतिक जानकार यह मानते हैं कि इन जगहों की चुनावी जीत में बड़ी भूमिका होती है और यहां पर जनमत तैयार करने में ब्राह्मणों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होती है.
यही वजह है कि तमाम विरोधी दल भाजपा पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाते हुए अभियान चला रहे हैं और सम्मेलन कर रहे हैं। जवाब में भाजपा दिल्ली की केंद्र सरकार से लेकर राज्य की योगी सरकार में ब्राह्मण मंत्रियों की पूरी लिस्ट गिनाने लग जाती हैं क्योंकि सभी राजनीतिक दलों को ब्राह्मण मतदाताओं की चुंबकीय शक्ति या यूं कहे कि डिसाइडिंग शिफ्टिंग पावर का बखूबी अंदाजा है.