UP Election 2022: 33 साल से भगवा खेमे का अभेद्य किला है गोरखपुर सीट, सपा-बसपा की आज तक नहीं हुई बोहनी- जानें कितना कठिन है योगी आदित्यनाथ से मुकाबला

उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सदर विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो यह सीट भगवा खेमे का ऐसा अभेद्य किला है, जिसे पिछले लगातार 33 साल साल से कोई भेद नहीं पाया है. 1989 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस का सूरज डूबा तो अभी तक निकला ही नहीं. इस सीट पर सपा और बसपा की तो बोहनी तक नहीं हुई.

सीएम योगी आदित्यनाथ (Photo Credits: Facebook)

Uttar Pradesh Assembly Election 2022 Gorakhpur Sadar Seat: उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सदर विधानसभा सीट के इतिहास की बात करें तो यह सीट भगवा खेमे का ऐसा अभेद्य किला है, जिसे पिछले लगातार 33 साल साल से कोई भेद नहीं पाया है. 1989 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस का सूरज डूबा तो अभी तक निकला ही नहीं. इस सीट पर सपा और बसपा की तो बोहनी तक नहीं हुई. UP Election 2022: सपा-RLD-सुभासपा के बीच सीट बंटवारे को लेकर फंसा पेंच, एक सीट पर तो उतार दिए डबल उम्मीदवार

राजनीतिक पंडितों की माने तो 33 वर्षों से लेकर आज तक इस सीट की रणनीति और समीकरण गोरखनाथ मंदिर तय करता है. इन 33 वर्षों में कुल आठ चुनाव हुए जिनमें से सात बार भाजपा और एक बार हिन्दू महासभा (योगी आदित्यनाथ के समर्थन से) के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है. वर्ष 2002 में इस सीट से डॉ.राधा मोहन दास अग्रवाल अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के बैनर तले जीते थे लेकिन जीतने के बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे. तब से वह आज तक इस सीट पर काबिज हैं.

मुख्यमंत्री योगी गोरखपुर सदर सीट से ही 1998 से 2017 तक सांसद रहे हैं. वह सबसे पहले 1998 में यहां से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़े थे. उस चुनाव में उन्होंने बहुत ही कम अंतर से जीत दर्ज की थी लेकिन उसके बाद हर चुनाव में उनका जीत का अंतर बढ़ता गया. वे 1999, 2004, 2009 तथा 2014 में सांसद चुने गए.

चुनावी आकड़ों की माने तो इस विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था. तब कांग्रेस के इस्तफा हुसैन जीते थे. वह दोबारा 1957 में भी जीते. 1962 में कांग्रेस ने प्रत्याशी बदला. इस्तफा हुसैन की जगह नियामतुल्लाह अंसारी को टिकट दिया. उन्होंने भी जीत दर्ज की. इस तरह इस सीट पर कांग्रेस ने जीत की तिकड़ी बनाई. पर, चौका लगाने की आस धरी की धरी रह गई. इसके बाद से भगवा खेमे ने इसे अपना गढ़ बना लिया. 1967 में जनसंघ से उदय प्रताप दुबे, 1969 रामलाल भाई, 1974 और 77 में अवधेश कुमार श्रीवास्तव ने इस सीट से भगवा झंडा फहराया. 1980 और 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने इस सीट का कांग्रेस से प्रतिनिधित्व किया. वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे. इसके बाद कांग्रेस के हाथ से यह सीट फिसल गई. यहां भगवा रंग फिर छा गया.

भाजपा के शिवप्रताप शुक्ल ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की. 1989 से 1996 तक उन्होंने लगातार चार बार भाजपा की ओर से जीत दर्ज की. वह भी प्रदेश की दो सरकारों में मंत्री रहे. वर्ष 2002 से इस सीट पर डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल विधायक हैं. शुरूआत उन्होंने हिंदू महासभा से की थी. शिवप्रताप के खिलाफ उनको लड़ाने और जिताने वाले भाजपा के ही लोग थे. लिहाजा मूल रूप से वह भाजपा के ही थे और पहले चुनाव के बाद उन्होंने बाकी चुनाव भाजपा से ही लड़कर जीत दर्ज की. फिलहाल उनका टिकट कट गया है. सपा के मुखिया अखिलेश यादव उनको टिकट देने का खुला ऑफर दे चुके हैं.

उधर भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण भी यहां से चुनाव लड़ रहे जबकि किसी भी दूसरे की उम्मीदवारी से बेपरवाह भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष धर्मेंन्द्र सिंह उत्साह से लबरेज हैं. उनका कहना है यहाँ महाराज जी (पूर्वांचल में प्यार से योगी को लोग यही कहते हैं) नहीं, जनता चुनाव लड़ रही है. इसे वह अपना चुनाव मान चुकी है. महाराज की सिर्फ वोट देने आना है.

गोरखपुर की राजनीति में दशकों से नजर रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक जानकार आमोदकांत मिश्रा कहते हैं कि योगी के गोरखपुर से विधानसभा चुनाव लड़ाने के पीछे भाजपा की रणनीति गोरखपुर-बस्ती मंडल में 2017 का प्रदर्शन दोहराने की है. इन दोनों मंडलों में 41 सीटें हैं जिनमें से 35 पर 2017 में भाजपा ने जीत हासिल की थी. दो सीटें भाजपा के सहयोगी दलों को मिली थीं. उन्होंने बताया कि उत्तर भारत की मशहूर धार्मिक पीठों में शुमार और नाथ पंथ का हेडक्वार्टर मानी जाने वाली इस पीठ के मौजूदा पीठाधीश्वर योगी ही हैं. पीठ के पीठाधीश्वर का चुनाव लड़ना और पीठ के प्रति करोड़ों लोंगों की आस्था भी इस सीट की सुर्खियों की वजह है.

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