Priyanka Gandhi First Lok Sabha Speech: वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने संसद में अपना पहला भाषण दिया, जो केवल उनके लिए नहीं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के संदर्भ में भी एक ऐतिहासिक अवसर था. प्रियंका गांधी ने इस अवसर पर भारतीय संविधान की रक्षा और लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने की आवश्यकता पर जोर दिया. उनका भाषण संविधान, इसके महत्व, और सत्तापक्ष द्वारा इसकी कमजोर करने की कोशिशों पर केंद्रित था. प्रियंका गांधी ने इस भाषण में संविधान के प्रति अपने समर्पण और उसे बचाने की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया.
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत भारतीय परंपराओं और हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों की विशेषता से की. उन्होंने कहा, "हमारे देश की परंपरा संवाद और चर्चा की रही है. वाद-विवाद और संवाद की पुरानी संस्कृति है. यह परंपरा हमारे स्वतंत्रता संग्राम में भी उजागर हुई, जो अहिंसा और सत्य पर आधारित था. यह संघर्ष अनोखा था, क्योंकि इसमें हर वर्ग, हर समुदाय, और हर भारतीय की भागीदारी थी. हमारे स्वतंत्रता संग्राम की गूंज आज भी हमारे संविधान में सुनाई देती है."
सत्ता को झुकना पड़ेगा
प्रियंका ने आगे कहा कि संविधान हमारे देश की आवाज है, यह केवल एक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक साहस की आवाज है, जो हमारे स्वतंत्रता संग्राम से निकली थी. उन्होंने यह भी कहा कि संविधान ने भारतीय नागरिकों को न्याय का अधिकार दिया और उनके अधिकारों की आवाज उठाने की क्षमता प्रदान की. प्रियंका गांधी ने कहा, "इस संविधान ने हर भारतीय को यह पहचानने की शक्ति दी कि उसे न्याय मिलने का अधिकार है. उसे अपने अधिकारों की आवाज उठाने की क्षमता है, और जब वह आवाज उठाएगा, तो सत्ता को उसके सामने झुकना पड़ेगा."
संविधान सिर्फ कागज का टुकड़ा नहीं है
प्रियंका ने संविधान के निर्माण में योगदान देने वाले नेताओं का भी उल्लेख किया. उन्होंने बाबा आंबेडकर, मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरू और अन्य महान नेताओं का आभार व्यक्त करते हुए कहा, "यह संविधान केवल एक कागज का टुकड़ा नहीं है, बल्कि यह एक सुरक्षा कवच है जो न्याय, अभिव्यक्ति की आज़ादी और एकता को संरक्षित करता है. यह संविधान हमें यह विश्वास दिलाता है कि हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए हमें खुद संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह हमें सुरक्षा प्रदान करता है."
पैसों के बल पर सरकार गिराने की कोशिश
प्रियंका ने वर्तमान सरकार पर संविधान को कमजोर करने के प्रयासों का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि सत्तापक्ष ने संविधान के उद्देश्यों को कमजोर करने की कोशिश की है. उन्होंने कहा, "आपकी सरकार ने 10 सालों में संविधान को तोड़ने के कई प्रयास किए हैं, जैसे कि लेटरल एंट्री और निजिकरण के जरिए आरक्षण को कमजोर करना. यह संविधान का उल्लंघन है, और यदि लोकसभा चुनाव में ये परिणाम नहीं आए होते तो सरकार संविधान बदलने का प्रयास करती."
जातिगत जनगणना जरूरी
प्रियंका गांधी ने आगे जातिगत जनगणना पर भी टिप्पणी की, जो वर्तमान में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गया है. उन्होंने कहा, "जातिगत जनगणना को लेकर सत्तापक्ष ने पहले इसका विरोध किया था, लेकिन अब चुनाव के परिणामों के बाद इस मुद्दे पर बात हो रही है. जातिगत जनगणना से हम यह समझ सकेंगे कि हमारे समाज में किसकी स्थिति क्या है." प्रियंका ने विपक्ष की तरफ से इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए सत्तापक्ष के जवाब की आलोचना की और कहा, "जब विपक्ष ने जोर दिया था कि जातिगत जनगणना होनी चाहिए, तो सत्तापक्ष ने इसका मजाक उड़ाया और कहा कि वे भैंस चुरा लेंगे, मंगलसूत्र चुरा लेंगे. यह उनकी गंभीरता का प्रमाण है."
गरीबों की आवाज दबाई जा रही
प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान ने आर्थिक न्याय की नींव रखी. उन्होंने किसानों, गरीबों और मजदूरों के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा, "हमारे संविधान ने उन लोगों के लिए काम किया जिनकी आवाज़ें समाज में दबाई जाती थीं. यह संविधान किसानों और गरीबों के लिए था, जिन्होंने भूमि सुधारों के जरिए आर्थिक न्याय प्राप्त किया. यह संविधान उन पीएसयू (पब्लिक सेक्टर यूनिट्स) का भी संरक्षण करता था, जिन्हें अब धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है."
महंगाई और बेरोजगारी का संकट
प्रियंका ने यह भी कहा कि पहले संसद में जनता की उम्मीदें थीं कि सरकार महंगाई और बेरोजगारी पर चर्चा करेगी, लेकिन अब वह उम्मीदें पूरी नहीं हो रही हैं. उन्होंने कहा, "आज, सरकार कृषि कानूनों को उद्योगपतियों के हित में बना रही है, और किसान और आदिवासी भाई-बहन इस बदलाव को लेकर चिंतित हैं." उन्होंने उदाहरण के तौर पर हिमाचल प्रदेश के सेब किसानों और अन्य किसानों की मुश्किलें बताई, जो सरकार की नीतियों से प्रभावित हो रहे हैं.
अडानी समूह पर हमला
प्रियंका गांधी ने अडानी समूह की बढ़ती ताकत पर भी सवाल उठाया और कहा कि सरकार केवल एक व्यक्ति को फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है. "अडानी को सारे कोल्ड स्टोरेज दिए गए हैं, जबकि देश का आम नागरिक परेशान है. यह लोकतंत्र का उल्लंघन है. जब सब कुछ एक ही व्यक्ति के पास जा रहा है, तो यह देश की जनता के लिए एक चिंता का विषय है," उन्होंने कहा.
सिर्फ सत्ता के लिए काम करती है भाजपा
प्रियंका ने सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए, जिनमें विपक्षी सरकारों को गिराने की कोशिश की गई थी. उन्होंने उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र, गोवा और हिमाचल प्रदेश के मामलों का उल्लेख किया, जहां सत्ता परिवर्तन हुआ था. उन्होंने कहा, "यहां वाशिंग मशीन की तरह सरकारें बदलती हैं, जो जनता से हटकर सिर्फ सत्ता के लिए काम करती हैं."
पीएम मोदी के माथे पर कोई शिकन तक नहीं
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वे संविधान को माथे से लगाते हैं, लेकिन जब मणिपुर और संभल में न्याय की गुहार उठती है, तो उनके माथे पर कोई शिकन तक नहीं आती. "प्रधानमंत्री को समझना होगा कि भारत का संविधान संघ का विधान नहीं है, बल्कि यह हमें एकता और प्रेम का संदेश देता है. यह संविधान हमें एकजुट रखता है, और हमें अपनी विविधताओं के बावजूद एक राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाता है."
डर का माहौल
प्रियंका ने यह भी कहा कि सत्तापक्ष की विभाजनकारी नीतियों का असर समाज पर पड़ रहा है, और इससे देश में तनाव और असहमति की स्थिति पैदा हो रही है. "संविधान ने हमें एकता और प्रेम की भावना दी, लेकिन अब यह नीतियां समाज में विभाजन पैदा कर रही हैं. आज, डर का माहौल बन गया है. विपक्षी नेताओं को जेल में डाला जाता है, और उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश की जाती है."
लोकतंत्र साहस और संघर्ष से बना है
प्रियंका गांधी ने अंत में कहा कि भारत का लोकतंत्र साहस और संघर्ष से बना है, न कि भय से. "हमारे संविधान ने हमें साहस दिया है, और यह देश केवल डर से नहीं चलता. जब भी किसी ने डर को पार किया है, तब उसकी ताकत और आत्मविश्वास ने उसे विजय दिलाई है." उन्होंने यह भी कहा कि यह देश किसानों, मजदूरों और महिलाओं के संघर्ष से बना है, और संविधान ने इन सब को समान अधिकार और सम्मान दिया.
प्रियंका गांधी के इस भाषण ने केवल उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को स्पष्ट नहीं किया, बल्कि यह पूरे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की भी एक अपील थी. उनका यह भाषण संसद में केवल उनके पहले कदम को नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ें और संविधान के प्रति उनके समर्पण को भी दर्शाता है. यह उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत का एक अहम मोड़ था, जिसमें उन्होंने न केवल अपने विचार व्यक्त किए, बल्कि संविधान की सुरक्षा के लिए एक दृढ़ संकल्प की भी घोषणा की.