मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महायुति (BJP-शिवसेना-एनसीपी अजित पवार) में अंदरूनी बगावत खुलकर सामने आ गई है. मुंबई एनसीपी के अध्यक्ष समीर भुजबल, जो छगन भुजबल के भतीजे हैं, ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और नंदगांव विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दरअसल समीर भुजबल नंदगांव से चुनाव लड़ने के इच्छुक थे और उन्होंने एनसीपी से टिकट की मांग की थी. लेकिन सीट शेयरिंग समझौते के तहत यह सीट शिवसेना (शिंदे गुट) को दे दी गई और शिंदे ने वहां से मौजूदा विधायक सुहास कांडे को उम्मीदवार घोषित कर दिया.
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एनसीपी कार्यकर्ता समीर भुजबल को इस सीट से चुनाव लड़ते देखना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उनकी मांगों को नज़रअंदाज़ किया. इसके बाद, समीर भुजबल ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और एनसीपी मुंबई अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.
समीर ने अपने पत्र में लिखा, "नंदगांव में नागरिकों और कार्यकर्ताओं की बढ़ती मांग को देखते हुए मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है. नंदगांव की स्थिति बेहद गंभीर है और पिछले पांच वर्षों में यहां के नागरिक और वातावरण प्रदूषित हो गए हैं. इसीलिए मैंने अपने पद से इस्तीफा देने का फैसला किया."
अंधेरी ईस्ट सीट पर भी महायुति में खींचतान
मुंबई की अंधेरी ईस्ट सीट पर भी महायुति में तनाव दिख रहा है. यहां शिवसेना (शिंदे) और बीजेपी के बीच खींचतान चल रही है. शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता चाहते हैं कि पूर्व एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा की पत्नी को इस सीट से चुनाव लड़ने का मौका दिया जाए. लेकिन बीजेपी का कहना है कि प्रदीप शर्मा एंटीलिया केस और मनसुख हिरन मर्डर केस में आरोपी हैं, इसलिए उनकी पत्नी को उम्मीदवार नहीं बनाना चाहिए. बीजेपी इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारना चाहती है.
चुनावी समीकरण और महायुति की चुनौती
महाराष्ट्र में आगामी चुनाव 20 नवंबर को होने वाले हैं, और वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी. फिलहाल राज्य में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार है, जिसमें शिवसेना (शिंदे), एनसीपी (अजित पवार गुट), और बीजेपी शामिल हैं. महायुति के सामने मुख्य चुनौती महाविकास अघाड़ी से है, जिसमें शिवसेना (UBT), कांग्रेस, और एनसीपी (शरद पवार गुट) शामिल हैं.
महायुति के अंदरूनी मतभेद और सीटों के बंटवारे को लेकर बढ़ती खींचतान, विशेष रूप से नंदगांव और अंधेरी ईस्ट जैसी सीटों पर, चुनाव के नतीजों पर बड़ा असर डाल सकती है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये बगावत और विवाद महायुति की जीत की राह में रोड़ा बनेंगे या नहीं.