गुजरात के छोटे से कस्बे बड़नगर में कभी चाय की टपरी पर.. कभी रेलवे प्लेटफार्मों पर... तो कभी सायकिल पर घूम-घूम कर चाय.. चाय.. की आवाज लगाकर चाय बेचने वाला वह किशोर शिक्षित तो होना चाहता था, मगर पढ़ाई छोड़ वह शेष सारे कामों में मन लगा लेता था. वही किशोर एक दिन सारे धुरंधरों को पीछे छोड़कर देश के सबसे पॉवरफुल पद पर काबिज हो जाता है. एक सामान्य युवक नरेंद्र से भारत का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बन जाता है. आज देश इस महान शख्सियत की 71वीं सालगिरह मना रहा है. आखिर चाय की टपरी वाला देश के सबसे ऊंची कुर्सी पर कैसे विराजमान हो सकता है? आइये जानें प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी के जीवन की तिलस्मी कथा!
जिद, जुनून और जज्बा हो तो इंसान अपने हाथ में खिंची भाग्य की रेखा को भी बदल सकता है. रेलवे प्लेटफार्मों पर भाग भाग कर यात्रियों को चाय बेचने वाला अपने इसी नेचर से एक दिन विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का सर्वोच्च पद हासिल करता है. वाकई नरेंद्र मोदी ने अपने हाथों पर भाग्य की रेखा खुद लिखकर दिखा दिया कि कोशिश करने से सब कुछ हासिल हो सकता है. वडनगर के रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाले दामोदार दास मोदी की छह संतानें थीं. इनमें तीसरे नंबर के थे नरेंद्र दामोदर मोदी. जिनका जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर मोदी परिवार का मुश्किल से गुजारा होता था. सारे भाई पिता की मदद कर व्यवसाय बढाने की कोशिश करते थे, साथ ही स्कूल भी जाते थे. जहां तक नरेंद्र की बात है तो उसे शिक्षा हासिल करने का तो शौक था मगर खेल-कूद, एक्टिंग, डिबेट इत्यादि में जहां वह अव्ववल रहता, पढ़ाई में मुश्किल से मन लगा पाता था. भागवताचार्य नारायणा स्कूल की छुट्टी की घंटी बजते ही नरेंद्र भागकर टपरी पहुंच जाता था. ताकि जल्दी पहुंचकर, ज्यादा ग्राहकी पकड़ सके, और पिता की आय में वृद्धि हो.
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पैसों के कारण सैनिक स्कूल में दाखिला ना पाने का दुःख!
आठ सदस्यों को यह मोदी परिवार एक छोटे से घर में गुजर करता था. व्यवसाय के लिए इधर-उधर हाथ मारने के साथ नरेंद्र जीवन में कुछ अलग करना चाहते थे. कभी व्यवसायी बनने का ख्वाब देखते तो कभी भारतीय सेना में शामिल होकर देश के दुश्मन के छक्के छुड़ाने के सपने बुनते. वे जामनगर के करीब स्थित सैनिक स्कूल में शिक्षा हासिल करना चाहते थे, ताकि सेना में जाने के रास्ता खुल जाये. लेकिन जब सैनिक स्कूल की फीस सुनी तो सारा जोश पानी-पानी हो गया. हांलाकि उन्हें दुख था कि महज पैसों के कारण वे सैनिक स्कूल में दाखिला नहीं ले सके.
संघ से जुड़ाव!
नरेंद्र की रगों में बचपन से राष्ट्रवाद का रक्त दौड़ रहा था. 1958 में यानी मात्र 8 साल की उम्र में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा बनने के लिए बडनगर के संघ कार्यालय पहुंच गये थे. संघ के प्रति नरेन्द्र की निष्ठा देखते हुए उन्हें संघ के दफ्तर में रहने और शाखा ज्वाइन करने की अनुमति मिल गई. शुरू में नरेन्द्र संघ के दफ्तर में झाड़ू-पोछा तक करते थे. 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए. इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे. 1980 के दशक में वे गुजरात बीजेपी ईकाई में शामिल हुए.
गुजरात का सीएम बनना!
1988-89 में बीजेपी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए. 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में नरेन्द्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई. इसके बाद वे पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए.1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया. 2001 में मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गई. लेकिन सत्ता संभालने के 5 माह बाद ही गोधरा कांड हुआ, जिसमें कई हिंदू कारसेवक मारे गए. फरवरी 2002 में गुजरात में मुसलमानों के खिलाफ़ दंगों में सैकड़ों जानें गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात का दौरा किया. उन्होंनें मोदी को 'राजधर्म निभाने' की सलाह दी. हालात इतना बिगड़ा कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की बात होने लगी. लेकिन तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी को मुख्यमंत्री बने रहने का अभय प्रदान किया. हालांकि मोदी के खिलाफ दंगों से संबंधित कोई आरोप किसी कोर्ट में सिद्ध नहीं हुए. दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में पीएम मोदी ने जीत दर्ज की थी. 2007 के बाद 2012 के चुनाव.
2009 से भाग्य परिवर्तन!
2009 का लोकसभा चुनाव एल.के. अडवाणी के नेतृत्व में लड़ा गया. यूपीए से हारने के बाद आडवाणी का प्रभाव कम हुआ तो विकल्प की कतार में नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली खड़े हो गये. गुजरात में दो विधानसभा चुनाव जीतने से मोदी का कद काफी बढ़ गया था. 2012 में लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद मार्च 2013 में मोदी को बीजेपी संसदीय बोर्ड से जोडा गया. उन्हें सेंट्रल इलेक्शन कैंपेन कमिटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया. पार्टी का संकेत साफ था कि अगला लोकसभा चुनाव मोदी के दम पर लड़ा जाएगा और यही हुआ.
शुरू हुआ मोदी युग!
2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बी.जे.पी. ने चुनाव लड़ा. नरेंद्र मोदी ने अपने दम पर बीजेपी को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाई और पार्टी 282 सीटों पर काबिज हुई. मोदी का मैजिक ऐसा था कि वाराणसी और वडोदरा दोनों क्षेत्रों से मोदी विजयी हुए. 26 मई 2014 को मोदी ने भारत के 14वें प्रधानमंत्री की शपथ ली.
जारी रहेगी मोदी मैजिक 2024 में भी?
अपने पांच साल के कार्य काल में पीएम मोदी ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए. एक ओर उनकी लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ रही थी, वहीं विपक्ष लगातार कमजोर होता जा रहा था. बीजेपी और कमल की पहचान पूरी तरह से पीएम मोदी से हो गई. पांच साल बाद 2019 के लोकसभा के लिए एक बार फिर मोदी के नाम पर पार्टी ने जुआ लड़ा. मोदी ने एक बार फिर अपने नाम का मैजिक साबित कर दिखाया. 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले 303 सीटों पर जीत दर्ज की.
आज पीएम मोदी की लोकप्रियता का आलम यह है कि उनकी तुलना देश के महान प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी बाजपेयी के साथ की जाती है. अभी भी देश में मोदी मैजिक बरकरार है, क्योंकि आज भी 2024 के लोकसभा चुनाव जो सर्वे रिपोर्ट आ रही है, उसके अनुसार एक बार फिर बीजेपी को मोदी भारत की सत्ता दिला सकते हैं. खैर यह तो आकलन ही है, सच तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन मोदी जी को उनकी 71वीं सालगिरह की बधाई तो बनती है.