उमर अब्दुल्ला पर PSA के तहत की गई नजरबंदी को उनकी बहन ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी के खिलाफ उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की. न्यायमूर्ति एन वी रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सारा अब्दुल्ला पायलट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस याचिका का उल्लेख किया और इसे शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने जन सुरक्षा कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी को चुनौती देते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है और इस पर इसी सप्ताह सुनवाई करने का अनुरोध किया.
नयी दिल्ली. जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी के खिलाफ उनकी बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की. न्यायमूर्ति एन वी रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सारा अब्दुल्ला पायलट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस याचिका का उल्लेख किया और इसे शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने जन सुरक्षा कानून के तहत उमर अब्दुल्ला की नजरबंदी को चुनौती देते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है और इस पर इसी सप्ताह सुनवाई करने का अनुरोध किया.
पीठ इस याचिका को शीघ्र सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गई है. सारा अब्दुल्ला पायलट ने अपनी याचिका में कहा है कि ऐसा व्यक्ति जो पहले ही छह महीने से नजरबंद हो, उसे नजरबंद करने के लिए कोई नयी सामग्री नहीं हो सकती. याचिका में नजरबंदी के आदेश को गैरकानूनी बताते हुए कहा गया है कि इसमें बताई गईं वजहों के लिए पर्याप्त सामग्री और ऐसे विवरण का अभाव है जो इस तरह के आदेश के लिए जरूरी है. इसमें कहा गया है, ‘‘यह बिरला मामला है कि वे लोग जिन्होंने सांसद, मुख्यमंत्री और केन्द्र में मंत्री के रूप में देश की सेवा की और राष्ट्र की आकांक्षाओं के साथ खड़े रहे, उन्हें अब राज्य के लिए खतरा माना जा रहा है.’’ यह भी पढ़े-जम्मू-कश्मीर: उमर अब्दुल्ला-महबूबा मुफ्ती के बाद पूर्व मंत्री नईम अख्तर पर भी लगा पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगा
याचिका में कहा गया है कि उमर अब्दुल्ला को चार-पांच अगस्त, 2019 की रात घर में ही नजरबंद कर दिया गया था. बाद में पता चला कि इस गिरफ्तारी को न्यायोचित ठहराने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 107 लागू की गई है. इसके अनुसार, ‘‘इसलिए यह नितांत महत्वपूर्ण और जरूरी है कि यह न्यायालय व्यक्ति के जीने और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा ही नहीं करे बल्कि संविधान के भाग के अनुरूप अनुच्छेद 21 के भाव की भी रक्षा करे क्योंकि जिसका उल्लंघन एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अभिशाप है.’’याचिका में उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून के तहत नजरबंद करने संबंधी पांच फरवरी का आदेश निरस्त करने का अनुरोध किया गया है.
उमर अब्दुल्ला को इस कानून के तहत नजरबंदी के कारणों के बारे में बताया गया है कि राज्य के पुनर्गठन की पूर्व संध्या पर उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों और अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने के फैसले के खिलाफ आम जनता को भड़काने का प्रयास किया. इस आदेश में एक अन्य वजह में इस फैसले के खिलाफ जनता को उकसाने के लिए सोशल नेटवर्किंग पर उनकी टिप्पणियों को भी शामिल किया गया है.
उमर अब्दुल्ला 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे. उन्हें इस नजरबंदी के संबंध में तीन पेज का आदेश दिया गया है जिसमें उनके दिए गए कथित बयान हैं जिन्हें विघटनकारी स्वरूप का माना गया है. इस आदेश में यह भी कहा गया है कि अनुच्छेद 370 और 35-ए के फैसले के खिलाफ सोशल नेटवर्गिंग साइट्स पर उनकी टिप्पणियों में सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने की क्षमता है.
राज्य में पांच अगस्त, 2019 से ही संचार संपर्क पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बाद में इसमें ढील दी गयी. कुछ स्थानों पर अब इंटरनेट सेवा काम कर रही है। मोबाइल इंटरनेट सुविधा भी अब शुरू हो गई है, लेकिन इसकी गति 2जी की है और शर्त यह है कि सोशल मीडिया साइट्स के लिए इसका इस्तेमाल नहीं होगा.