कितनी अहम है पनामा नहर, जिसे ट्रंप फिर से अमेरिका के कंट्रोल में लेना चाहते हैं

पनामा नहर का निर्माण अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में किया था और कई दशकों तक उसपर अपना नियंत्रण रखा.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

पनामा नहर का निर्माण अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में किया था और कई दशकों तक उसपर अपना नियंत्रण रखा. अब पनामा सरकार अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाली इस नहर का संचालन करती है. जानिए क्यों है ये इतनी अहम.अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति ट्रंप ने कई बार धमकी दी कि वह फिर से पनामा नहर को अपने नियंत्रण में ले लेंगे. वहीं दूसरी ओर, पनामा सरकार ने साफ कहा कि वह नहर पर अपना अधिकार किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगी. इसलिए, दुनिया की निगाहें एक बार फिर अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के बीच इस रणनीतिक नौसैनिक मार्ग पर टिकी है.

ट्रंप यह याद दिलाने के लिए उत्सुक हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक सदी पहले इस नहर को बनाया था और मानव जीवन की बड़ी कीमत पर वैश्विक नौवहन में क्रांति लाई थी. 1914 से पहले, अटलांटिक से प्रशांत महासागर में जाने वाले जहाजों को दक्षिण अमेरिका के चारों ओर जोखिम भरी, महीनों लंबी यात्रा करनी पड़ती थी. आधुनिक जहाजों को भी यह यात्रा पूरी करने में लगभग दो सप्ताह लगते हैं, जबकि नहर को पार करने में सिर्फ 8 से 10 घंटे लगते हैं.

जब अमेरिका ने नहर बनवाई थी

ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि 1904 और 1914 के बीच पनामा नहर के निर्माण के दौरान 35,000 या 38,000 ‘अमेरिकी लोगों' की मृत्यु हुई थी. हालांकि, यह बात कुछ हद तक सही है कि नहर के निर्माण के दौरान हजारों लोगों की जान गई थी. इन मौतों की वजह मलेरिया, पीले बुखार, दुर्घटनाएं और अन्य कारण थे, लेकिन ट्रंप ने जो आंकड़ा दिया है उसके पीछे की सटीक गणना स्पष्ट नहीं है. यानी, यह साफ नहीं है कि ट्रंप ने यह आंकड़ा कैसे निकाला.

अमेरिका द्वारा पनामा नहर के निर्माण के दौरान आधिकारिक तौर पर लगभग 5,600 लोगों की मृत्यु हुई थी. हालांकि, वास्तविक संख्या इससे अधिक भी हो सकती है, लेकिन इस निर्माण कार्य में सबसे ज्यादा मजदूर बारबाडोस से आए थे. ‘हेल्स गॉर्ज: द बैटल टू बिल्ड द पनामा कैनाल' के लेखक मैथ्यू पार्कर के अनुसार, निर्माण के दौरान मरने वाले अमेरिकियों की संख्या संभवतः करीब 300 थी.

पनामा नहर की उम्र सौ साल और बढ़ाने के लिए मरम्मत

यह भी हो सकता है कि ट्रंप अमेरिका द्वारा जलमार्ग बनाने के प्रयास के दौरान हुए नुकसान को फ्रांस के पहले के असफल प्रयास के साथ जोड़ रहे हों. 1880 के दशक में फ्रांस की परियोजना में 20,000 से 25,000 श्रमिकों की जान चली गई थी, लेकिन उनमें से लगभग कोई भी अमेरिकी नहीं था.

पनामा को नहर पर नियंत्रण कैसे मिला

नहर के खुलने के बाद भी अमेरिका ने कई दशकों तक इसका संचालन जारी रखा. हालांकि, 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने धीरे-धीरे इस क्षेत्र का नियंत्रण पनामा सरकार को सौंपने पर सहमति जताई. संधि में यह तय किया गया था कि जलमार्ग तटस्थ रहेगा और सभी देशों के जहाजों के लिए खुला रहेगा. अमेरिका ने इसे किसी भी खतरे से बचाने का अधिकार भी बरकरार रखा.

वर्ष 1999 में अमेरिका ने पनामा नहर पर अपना नियंत्रण पूरी तरह छोड़ दिया. इसके बाद से नहर का संचालन पनामा की सरकार कर रही है.

अब, ट्रंप ‘चीन के अद्भुत सैनिकों' पर नहर को अवैध तरीके से चलाने का आरोप लगा रहे हैं. वहीं, पनामा के राष्ट्रपति होजे राउल मुलिनो ने इन आरोपों को बकवास बताया. जनवरी की शुरुआत में मुलिनो ने कहा, "नहर में कोई चीनी सैनिक नहीं हैं.”

इस क्षेत्र में चीन की सैन्य उपस्थिति का कोई संकेत नहीं है, लेकिन कुछ अमेरिकी पर्यवेक्षकों ने दो बंदरगाहों के बारे में चिंता व्यक्त की है. नहर के प्रवेश द्वार पर स्थित इन बंदरगाहों का प्रबंधन लंबे समय से हांगकांग स्थित सीके हचिसन होल्डिंग्स की एक सहायक कंपनी कर रही है. इन पर्यवेक्षकों की चिंता है कि इन बंदरगाहों के माध्यम से अहम डेटा लीक हो सकता है. इसके अलावा, पनामा और चीन मिलकर नहर के ऊपर एक नए पुल का निर्माण कर रहे हैं. इस पुल के निर्माण के लिए चीन पनामा को पैसा दे रहा है. इससे अमेरिका की चिंताएं बढ़ गई हैं.

पनामा नहर क्यों महत्वपूर्ण है?

नहर के प्रबंधकों के मुताबिक, औसतन एक वर्ष में 13,000 से 14,000 जहाज 82 किलोमीटर (52 मील) लंबे इस जलमार्ग से गुजरते हैं. यहां बनाए गए सिस्टम की मदद से हर दिन दर्जनों जहाजों को एक छोर से दूसरे छोर ले जाया जाता है. जहाजों को ऊपर उठाने और फिर समुद्र तल पर लाने के लिए, इस सिस्टम में गेट, लॉक और कृत्रिम झील से भरे हुए जलाशयों का उपयोग किया जाता है. इस दौरान जहाजों को 26 मीटर (85 फीट) तक ऊपर उठाया जाता है. जहाजों से उनके आकार के आधार पर क्रॉसिंग के लिए शुल्क लिया जाता है.

जलवायु परिवर्तन से पनामा नहर को हो सकता है नुकसान

अमेरिका, चीन और जापान पनामा नहर के मुख्य ग्राहक हैं. इस नहर से गुजरने वाले जहाजों का लगभग 72 फीसदी माल या तो अमेरिकी बंदरगाहों से आता है या अमेरिकी बंदरगाहों की ओर जा रहा होता है.

हाल ही में, पानी की कमी की वजह से नहर प्राधिकरण को क्रॉसिंग की संख्या कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. साथ ही, शुल्क को भी बढ़ाया गया. नहर के प्रबंधक ने वित्तीय वर्ष 2024 में 3.45 अरब डॉलर का शुद्ध लाभ कमाया है.

नहर के यातायात में अमेरिकी व्यापार का बहुत बड़ा योगदान होने के कारण, इसके व्यवसाय को भी बढ़ी हुई लागतों का खामियाजा भुगतना पड़ा. दिसंबर में, ट्रंप ने पनामा पर ‘बेतुका' और ‘अत्यधिक' फीस वसूलने का आरोप लगाया और इसे ‘धोखाधड़ी' करार दिया. ट्रंप ने कहा, "हमें पनामा नहर के जरिए लूटा जा रहा है. यह नहर मूर्खतापूर्वक सौंप दी गई थी और अब वे हमसे अत्यधिक शुल्क वसूल रहे हैं.”

क्या अमेरिका नहर को वापस ले सकता है?

कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित 1977 की संधि की शर्तों में स्पष्ट किया गया है कि पनामा को तटस्थता बनाए रखनी है, जिसका मतलब है कि उसकी सरकार अमेरिकी माल ले जाने वाले जहाजों के लिए कम शुल्क नहीं ले सकती. हालांकि, यह संभव है कि ट्रंप प्रशासन के दबाव के कारण सभी के लिए शुल्क कम किया जा सकता है या अगले संकट के दौरान नहर प्राधिकरण को अधिक शुल्क लेने से रोका जा सकता है.

एक और संभावित विकल्प यह है कि अमेरिका पनामा पर आक्रमण करके नहर पर सैन्य नियंत्रण कर ले. अमेरिका ने 1989 के अंत में ऐसा किया था. उस समय अमेरिकी सैनिकों को सैन्य तानाशाह और पूर्व सीआईए एजेंट मैनुअल नोरिएगा को सत्ता से हटाने के लिए पनामा में तैनात किया गया था. हालांकि, इस बात की बेहद कम संभावना है कि ट्रंप सरकार ऐसा करेगी.

अमेरिकी आक्रमण के बाद, पनामा की अमेरिका समर्थित सरकार ने वहां की सेना को समाप्त कर दिया. करीब 45 लाख की आबादी वाला देश पनामा अब एक छोटा अर्धसैनिक बल रखता है. इन तमाम बातों के बीच, ट्रंप ने विवाद को सुलझाने में सेना के इस्तेमाल से इनकार नहीं किया है.

Share Now

\