पहले कर्नाटक अब मध्य प्रदेश, कांग्रेस के हाथ से जा रहे है बड़े राज्य, नेतृत्व ने कड़े कदम नहीं उठाए तो और राज्यों में भी हो सकता ऐसा
मध्य प्रदेश में सियासी लड़ाई पर अब विराम लगता नजर आ रहा है. क्योंकि सूबे की कमलनाथ सरकार को बीजेपी ने पटखनी दे ही दिया. फ्लोर टेस्ट से पहले कमलनाथ को अपना इस्तीफा देना पड़ा है. कांग्रेस की सरकार मध्य प्रदेश में 15 साल बाद बनी तो जरुर लेकिन वो 15 महीने भी पूरी न कर पाई. कांग्रेस के भीतर कलह उस वक्त से शुरू हुआ जब ज्योतिरादित्य सिंधियां ने कांग्रेस के खिलाफ बगावती बिगुल फूंक दिया. ज्योतिरादित्य सिंधियां का बीजेपी में जाना इस बात की तरफ संकेत करता है कि पार्टी के भीतर जो कलह है उसने सूबे की सरकार तक को गिरा दिया.
मध्य प्रदेश में सियासी लड़ाई पर अब विराम लगता नजर आ रहा है. क्योंकि सूबे की कमलनाथ सरकार को बीजेपी ने पटखनी दे दी है. फ्लोर टेस्ट से पहले कमलनाथ को अपना इस्तीफा देना पड़ा है. कांग्रेस की सरकार मध्य प्रदेश में 15 साल बाद बनी तो जरुर लेकिन वो 15 महीने भी पूरी नहीं कर पाई. कांग्रेस के भीतर कलह उस वक्त से शुरू हुई जब ज्योतिरादित्य सिंधियां ने कांग्रेस के खिलाफ बगावती बिगुल फूंक दिया. ज्योतिरादित्य सिंधियां का बीजेपी में जाना इस बात की तरफ संकेत करता है कि पार्टी के भीतर जो कलह है उसने सूबे की सरकार तक को गिरा दिया.
रिपोर्ट के मुताबिक एमपी में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ अपने आगे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आने नहीं दे रहे थे. ऐसे में सिंधिया को एक नए मंच की तलाश करनी पड़ी. फिर क्या जैसे ही उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहा तो उनके साथ सभी समर्थकों ने पार्टी से नाता तोड़ लिया. कांग्रेस के 20 विधायक बागी हो गए. इस दरम्यान कशमक में फंसी कलनाथ सरकार ने कई दांव-पेंच लगाया लेकिन कामयाबी बीजेपी के पाले में गई. यह भी पढ़े-मध्य प्रदेश: मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिया इस्तीफा, बीजेपी पर लगाया लोकतंत्र की हत्या का आरोप
कांग्रेस में कलह सिर्फ एक राज्य में नहीं है. कांग्रेस की सरकार जैसे राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ में भी नेताओं के बीच आपसी मनमुटाव है. बात अगर राजस्थान की करें तो जगजाहिर है कि यहां पर सीएम अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट में कोल्ड वॉर जारी. नाराजगी की वजह भी साफ है कि जमीनी स्तर के नेता के तौर पर पहचान बनाने वाले सचिन पायलट का सपना था कि सूबे का सीएम उन्हें बनाया जाए.
लेकिन अशोक गहलोत का तजुर्बा और दिल्ली में मजबूत पकड़ का उन्हें फायदा मिला. दोनों नेताओं में ही नहीं उनके समर्थकों में अनबन की खबरें आती रहती है. सचिन पायलट भी कई बार अपनी सरकार के खिलाफ बोलकर अपनी नाराजगी को जाहिर कर देते हैं.
अगर पंजाब की बात करें तो पंजाब कांग्रेस के कई विधायक पहले से ही अपनी सरकार और कैप्टन अमरिंदर सिंह से बेहद नाराज चल रहे हैं. लेकिन इसमें नवजोत सिंह सिद्धू का नाम सबसे आगे आता है. सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह में भी कलह है और उसे सभी जानते हैं. सिद्धू को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पॉवर मिनिस्ट्री का जिम्मा सौंपा तो उन्होंने स्वीकार नहीं किया. नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी भी सीएम के खिलाफ अक्सर बयान देती रहती है.
कुछ महीने पहले अटकलों का बाजार गर्म था कि सिद्धू आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं. लेकिन उसी बीच में उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी से जाकर दिल्ली मे मुलाकात की. बीजेपी छोड़ने के बाद प्रदेश की सियासत में अपना वर्चस्व स्थापित करने की महत्वाकांक्षा थी. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के पीच टिक नहीं पाए और क्लीन बोल्ड हो गए.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस में जीत मिलने के बाद सीएम की रेस में टीएस सिंहदेव का भी नाम दावेदार के रूप में उछलता रहा लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. क्योंकि आलाकमान ने भूपेश बघेल के नाम पर मुहर लगा दी. इस दरम्यान कई बार दोनों नेताओं के अंदरूनी कलह बाते सामने आती रही है. लेकिन दोनों नेताओं ने कभी एक दूसरे के आमने-सामने खुलकर नहीं बोला है. वहीं टीएस सिंहदेव ने पहले भी कहा है कि वे कभी बीजेपी नहीं ज्वाइन करेंगे.
महारष्ट्र में भले ही तीन पहियों पर महा विकास अघाड़ी की सरकार बनी हो. लेकिन यहां पर भी कांग्रेस के नेताओं के बीच नाराजगी जगजाहिर है. मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय निरुपम ने तो अपनी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ बगावत कर चुके हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मुरली देवरा के बेटे मिलिंद देवरा भी अपनी पार्टी से नाराज हैं. इस बात की जानकारी राहुल गांधी तक को दी जा चुकी है लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं निकला है. दोनों नेता अपने खेमे में बैठकर अच्छे दिन इंतजार कर रहे हैं.
कांग्रेस अगर पार्टी के भीतर फैले अंदुरनी कलह को शांत कर देती है तो शायद फिर मध्य प्रदेश जैसा हाल नहीं होगा. फिर ज्योतिरादित्य सिंधियां के जैसा कांग्रेस का कद्दावर नेता अपनी पार्टी को नहीं छोड़ेगा. लेकिन मसले का हल नहीं निकला तो तय है कि आने वाले समय में इसी तरह का दिन फिर कांग्रेस को देखना पड़ सकता है.