
मुजफ्फरपुर (बिहार): कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की एक अदालत में शिकायत दर्ज की गई है. यह शिकायत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर उनकी 'पुअर थिंग' (बेचारी) टिप्पणी को लेकर की गई है.
मुजफ्फरपुर के वकील सुधीर ओझा ने शनिवार को यह शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. ओझा का आरोप है कि सोनिया गांधी ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान किया है. इस मामले में उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सह-आरोपी बनाया है और उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की मांग की है.
सुधीर ओझा का बयान
सुधीर ओझा ने मीडिया से बातचीत में कहा, "सोनिया गांधी ने 'पुअर थिंग' टिप्पणी करके राष्ट्रपति मुर्मू का अपमान किया है. यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद के प्रति अनादर है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी इस मामले में सह-आरोपी हैं. भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए." मुजफ्फरपुर की सीजेएम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 10 फरवरी को तय की है.
विवाद की पृष्ठभूमि
बजट सत्र से पहले संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति के भाषण के बाद सोनिया गांधी से संसद भवन के बाहर पत्रकारों ने राष्ट्रपति मुर्मू के लंबे भाषण के बारे में पूछा. इस पर सोनिया गांधी ने कहा, "राष्ट्रपति अंत तक बहुत थक गई थीं... वे बोलने में भी मुश्किल से सक्षम थीं, पुअर थिंग (बेचारी)."
इसी दौरान राहुल गांधी ने भाषण को 'बोरिंग' बताया. प्रियंका गांधी वाड्रा भी वहां मौजूद थीं.
राष्ट्रपति भवन की प्रतिक्रिया
राष्ट्रपति भवन ने बाद में एक बयान जारी कर इस टिप्पणी को 'अस्वीकार्य' बताया और कहा कि राष्ट्रपति मुर्मू थकी हुई नहीं थीं. बयान में सोनिया गांधी का नाम लिए बिना टिप्पणी की निंदा की गई.
राष्ट्रपति भवन के बयान में कहा गया, "संसद में राष्ट्रपति के भाषण पर मीडिया से बातचीत के दौरान कांग्रेस पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं ने ऐसी टिप्पणियां कीं, जो स्पष्ट रूप से इस उच्च पद की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं. यह टिप्पणियां अस्वीकार्य हैं."
क्या है आगे की कार्रवाई?
अदालत ने इस मामले की सुनवाई 10 फरवरी को तय की है. इस बीच, यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. कांग्रेस ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है.
यह मामला देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा और राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ सकता है. आने वाले दिनों में इस मामले में और विकास होने की उम्मीद है.