बिहार में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ सरकार चला रहे जनता दल-यूनाइटेड (Janata Dal-United) के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को पार्टी ने दूसरी बार अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी है. इस बार बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट से पूर्व नीतीश की ताजपोशी से उनकी चुनौतियां भी काफी बढ़ गई हैं. नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की भाजपा से अलग पहचान बनाने की मानी जा रही है. बिहार की राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि नीतीश कुमार की स्थिति 2005 और 2015 वाली नहीं है, जब भाजपा के लिए जद (यू) जरूरी थी, मगर आज स्थिति बदल गई है. जद (यू) के लिए भाजपा जरूरी मानी जा रही है.
राजनीति के जानकार और परिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं, "जद (यू) के विरोध के बाद भी भाजपा की सरकार ने तीन तलाक और जम्मू एवं कश्मीर (Jammu-Kashmir) में धारा 370 पर अपनी राह चल दी. ऐसे में नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती भाजपा से अलग दिखने की है." सिंह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा और जद (यू) के बराबर सीट बंटवारे के बाद यह तय है कि विधानसभा चुनाव में भी यही फॉर्मूला लागू होगा, ऐसे में पिछले वर्षो में मजबूत हुई भाजपा को रोकना भी नीतीश के लिए कम चुनौती नहीं है.
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उन्होंने स्पष्ट कहा कि नीतीश कुमार की जद (यू) को यह याद रखना होगा कि हरियाणा में भाजपा दुष्यंत चौटाला से मिलकर भी सरकार बना लेती है. राजनीतिक समीक्षक और बीबीसी के संवाददाता रहे मणिकांत ठाकुर इससे इत्तेफाक नहीं रखते. वे कहते हैं, "अलग दिखने की जरूरत ही क्या है? जब सत्ता में साथ है तब अलग की बात कहां? इसे कहकर आप जनता को मूर्ख बना रहे हैं."
ठाकुर स्पष्ट कहते हैं कि अध्यक्ष इन्हीं को बनना ही था, इसमें कोई नई बात नहीं. उन्होंने कहा कि नीतीश के पूर्व कार्यकाल की चुनौतियां इतनी बड़ी हो गई हैं कि इस कार्यकाल में भी वह चुनौतियां इनका पीछा करेंगी. आज बिहार की जनता पूछ रही है कि बिहार के विशेष दर्जे के लिए पहले कार्यकाल में जो कहे गए थे, वे पूरा हुए क्या?
हाल में राज्य में हुए विधानसभा उपचुनाव में राजग को मिली हार का कारण जमीनी स्तर पर भाजपा और जद (यू) कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल की कमी मानी जा रही है. नीतीश कुमार के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल ठीक करने की भी रहेगी. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अगला विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़ने की घोषणा कर नीतीश की जिम्मेदारियां और बढ़ा दी हैं.
दूसरे कार्यकाल में पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने की चुनौती तो उनके ऊपर होगी ही, दूसरे कार्यकाल के दौरान सबसे पहले झारखंड और दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम भी उनके लिए अग्निपरीक्षा मानी जा रही है. झारखंड और दिल्ली में बिहार में सहयोगी भाजपा सत्ता की प्रबल दावेदारों में एक मानी जा रही है. ऐसी परिस्थितियों में दोनों गठबंधनों के बीच आपसी रिश्ते की मजबूती के साथ अपने दल को भी आगे ले जाने की चुनौती भी नीतीश के सामने है.
पार्टी के वरिष्ठ नेता और बिहार के मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि कोई भी चुनाव और कार्य में चुनौतियां होती हैं, परंतु नीतीश की पहचान राज्य में ही नहीं देश में भी एक कद्दावर नेता की है. ऐसे में दमखम के साथ आने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी उतरने वाली है और सभी चुनौतियों को हल भी करेगी.
इधर, विरोधी भी नीतीश कुमार के दूसरी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद चुनौती भी बताने से परहेज नहीं कर रहे हैं. राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि नीतीश कुमार के सामने पहली चुनौती भाजपा और भाजपा के वैसे नेताओं से जो सरकार की हकीकत बयान करते हैं, से सावधान रहने की है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार राज्य में विकास तो कर नहीं पा रहे हैं और ऊपर से भाजपा भी उन्हें झटका देने वाली है.