बिहार (Bihar) में लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2019) के नतीजों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल करने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के अगले साल अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में जीत हासिल कर सत्ता में बरकरार रहने की प्रबल संभावना है. लोकसभा चुनावों में बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में राजद (RJD) महज आठ, कांग्रेस चार, रालोसपा (RLSP) एक और हम(से) दो विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बना सकी. महागठबंधन (Mahagathbandhan) में शामिल इन पार्टियों के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम और भाकपा-माले ने क्रमश: दो और एक विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाई. साल 2015 के विधानसभा चुनावों में राजद ने 80 सीटें जीती जबकि उसकी पुरानी सहयोगी कांग्रेस को 28 सीटें मिली थीं. इसके बाद इन दोनों पार्टियों ने कोइरी नेता उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाली रालोसपा, मुसहर (दलित) जाति से आने वाले जीतन राम मांझी की अगुवाई वाली हम(से) और निषाद समुदाय से आने वाले मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को महागठबंधन में शामिल किया था.
पहली बार अपने करिश्माई संस्थापक अध्यक्ष लालू प्रसाद की गैर-मौजूदगी में चुनाव लड़ रहे राजद को इस लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिल सकी. साल 1997 में स्थापित हुई इस पार्टी का यह अब तक का सबसे बदतर प्रदर्शन है. राजद सूत्रों ने बताया कि प्रसाद और अपने परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोपों को धता बताने की पार्टी की कोशिश और आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को दिए जा रहे लगातार संरक्षण को लोगों ने पसंद नहीं किया. सीवान और नवादा में राजद ने हत्या एवं बलात्कार जैसे जुर्म में सजायाफ्ता नेताओं की पत्नियों को अपना उम्मीदवार बनाया. पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे राजग उम्मीदवारों ने उन्हें बड़े अंतर से हराया.
राजद ने जहानाबाद में भी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी, जहां प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव का वरदहस्त प्राप्त एक बागी उम्मीदवार ने चुनावी मैदान में उतरकर पार्टी को हराने में मदद की. इस सीट पर जीत-हार का अंतर करीब 1,000 रहा और बागी उम्मीदवार को 1,000 से ज्यादा वोट मिले. अगर राजद का बागी उम्मीदवार इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ता तो यह सीट पार्टी के खाते में जा सकती थी. कांग्रेस ने पिछली लोकसभा के चार निवर्तमान सांसदों को टिकट दिया था, लेकिन पार्टी को इससे कोई मदद नहीं मिली. अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी के लिए पटना साहिब सीट जीतने में नाकाम रहे. भाजपा से हाल में ही इस्तीफा देने वाले सिन्हा दो बार इस सीट से सांसद रह चुके हैं. यह भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव नतीजे 2019: बीजेपी को यूपी और बिहार में गठबंधन से हुआ फायदा, 120 में से 102 सीटों पर जमाया कब्जा
तारिक अनवर ने कटिहार में कड़ी टक्कर दी, लेकिन यह नाकाफी साबित हुआ. सुपौल में काफी लोकप्रिय रंजीत रंजन जदयू उम्मीदवार से चुनाव हार गईं. दरभंगा से सांसद रहे कीर्ति आजाद को कांग्रेस ने झारखंड की धनबाद सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन नतीजा निराशाजनक रहा.