जन्मदिन विशेष: पीएम मोदी बनना चाहते थे साधु-सन्यासी, पढ़े उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे अनसुने किस्से
बड़ नगर (गुजरात) में चाय की छोटी-सी दुकान से सेवेन रेस कोर्स रोड (दिल्ली) तक का सफर तय कर नरेंद्र दामोदर मोदी ने एक ऐसा इतिहास रचा है, जो अवर्णनीय है, अतुलनीय है.
बड़ नगर (गुजरात) में चाय की छोटी-सी दुकान से सेवेन रेस कोर्स रोड (दिल्ली) तक का सफर तय कर नरेंद्र दामोदर मोदी (Narendra Damodardas Modi) ने एक ऐसा इतिहास रचा है, जो अवर्णनीय है, अतुलनीय है. रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़-दौड़कर मुसाफिरों को चाय पिलाने वाला मोदी आज कितना कद्दावर नेता बन चुका है, यह देश ही नहीं बल्कि दुनिया भी जान चुकी है. लेकिन एक जुझारू और सशक्त प्रधानमंत्री की शख्सियत के पीछे छिपे नरेंद्र मोदी की निजी जिंदगी क्या है? राजनीति से विलग वे कैसे इंसान हैं, कैसा उनका व्यवहार है... एक और लौहपुरुष नरेंद्र मोदी के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को दर्शाने की कोशिश यहां की गयी है.
स्मृतियां बचपन की
नरेंद्र मोदी की जिंदगी की कहानी संघर्ष की मुकम्मल दास्तान कही जा सकती है. इऩका जन्म 17 सितंबर 1950 को बड़नगर में दामोदरदास मूलचंद मोदी और हीराबेन मोदी के सामान्य से घर में हुआ. पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर के नरेंद्र मोदी को लोग प्यार से ‘नरिया’ कहकर पुकारते थे. वे आम बच्चों से हटकर थे. बड़ नगर के भगवदाचार्य नारायणाचार्य स्कूल के (1963 से 1967) औसत छात्र थे, मगर स्कूली मंच पर अभिनय और डिबेट में हमेशा जीत और पुरस्कार हासिल करते थे. एनसीसी की गतिविधियों में भी भागीदारी निभाते थे. उन्होंने राजनीति शास्त्र में एमए किया.
पारिवारिक गुजारे के लिए उनके पिताजी ने रेलवे स्टेशन पर चाय की छोटी सी दुकान खोल रखी थी. मोदी पढ़ाई के साथ-साथ पिता के काम में भी हाथ बंटाते थे. उन्हें भारतीय सेना से बहुत मोहब्बत था. 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जब भारतीय सैनिक वहां गुजरते तो मोदी उन्हें मुफ्त में चाय पिलाने के लिए दौड़ पड़ते थे. मोदी को हिंदी और संस्कृत पढ़ा चुके एक रिटायर्ड शिक्षक के अनुसार मोदी बहुत अच्छे वक्ता थे, राजनीति में भी उनकी दिलचस्पी थी. एक बार नौंवी क्लास में मोदी ने सीआर का चुनाव लड़ा, और भारी मतों से जीत हासिल की.
संन्यास के जुनून ने पहुंचाया हिमालय की कंदराओं में
नरेंद्र मोदी बचपन से साधू-संतों का बहुत सम्मान करते थे. एक दिन अचानक उनके मन में संन्यासी बनने का जुनून सवार हुआ. स्कूल गये तो वापस घर लौटने के बजाय पश्चिम बंगाल चले गये. मंदिर-मंदिर घूमते-भटकते रामकृष्ण अस्पताल पहुंचे. वहां रोगियों की सेवा-टहल करते रहे. फिर अचानक एक दिन हिमालय की कंदराओं में पहुंच गये. साधु-संन्यासियों की संगत में इधर-उधर भटकते रहे. दो साल बाद बड़नगर वापस आ गये. वजह जो भी रही हो, मगर अब तक वह संन्यासी बनने का फैसला त्याग चुके थे.
संघ और समर्पण
नरेंद्र मोदी का जन्म शायद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए ही हुआ था. उनका आरएसएस प्रेम देखते हुए 1958 में दिवाली के दिन गुजरात आरएस के प्रचारक लक्ष्मण राव ईनामदार ने नरेंद्र मोदी को बाल सेवक संघ की शपथ दिलाई थी. 1967 में 17 साल की उम्र में मोदी अहमदाबाद पहुंचे. साल 1974 में मोदी नवनिर्माण आंदोलन में शामिल हुए. सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई वर्षों तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक संघ के प्रचारक बने रहे. मोदी किसी काम को छोटा या बड़ा नहीं मानते थे. अहमदाबाद संघ मुख्यालय में रहते हुए वह हर छोटे-मोटे काम स्वयं करते थे. जिसमें झाड़ू-बहाहू यानी साफ-सफाई, चाय बनाना, बुजुर्ग सदस्यों के कपड़े धोना इत्यादि शामिल थे.
मां में है मोदी की दुनिया
नरेंद्र मोदी बचपन से ही माँ से बहुत प्यार करते थे. वह जब भी कोई नया कार्य करते तो मां का आशीर्वाद लेने उनके पास जरूर आते थे. हालांकि माँ सारे बच्चों के साथ एक समान स्नेह रखती थीं. शायद यही वजह थी कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उन्होंने अपने शेष बच्चों के साथ रहने का फैसला किया था. मोदी को माँ के इस फैसले का कोई मलाल नहीं था, वह हर छोटी-बड़ी सफलता माँ से शेयर ही नहीं करते बल्कि उनका आशीर्वाद लेने घर जरूर आते हैं. एक दिन मोदी पास के शर्मिष्ठा तालाब में स्नान कर रहे थे, उन्हें एक घड़ियाल का बच्चा दिखा. वे उसे पकड़कर घर लाए. परिवार के सदस्यों ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, मगर मोदी अपनी जिद पर अड़े रहे. वे घड़ियाल के बच्चे को अपने पास ही रखना चाहते थे. लेकिन जब माँ ने उन्हें समझाया कि इस बच्चे का उसकी माँ इंतजार कर रही होगी, तब मोदी बच्चे को वापस तालाब में छोड़ कर आ गये.
आडवाणी हैं आज भी राजनीतिक गुरु
लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनके रिश्तों को मीडिया और बाहर की दुनिया किस नजरों से देखती है, मोदी को इससे कोई सरोकार नहीं. वह आज भी आडवाणी को ही अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं. आडवाणी के हर आंदोलनों, रथ यात्राओं में मोदी की उपस्थिति अनिवार्य रहती थी. 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा में मोदी ने अहम भूमिका निभाई थी, जिसके कायल स्वयं आडवाणी भी थे. दूसरी बार पीएम बनने के बाद भी मोदी सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी का आशीर्वाद लेने उनके आवास पर पहुंचे थे.
सक्रिय और सफल मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी कुशल कुटनीतिज्ञ और चतुर राजनायिक के रूप पूरी दुनिया में लोकप्रिय है. गुजरात के विकास के लिए उन्होंने काफी प्रयास किया. विशेष रूप से चीन की व्यवासायिक नीतियों एवं उनकी व्यावसायिक सफलता को ध्यान में रखकर नरेंद्र ने चीन की कई यात्राएं की. मुख्य मंत्रित्वकाल में उन्होंने ‘वाइपब्रेंट गुजरात समिट’ का आयोजन कर देश-विदेश के उद्योगपतियों को गुजरात आमंत्रित किया. बंगाल के सिंगूर में टाटा के नैनो कार के प्लांट को लेकर उपजे विरोध को देखने के बाद उन्होंने टाटा को एक मैसेज (वेलकम टू गुजरात) देकर उन्हें गुजरात प्लांट लगाने के लिए आमंत्रित किया. गुजरात पर्यटन के मामले में अन्य प्रदेशों से काफी पिछड़ा हुआ था. मोदी ने सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन को गुजरात का ब्रांड अंबेसडर बनाया. कहा जाता है कि मोदी के इस प्रयास के बाद गुजरात पर्यटन की आय में कई गुना वृद्धि हुई.
राजनीतिक सफरः मोदी से मुमकिन तक
राजनीति के इस सफर में सिफर से शिखर तक पहुंचने में नरेंद्र मोदी को एक-एक पायदान चलना पड़ा. वे स्वयं मानते हैं कि बहुत कठिन डगर से उन्हें गुजरना पड़ा. 1980 के दशक में वे गुजरात की ईकाई भाजपा में शामिल किये गए. 1988 से 1989 तक गुजरात ईकाई के महासचिव रहे. 1990 में आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा और मुरली मनोहर जोशी की कश्मीर के लाल चौक में तिरंगा फहराने की यात्रा आदि में मोदी की उपस्थिति रही है. इसके बाद बीजेपी द्वारा कई राज्यों के प्रभारी बनाए गये. 1995 में भाजपा के राज्य सचिव और पांच राज्यों के पार्टी प्रभारी बनाये गये. 1998 से 2001 तक वे महासचिव बनकर रहे. 2001 में केशू भाई पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद भाजपा ने मोदी को गुजरात की कमान सौंपी गयी. दुर्भाग्यवश उसी समय गुजरात में भयंकर भूकंप आया, जिसमें 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गये. मोदी ने बड़ी कुशलता से गुजरात की जनता का प्यार हासिल किया. 2007 में मोदी ने गुजरात के विकास को मुद्दा बनाया, और बड़ी जीत के साथ लौटे. उनकी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, कठिन परिश्रम के चलते 2012 में भी गुजरात विधान सभी में मोदी का ही परचम लहराया. अपने दमखम पर 2012 तक मोदी का कद इस कदर बढ़ चुका था कि उन्हें भाजपा के पीएम के रूप में देखा जाने लगा था. 2013 में मोदी को बीजेपी प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया गया. पार्टी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम आगे कर दिया. मोदी ने पार्टी के लिए युद्ध स्तर पर प्रचार किया, परिणाम यह हुआ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में आयी. अब मोदी शिखर पर पहुंच चुके थे. मोदी यहीं नहीं रुके, अभी तो उनकी नये भारत की मंजिल दूर थी. उन्हें कुछ कठोर फैसले लेने पड़े, मगर उन पर जनता का विश्वास जम चुका था. जनता ने उनका हर कदम पर साथ दिया. अब बारी थी कुछ नये इरादों को क्रियान्वित करने की. अगला 2019 का आम चुनाव मोदी ने राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि रखते हुए लड़ा. एक बार फिर मोदी बनाम विपक्ष चुनाव हुआ और एक बार फिर मोदी को सत्ता मिली. सत्ता भी ऐसी कि उम्मीद के काफी विपरीत 350 के आंकड़ों को छूते हुए विपक्ष को धराशाई ही कर दिया.