नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में 'पीटर पैन सिंड्रोम' से पीड़ित व्यक्ति को मिली जमानत

मुंबई की एक अदालत ने 14 वर्षीय लड़की के अपहरण एवं यौन उत्पीड़न के मामले में 'पीटर पैन सिंड्रोम' से पीड़ित एक व्यक्ति को जमानत दे दी है. विशेष न्यायाधीश एस सी जाधव ने 25,000 रुपये के मुचलके और कई अन्य शर्तों पर 23 वर्षीय आरोपी की जमानत सोमवार को मंजूर कर ली.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: IANS)

मुंबई, 22 जून : मुंबई (Mumbai) की एक अदालत ने 14 वर्षीय लड़की के अपहरण एवं यौन उत्पीड़न के मामले में 'पीटर पैन सिंड्रोम' से पीड़ित एक व्यक्ति को जमानत दे दी है. विशेष न्यायाधीश एस सी जाधव ने 25,000 रुपये के मुचलके और कई अन्य शर्तों पर 23 वर्षीय आरोपी की जमानत सोमवार को मंजूर कर ली. आरोपी की ओर से पेश हुए वकील सुनील पांडे ने दलील दी कि उनका मुवक्किल 'पीटर पैन सिंड्रोम' (Peter Pan Syndrome) से पीड़ित है. इस सिंड्रोम से पीड़ित वयस्क पुरुष या महिला सामाजिक रूप से अपरिपक्व होती है. पांडे ने अदालत से कहा, ‘‘पीड़िता के परिवार को उनके रिश्ते के बारे में पता था, लेकिन लड़के की बीमारी और उसकी अच्छी पृष्ठभूमि नहीं होने के कारण लड़की का परिवार उनके रिश्ते और लड़के के परिवार के सदस्यों को पसंद नहीं करता था.’’

वकील ने कहा कि पीड़िता को इस बात की जानकारी थी कि वह क्या कर रही है और उसने अपनी इच्छा से रिश्ता बनाया.विशेष लोक अभियोजक वीणा शेलार ने याचिका का विरोध किया और याचिकाकर्ता की ओर से लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया. शेलार ने तर्क दिया कि अपराध में याचिकाकर्ता की संलिप्तता को दिखाने के लिए रिकॉर्ड में प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री है. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की बीमारी के बारे में रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं है और अगर आरोपी जमानत पर रिहा होता है तो वह मामले के सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है. यह भी पढ़ें : JK: पीएम मोदी के साथ सर्वदलीय बैठक में गुपकार नेता शामिल होंगे, आर्टिकल 370 और 35A का मुद्दा उठाएंगे

अदालत ने दलीलें सुनने के बाद आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि उसे हिरासत में रखने कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि मामले की जांच पूरी हो चुकी है. अदालत ने कहा कि पीड़िता का बयान ‘‘प्रथम दृष्टया दिखाता है कि उसने अपने माता-पिता का घर खुद छोड़ा और आरोपी के साथ आई.’’ अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों से संकेत मिलता है कि लड़की (भले ही वह नाबालिग है) को अच्छी तरह पता था कि वह क्या कर रही है और उसके बाद ही वह स्वेच्छा से याचिकाकर्ता के पास गई.

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