आतंकियों के बाद अब नक्सलियों के पालन-पोषण में जुटा ‘नापाक’ पाकिस्तान

जम्मू और कश्मीर में आतंकियों की कमर टूटने के बाद पाकिस्तान अब नक्सलियों के पालन पोषण में पूरी सिद्धत के साथ जुट गया है. दरअसल बिहार के नक्सल प्रभावित नवादा जिले के रजौली थाना क्षेत्र में पिछले गुरुवार को पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में एक नक्सली की मौत हुई थी.

नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर (Jammu Kashmir) में आतंकियों (Terrorism) की कमर टूटने के बाद पाकिस्तान (Pakistan) अब नक्सलियों (Naxals) के पालन पोषण में पूरी सिद्धत के साथ जुट गया है. दरअसल बिहार के नक्सल प्रभावित नवादा जिले के रजौली थाना क्षेत्र में पिछले गुरुवार को पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में एक नक्सली की मौत हुई थी. जांच के दौरान पुलिस को मृत नक्सली के पास से पाकिस्तान में बनी एके-47 की गोलियां मिली थी. प्रथम दृष्टया नक्सली संगठनों के तार आतंकी संगठनों से जुड़े होने की आशंका है.

जानकारी के मुताबिक एनकाउंटर के बाद घटनास्थल से पुलिस ने कई हथियार और गोलियां बरामद की थीं. जब्त खाली गोलियों (खोखा) पर उर्दू में लिखे शब्दों को लेकर पुलिस ने नक्सली और आतंकी कनेक्शन को लेकर जांच शुरू की है. पुलिस के मुताबिक, आमतौर पर गोलियों में एक तरफ नीचे अंग्रेजी में शब्द अंकित होते हैं, जो निर्माता कंपनी के नामों को दर्शाते हैं. लेकिन बरामद गोलियों में उर्दू के शब्द लिखे गए हैं.

एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि अभी कुछ भी स्पष्ट कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन बरामद खाली गोलियां स्वदेश निर्मित नहीं लग रही हैं. अभी फिलहाल पूरी सच्चाई खाली गोलियों की फोरेंसिक रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल सकेगी.

बता दें कि सबसे पहले नक्सलियों के पास से साल 2005 में पाकिस्तान में बनी गोलियां मिली थी. उस समय छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में एक थाने पर हमले के लिए नक्सलियों ने बड़ी संख्या में पाकिस्तान में बनी गोलियों का इस्तेमाल किया था. जांच के बाद पता चला था कि जिन गोलियों का इस्तेमाल नक्सलियों ने किया है वहीं गोलियों का इस्तेमाल 2001 में जैश ए मोहम्मद के आतंकियों ने संसद पर हमले के दौरान भी किया था.

गौरतलब हो कि जम्मू और कश्मीर में सेना ने आतंकियों के सफाए के लिए कड़ा अभियान छेड़ रखा है. इसी का नतीजा है कि बारामूला जिला (Baramulla District) आतंक मुक्त बन गया है. एक दौर था जब बारामुला हिज्बुल का गढ़ माना जाता था. लेकिन यहां से आतंक के पैर को उखाड़ के फेंक दिया गया है. सेना के मुताबिक अब यहां पर एक भी आतंकी जिंदा नहीं है.

उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह के मुताबिक साल 2018 में जम्मू-कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों के दौरान सुरक्षा बलों को कई बड़ी सफलताये मिली है. इस दौरान सुरक्षा बलों और नागरिकों को निशाना बनाने वाले कई शीर्ष आतंकियों का सफाया किया गया.

पिछले साल घाटी में मारे गये आतंकवादियों की संख्या पिछले 10 सालों में सबसे अधिक है. महज एक साल में 250 से अधिक आतंवादी मारे गये, करीब 54 को गिरफ्तार किया गया और चार ने आत्मसमर्पण किया था.

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