स्थानीय निकायों में OBC कोटा की सीमा 50 फीसदी का उल्लंघन न हो : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के पक्ष में आरक्षण को इस हद तक अधिसूचित किया जा सकता है कि यह अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक न हो.
नई दिल्ली, 5 मार्च : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को कहा कि स्थानीय निकायों में ओबीसी के पक्ष में आरक्षण (Reservation) को इस हद तक अधिसूचित किया जा सकता है कि यह अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के 50 प्रतिशत से अधिक न हो. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सीटों के आरक्षण को लेकर प्रावधान का हवाला दिया और कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा को नहीं तोड़ा जा सकता. न्यायाधीश ए.एम. खानविल्कर, इंदु मल्होत्रा और अजय रस्तोगी की एक पीठ ने कहा कि ओबीसी के लिए आरक्षण केवल राज्य विधान द्वारा प्रदान की जाने वाली एक वैधानिक व्यवस्था है, जो एससी/एसटी के लिए संवैधानिक आरक्षण के विपरीत है, जो जनसंख्या के अनुपात से जुड़ी हुई है.
पीठ ने कहा कि ओबीसी (OBC) के संबंध में सीटों के आरक्षण के लिए प्रदान राज्य विधानों के संबंध में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी स्थिति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में कुल वर्टिकल आरक्षण संबंधित निकायों के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के कुछ जिलों में स्थानीय निकायों और पंचायत समिति को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. इन निकाय चुनावों में आरक्षण नियमों के उल्लंघन वाले इलाकों में फिर से चुनाव कराने को कहा गया है. यह भी पढ़ें : मथुरा की अदालत ने लखनऊ जेल में बंद पीएफआई के दो कार्यकर्ताओं के लिए पेशी वारंट जारी किया
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के वाशिम, अकोला, नागपुर और भंडारा जिलों में स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षित सीटों के परिणामों को खारिज कर दिया. शीर्ष अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को यह भी निर्देश दिया कि वह संबंधित स्थानीय निकायों की ऐसी रिक्त सीटों के संबंध में चुनावों की घोषणा के लिए तत्काल कदम उठाए. शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र जिला परिषदों और पंचायत समितियों अधिनियम, 1961 के प्रावधानों को भी पढ़ा, जिसमें कहा गया है कि ओबीसी के लिए आरक्षण 27 प्रतिशत तक हो सकता है, लेकिन यह 50 प्रतिशत की बाहरी सीमा के अधीन है. इस मामले में अपने फैसले को सही ठहराने के लिए शीर्ष अदालत ने 2010 के एक मामले का हवाला भी दिया.