असम NRC लिस्ट में नाम नहीं होने पर अब ये हैं विकल्प, मिलेगा 120 दिन का वक्त- यहां जानें एनआरसी से जुड़े हर सवाल का जवाब
NRC लिस्ट में में जगह न पाने वाले लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं, साथ ही यह भी कि उनसे उनकी नागरिकता छिन जाएगी. किसी का नाम एनआरसी से बाहर रह जाता है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह विदेशी बन गया है क्योंकि उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद फॉरेन ट्रिब्यूनल (FT) ही इस संबंध में निर्णय ले सकता है.
गृह मंत्रालय ने शनिवार को असम एनआरसी (Assam NRC) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार लोगों के नाम शामिल हैं. वहीं 19 लाख 6 हजार 657 लोगों को इस लिस्ट में जगह नहीं मिली है. एनआरसी लिस्ट में नाम नहीं होने पर लोगों को अपने भविष्य की चिंता होने लगी है. NRC लिस्ट में में जगह न पाने वाले लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं, साथ ही यह भी कि उनसे उनकी नागरिकता छिन जाएगी. इस बाबत असम सरकार ने कहा है कि अगर किसी का नाम एनआरसी से बाहर रह जाता है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह विदेशी बन गया है क्योंकि उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद फॉरेन ट्रिब्यूनल (FT) ही इस संबंध में निर्णय ले सकता है. यानि की जिन लोगों का नाम एनआरसी लिस्ट में नहीं है उनके पास अभी भी अपनी नागरिकता सिद्ध करने का विकल्प है.
जिन लोगों का नाम NRC की फाइनल लिस्ट में नहीं हैं उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. वे फॉरनर्स ट्रिब्यूनल के आगे अपील दाखिल कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें 120 दिन का समय दिया गया है. जिस किसी का नाम एनआरसी की लिस्ट में आने से रह गया है या कोई भी व्यक्ति एनआरसी की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर सर्च कर सकते हैं. इसके साथ ही ये लिस्ट एनआरसी सेवा केंद्रों, उपायुक्त के कार्यालयों और क्षेत्राधिकारियों के कार्यालयों में उपलब्ध हैं जिसे ऑफिस टाइम में देखा जा सकेगा.
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फॉरेन ट्रिब्यूनल में करें अपील
एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी हो जाने के बाद व्यक्ति की नागरिकता रहेगी या नहीं इसका निर्णय फॉरेन ट्रायब्यूनल ही करेगी. जिन लोगों के नाम इस लिस्ट में नहीं हैं अब उन्हें फॉरेन ट्रायब्यूनल (एफटी) के सामने कागजों के साथ पेश होना होगा, जिसके लिए उन्हें 120 दिन का समय दिया गया है. जिन लोगों के नाम एनआरसी फाइनल लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें 31 दिसंबर, 2019 तक फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करनी होगी.
ऐसे लोग शेड्यूल ऑफ सिटिजनशिप के सेक्शन 8 के तहत अपील कर सकेंगे. पहले इसके लिए 60 दिन की समय सीमा दी गई थी, लेकिन यह अवधि अब बढ़ाकर 120 दिन यानी लगभग चार महीने कर दी गई है. NRC न पाने वाले लोग 31 दिसंबर, 2019 तक अपील कर सकेंगे. अगर यहां दावा खारिज होता है तो व्यक्ति को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का भी विकल्प मिलेगा.
फॉरेन ट्रिब्यूनल करेगा आखिरी फैसला-
ऐसे लोगों को तब तक हिरासत में नहीं लिया जाएगा, जब तक कि फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल का फैसला नहीं आ जाता. ये ट्रिब्यूनल अर्ध न्यायिक संस्थाएं हैं, जिन्हें नागरिकता से जुड़े मामलों की सुनवाई का अधिकार दिया गया है. ऐसे मामलों के निपटारे के लिए पूरे राज्य में करीब 400 ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं. सभी कानूनी विकल्प आजमाने के बाद ही किसी को भी हिरासत में लिया जाएगा, उससे पहले नहीं.
इतना ही नहीं अगर कोई परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है और कानूनी लड़ाई का खर्च नहीं उठा सकता तो उन्हें मदद दी जाएगी. बीजेपी के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी ऐसे लोगों को पूरी मदद का भरोसा दिलाया है, जो पीढ़ियों से असम में रह रहे हैं, फिर भी उनके नाम सूची में नहीं हैं. सभी कानूनी विकल्प तलाशने के बाद ही किसी को विदेशी घोषित किया जा सकेगा.
डिटेंशन शिविर में किन लोगों को रखा जाएगा
सभी चुनावी प्रक्रियाओं के बाद जो लोग जांच में विदेशी पाए गए. ऐसे लोगों को डिटेंशन शिविर में रखा जाएगा. हालांकि उन्हें कैसे भारत से बाहर उनके मूल देश भेजा जाएगा, इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है. इस पर बांग्लादेश से कोई करार भी नहीं हुआ है. केंद्र सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि जो लोग अपनी नागरिकता खो देंगे उन्हें डिटेंशन सेंटर नहीं भेजा जाएगा. इसके लिए लंबी कानूनी प्रक्रिया है, किसी भी भारतीय के साथ अन्याय नहीं होगा. पूरी प्रक्रिया में किसी तरह का भेदभाव व अनावश्यक उत्पीड़न नहीं होगा. सभी को दावों और आपत्तियों के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान किए जाएंगे.
क्या है एनआरसी?
एनआरसी एक तरह से असम के निवासी होने का सर्टिफिकेट है. जो इस बात की शिनाख्त करता है कि कौन व्यक्ति देश का वास्तविक नागरिक है और कौन देश में अवैध रूप से रह रहा हैं. इस संबंध में पहला रजिस्टर 1951 में तैयार किया गया था, जिसे अब अपडेट किया गया है. यह शिनाख्त पहली बार साल 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए की गई थी. बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे.
1980 के दशक में राज्य के क्षेत्रीय समूहों द्वारा एनआरसी को अपडेट करने की लगातार मांग की जाती रही थी. असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 1971 के बाद आने वाले लोगों को एनआरसी में शामिल न करने पर सहमति व्यक्त की गई थी.
असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा गरमाने पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपडेट किए जाने का निर्देश दिया था. इसमें 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एनआरसी को अपडेट करने का आदेश दिया था ताकि वह बोनाफाइड नागरिकों की पहचान कर सके और अवैध अप्रवासियों को बाहर निकाला जा सके. इसका असली काम फरवरी 2015 में शुरू हुआ.